सती को अपने प्रभु की हर बात से प्रेम था, विशेष रूप से उनकी कविता से।
जब वे लेटे हुए स्पष्ट आकाश में तारों को देखते थे, वह कहती थी ‘‘कुछ अच्छा सुनाइये,’’। आमतौर पर वह हंसते और कहते, ‘‘तुम बहुत अच्छी हो,’’ और फिर उसे अपने पास खींच लेते। वह आलिंगन से छूटने के लिए संघर्ष करती और कहती ‘‘यह कितना मूर्खतापूर्ण है!’’
एक दिन, उसने विनती की, ‘‘नहीं, वास्तव में कुछ अच्छा कहिए।”
शिवः जीवन का कोई अंत नहीं है, लेकिन, मेरी प्यारी तुम्हारे बगैर, जीवन ही नहीं है।
सतीः इसका क्या अर्थ है?
शिवः इसका अर्थ है…… हम अनंत हैं, फिर भी अधूरे हैं यदि उस शाश्वतता को बांटने वाला कोई ना हो।
सतीः ठीक है, मुझे थोड़ा और बताइये…जीवन के विषय में, ऐसा कुछ जो लय में हो।
शिवः उतार और चढ़ाव, चक्र और चक्र
जीवन में आते हैं और जाते हैं
इन सब के मध्य में स्वयं को जानना
यात्रा का वास्तविक रोमांच है।
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सतीः उतार और चढ़ाव! चक्र और चक्र! लेकिन ‘इन सब का मध्य’ क्या है?
शिवः सती, एक समय, जब हम जानने के क्रेंद की ओर बढ़ते हैं, हमें पता चलता है कि अंत और आरंभ पृथक नहीं हैं।
सतीः तो क्या यह गहन प्रज्ञता आपको आपके योग अभ्यास, आपके आसन से प्राप्त होती है?
शिवः योग आपके शरीर के विषय में नहीं है। योग आत्मा का पता लगाने में सहायता करता है। योगासन आत्मा को जानने का केवल एक अंश है। पूरी प्रकृति ऐसी ही है। आपको उसके साथ ‘‘एक” होने की आवश्यकता है। जिस प्रकार मैं यात्रा प्रारंभ करने से भी पहले नंदी के साथ होता हूँ। अन्यथा आप परास्त हो जाएंगे, वह भी सीखने का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
सतीः सुंदर!
शिवः वास्तविक सुंदरता यह है कि तुम उन सब का योग हो जो तुमने अपने ब्रह्मांड में महसूस किया है और क्रियाशील किया है। पुनः यात्रा करो या फिर शांत समरसता में प्रभुअग्नि को जलाओ।
सतीः प्रभुअग्नि?
शिवः प्रभुअग्नि! ब्रह्मांड की हर सुंदरता के पीछे की एकता को जानने की ज्वलंत कामना, होने का खेल, उद्देश्य, आनंद, सब कुछ प्रभुअग्नि है।
सतीः मैं प्रभु की जलाऊ लकड़ी हूँ। इस आत्मा की लकड़ी ने प्रारंभ से ही आपके लिए जलने के लिए स्वयं को तैयार करना आरंभ कर दिया। मैंने हमेशा शिवलिंग से प्रेम किया है और अब मैं आपसे प्रेम करती हूँ।

शिवः सती तुम माया हो। मेरे विषय में यह कहा जाता है कि मैं अवतरित नहीं हूँ। लेकिन फिर भी तुम्हारा प्रेम शिव को भी प्रकट कर सकता है, तुम सम्मोहक जादूगरनी हो!
सतीः मैं, एक जादुगरनी! और आप क्या हैं? आप जिसने पूरे ब्रह्मांड को सम्मोहित कर लिया है?
शिवः मैं तत्त्व, सार में लीन एक योगी हूँ। मैं तत्त्व से प्रेम करता हूँ जो सती के रूप में प्रकट होता है!
सतीः लेकिन फिर वे आपको ब्रह्मचारी क्यों कहते हैं?
शिवः कुंवारापन ब्रह्मचर्य का केवल एक अंग है, जिसका अर्थ है ईश्वर के साथ ‘एक’ होना।
सतीः परंतु आपके प्रति मेरा प्रेम हमारे आध्यात्मिक संपर्क से भी गहरा क्यों महसूस होता है?
शिवः यह इसके वैद्युत आकर्षण के कारण होता है- प्रेम; इसके कारण ब्रह्मांड का अस्तित्व है। आध्यात्मिक आकर्षण भी चौंधिया देता है। अंत में आप महसूस करते हैं कि प्रेम और आध्यात्मिकता एक ही प्रवाह पर चलते हैं।
शिव के साथ सीखे गए पाठ अनंत थे। उनकी बातें गहरी थीं; और उनकी चुप्पी भी।
सतीः आप शांत होने पर भी मुझसे बात करते हुए प्रतीत होते हैं।
शिवः कुछ लोग चुप्पी को समझते हैं। स्थिरता पंख देती है।
शिव प्रज्ञता का प्रतीक थे, यहां तक कि अपने हास्य में भी।
“मुझसे कहिए कि आप मुझसे प्रेम करते हैं,’’ सती ने एक दिन फिर माँग की।

शिवः ओह, मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ। किंतु जब तुम मुझसे यह विशेष रूप से कहने को कहती हो, मैं अवाक रह जाता हूँ; तुमहारा आकर्षण और जादू ऐसा है। शिव हंसे। तुमसे मिलने से पहले, मेरी कोई चाह नहीं थी। अब सब कुछ बदल गया है। तुमने बेचारे योगी को नष्ट कर दिया है।
सतीः नष्ट कर दिया है? मैंने सोचा था कि आप योग में लीन हैं, आपको मेरे लिए समय नहीं हैं। कभी-कभी आप इतने विलग हो जाते हैं…
शिवः तभी जब मैं गहरी सोच में होता हूँ…चिंतन। लेकिन फिर मैं हम दोनों को साथ में देखता हूँ -मैं और कुछ नहीं चाहता हूँ।
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सतीः चाह? क्या योगी से अपेक्षित नहीं है कि उसकी कोई चाह ना हो?
शिवः इच्छाहीनता! हम्म… मेरा एक शैव पंथ हैः हम केवल शिव शक्ति को असीमित अभिव्यक्ति और खेल में देखने की चाह रखते हैं… वह ‘‘हम-तुम और मैं” हैं।
सतीः और फिर भी आप अत्यंत विपरीत -त्याग पर भी जा सकते हैं?
शिवः ऐसा होना ही है, सती। वर्णक्रम का अंतिम छोर भी उस बिंदु पर पहुंचता है और रूकता है जहां से वे सब प्रारंभ हुए थे।
सतीः और वह बिंदु है ऊँ!
शिवः हाँ! वह बिंदु ऊँ है।
और पूरी बात यही है।
सती और शिव ने आलिंगन किया। एक और आध्यात्मिक पाठ का समापन हुआ।
Published in Hindiपुरुषों में कौन से गुण स्त्रियों को सबसे ज्यादा आकर्षित करते हैं?