मेरी शादी १९९२ में हुई थी जब मैं २२ साल की थी. अब दो बहुत ही अच्छे और प्यारे लड़कों की माँ हूँ और उन औरतों में से हूँ जो हमेशा एक सुशिल और आज्ञाकारी बहु और पत्नी बनने में लगी रहती हैं. मुझे ये बात बहुत सालों बाद समझ आई की मुझे एक आदर्श नारी बनने के लिए अपने ससुराल वालों से लगातार अपमानित होना होगा, अपने पति के भावनात्मक और शारीरिक चोटों को झेलना होगा और पता नहीं कितने दर्द, निशान, ज़ख्म और बलिदान देने होंगे. ये सब समझने में मुझे बीस साल लग गए.
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मेरे पति मर्चेंट नेवी में थे और मैं उन्हें बहुत प्यार करती थी. अपने प्रोफेशन के कारण वो छह महीने ही बस घर पर रहते थे. शादी के बाद जब वो पहली बार अपनी ट्रिप पर गए, तो मुझसे ये उम्मीद की गई की अकेले ही पूरे घर की बागडोर संभाल लूँ। मेरी छोटी सी गलती पर भी मुझे बहुत ही बुरी तरह अपमानित किया जाता था. अगर नाश्ते में पांच मिनट की देरी हो जाती या फिर कपडे तह करने में टाइम लग जाता तो सास तुरंत ही उलहाने देने लगती थी.
जाने से पहले पति ने सलाह दी थी की मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूँ मगर जब वो ट्रिप से ,वापस आये, तब मैंने उनका असली चेहरा देखा. जब उनके परिवारवालों ने उनसे कहा की मैं उन लोगों के प्रति लापरवाह हूँ, तब मेरे पति ने मुझे पहली बार थप्पड़ मारा. उसके बाद घंटो तक उसने मेरा यौन शोषण किया जिसके बाद उनलोगों की उम्मीद थी की मैं फिर से बिलकुल सहजता के साथ सबका पसंदीदा खाना बनाऊं. वक़्त बीतता गया और प्रताड़ना बढ़ती गई. अब थप्पड़ की जगह घूंसों ने ले ली और घूसों की हॉकी स्टिक ने.
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मैं प्रार्थना करती रही की कोई चमत्कार होगा और वो बदल जाएंगे क्योंकि मेरे पास जाने के लिए ना कोई जगह थी और ऐसा कदम उठाने के लिए न कोई आत्मविश्वास. मेरे भाई ने मेरी मदद से साफ़ इंकार कर दिया था और माँ, जो विधवा थी, के ऊपर दो और कुंवारी बहनों ज़िम्मेदारी थी. मैंने अपनी ज़िन्दगी को इस हाल में ही स्वीकार कर लिया था और चुपचाप हर दिन की मार और गालियां सह रही थी.
११९४ में मुझे एक बेटा हुआ और मैं बहुत खुश थी. मुझे लगने लगा की शायद पिता बन कर मेरे पति बदल जाएँ. मगर मैं गलत थी. मेरे पति को तो जैसे अपने गुस्से को निकालने का एक और शिकार मिल गया था.
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मेरे लिए सब कुछ असहनीय तब हुआ जब मेरे पति उस नन्ही सी जान पर हाथ उठाने लगे. मैं कैसे किसी को भी उसे तकलीफ पहुंचने दे सकती थी जो मेरे लिए इतना बेशकीमती था.
बस अपनी ज़िन्दगी को देखने का नजरिया मैंने बदल दिया। अब प्रताड़ना के बाद मैं अपने पति के सामने रोती बिलखती नहीं थी, मैं खुद को कमरे में बंद कर अपने लिए समय निकाल लेती थी. उस समय मैं बैठ कर कुछ लिखती थी और कुछ पढ़ती थी और इससे मुझे बहुत सुकून मिलता था.
मैं २०१३ का वो दिन कभी नहीं भूलूंगी जब उसने मेरे बड़े बेटे को इतना मारा की वो बेहोश हो गया. हाँ, मुझे भी शोषित किया गया था मगर उस दिन मेरे बेटे की थी. ऐसा लगा जैसे खुद भगवान् ने आकर मुझे शक्ति दी हो और मैंने अपने अंदर एक आवाज़ सुनी, “बस अब और नहीं”. मैं चुपचाप घर से निकल गई और थाने में एफआईआर करने की नाकाम कोशिश की. जब थाने से लौटी तो मेरे हाथ पर एक समाजसेवी संस्था का नंबर लिखा था. संस्था थी हेल्पिंग हैंड्स फाउंडेशन. मैंने उसे फोन किया और उस दिन से फिर मैंने पलट कर नहीं देखा. मैंने फैसला कर लिया था.
मेरे अपने परिवार ने मुझे सहारा नहीं दिया तो मैंने अकेले ही अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ केस फाइल किया. बदले में उन लोगों सोलह केस दर्ज़ कर दिए. मैंने ये लड़ाई ढाई साल तक लड़ी. वो मेरे लिए ज़िन्दगी का सबसे मुश्किल समय था मगर मुझे मेरे दोनों बच्चों से हिम्मत मिलती थी. छोटा बेटा २००४ में हुआ था. और हाँ हिम्मत इस बात से मिलती थी की अब मैं उस रिश्ते में वापस कभी नहीं जाऊँगी जहाँ मेरी आत्मा तक छलनी हो गई थी.
एक कोर्ट से दुसरे कोर्ट तक दौड़ते भागते मैंने अपने दोनों बेटों की कस्टडी ली और एक घर जिसमें हम रह सकें. मैं केस जीत गई और २०१४ में मुझे अपने पति से तलाक़ मिल गया. मैंने अपने दोनों बच्चों को एक शोषण करने वाले पिता से अलग करने में सफल हुई. कभी कभी मुझे खुद पर आश्चर्य होता है की मुझ में ये सब करने की हिम्मत कहाँ से आई.
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उम्मीद करती हूँ की जो महिलाऐं घरेलु शोषण का शिकार हो रही हैं, वो कोई ठोस कदम उठाने में मेरे जितनी देर न कर दें. उन्हें अपने पति के लिए और उसके व्यवहार के लिए खुद को दोषी समझना या उसके लिए माफ़ी माँगना बंद करना होगा.
आज मैं एक प्रेरणादायक लेखिका हूँ और मैंने अब तक तीन किताबें लिखी हैं. मेरा बड़ा बेटा पढ़ाई के साथ साथ काम भी करता है. जब एक दिन गुस्से में मेरे पति ने मेरे बेटे के मुँह पर कॉफ़ी फेंकी थी, उस कॉफ़ी के निशाँ आज भी उस घर की दिवार पर हैं. मुझे नहीं पता की मेरे पति और उनके परिवार वाले केस हारने के बाद कहाँ पलायन कर गए. मैं उनके बारे में कुछ जानना भी नहीं चाहती हूँ. मैं खुश हूँ और सुकून से हूँ की मेरे बच्चे मेरे साथ हैं. वो सुरक्षित हैं और ये बात मेरे लिए सबसे अधिक महत्त्व रखती है.
(जैसा मरिया सलीम को बताया गया)
Bahut umda vritant
came here via Quora https://hi.quora.com/%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%BF/answers/96656959