देखिए, यह सब हमारे विवाह के पहले वर्ष में शुरू हुआ जब मुझे अहसास हुआ कि मेरे पति को जमाई शष्ठी पर बुरी तरह नज़रंदाज़ किया जा रहा है, वह दिन जब पूर्वी भारत में, विशेष रूप से बंगाल में, जमाई अपने ससुराल वालों से हर तरह की तवज्जो प्राप्त करता है, उस पर उपहारों की बौछार होती है, और उसे लाड़ प्यार से शाही दावत दी जाती है।
मैंने अपने पिता को ठेठ जमाई के रूप में कभी नहीं देखा था। लेकिन जहां मेरे पति के विवाहित भाई-बहन और कज़िन इस दिन को धूम-धाम और ठाठ-बाट के साथ मनाते थे, मैं सोचती हूँ कि क्या मेरे प्रिय पति अपनी पहली जमाई शष्ठी पर उपेक्षित महसूस कर रहे थे।
मुझे पता था कि मेरी माँ इस तरह के अवसरों को प्यार नहीं बल्कि पैसे का निर्लज्ज दिखावा मानती थी और उसे ऐसे दिन पर न्यौता तक देने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, उसे उपहार देना या घर पर बुलाना तो दूर की बात है। मेरे लिए भी, एक शांत प्यार भरी बातचीत अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
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फिर भी, जब मेरे पति ने बताया कि उनके कार्यालय में आधे दिन में ही छुट्टी हो जाएगी क्योंकि सभी जमाई बाबू जल्दी निकल जाएंगे या छुट्टी मारेंगे, एक चिलचिलाती गर्मी की दोपहर में भव्य भोजन का स्वाद लेने अपने-अपने ससुराल जाने के लिए, तो मैंने तय किया कि मैं स्वयं उन्हें पार्टी दूंगी। मेरे शर्मीले जीवनसाथी इस विचार से ही शर्मा गए कि उनकी पत्नी उन्हें किसी भी होटल में एक पांच सितारा जमाई शष्ठी थाली खिलाने वाली है, जिनमें से अधिकांश ने विशेष मेन्यू तैयार किए थे, ताकि उदार सास अपने दामाद को एक बहुत ज़्यादा महंगा भोजन पेश कर सके। थोड़ी बहुत खुशामद करने के बाद मैंने उन्हें मना ही लिया।
हमें क्या पता था कि हमारे जीवन की सबसे पहली और सबसे अंतिम जमाई शष्ठी हास्यास्पद परिस्थितियां उत्पन्न कर देगी। जैसे ही हम उस शानदार भोजन कक्ष में बैठे और हमने जमाई थाली मंगवाई, जिसमें मछली से लेकर मटन, झींगा और केक, मिठाई से लेकर रबड़ी और आम तक लगभग सबकुछ था, वेटर भौंचक्का रह गया। पांच सितारा सुविधा होने के नाते उसे विनम्र होना सिखाया गया था और इसलिए उसने नहीं पूछा कि कौन जमाई है और कौन सास। हमारे 20 के दशक में, अपनी जीन्स और ट्राउज़र में हम कॉलेज के विद्यार्थी ज़्यादा लग रहे थे। हाँ, हम साड़ी और कुर्ते में स्वयं को सजाना भूल गए थे, और हम उन जमाईयों और सास, साथ में पत्नी और विस्तरित परिवारों को घूर रहे थे जो ठेठ पारंपरिक बंगाली परिधान साड़ी और धोती पहने बैठे थे।
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मेरे पति ने अचानक बताया कि उन्हें धोती पहननी नहीं आती और कुर्ते में उन्हें असहज महसूस होता है। मैं मुस्कुराई और कहा कि अगर उन्हें पहनना आता भी होता, तब भी मैंने उन्हें नहीं दिलाया होता क्योंकि मैं वैसे भी इस शाही पार्टी के लिए अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर रही हूँ।
थाली का विस्तार देख कर मैं सोच में पड़ गई की भोजन के बाद जमाईयों को हाजमें की कितनी गोलियां लेनी पड़ेंगी। उम्मीद है कि सास अपने उपहारों के साथ हाजमे की गोलियां भी दे रही होगी। हालांकि मैं खाने की बहुत शौकीन नहीं हूँ, मुझे अहसास हुआ कि सर्वश्रेष्ठ चयापचय दर के साथ खाने का सबसे बड़ा शौकीन भी मटन, झींगा और मछली के मिश्रण को तेल से लथपथ लुची, जो नियमित अंतराल पर परोसी जा रही थी, के साथ पचा नहीं पाएगा। फिर भी, दायीं ओर एक नज़र डालने पर, मैंने देखा एक संकोची जमाई बाबू फुल्के ठूसे जा रहा था, जबकि उसकी पत्नी उसे निर्देश दे रही थी कि अगले दिन ट्रेडमिल पर कुछ मील अतिरिक्त चले। और तपती गर्मी में जैकेट और टाई पहने मेरी बायीं ओर बैठा फिरंगी जमाई भी टेबल मैनर्स को ताक पर रख कर बड़े-बड़े झींगे उठाने से स्वयं को रोक नहीं पा रहा था, जबकि उसकी उदार सास बोलते नहीं थक रही थी कि उसका जमाई इस शुभ दिन में भाग लेने के लिए एक दिन पहले ही अमेरिका से आया है!
हंसी रोकते-रोकते लगभग मेरी सांस ही रूक गई जब मैंने एक अन्य जमाई को अपने कांटे से मछली की हड्डियों को उठाने की कोशिश में बुरी तरह नाकाम होते देखा, मुझे अहसास हुआ कि मैंने बहुत कम खाया है और उस पुरूष पर तो ध्यान ही नहीं दिया जिसे लाड़ प्यार किया जाना था। लेकिन मेरे पति तब तक उतना खा चुके थे जितना उन्हें खाना था, क्योंकि वह हमेशा सख्त डाइट पर रहते हैं और उन्होंने बिल के लिए वेटर को बुला लिया। और चूंकी मैं डेज़र्ट प्लैटर में से मिठाई का चयन करने में व्यस्त थी (मीठे में मेरी रूचि को देखते हुए, मैं सबकुछ मंगवाना चाहती थी), मेरे चतुर पति भुगतान कर भी चुके थे। मैंने प्रबल रूप से विरोध किया, इतना ज़्यादा कि कुछ सास मुझ पर अशिष्टतापूर्ण नज़र डालने लगीं जिन्हें निश्चित रूप से यह लग रहा था कि मेरे पति अपनी रखैल को यह भव्य भोजन खिला रहे थे। नहीं तो क्या जमाई शष्ठी के दिन एक पति अपनी पत्नी को पार्टी देगा! लेकिन मेरे पति ने गर्व से मेरा हाथ थामा और मेरे कान में बुदबुदाए ‘बोउ शष्ठी मुबारक हो (बंगाली में दुल्हन को बोउ कहते हैं)। मैंने भी उनका हाथ दबाया और हमारी पहली और आखरी साझी जमाई शष्ठी पर दिल खोलकर हंसी।