मैं एक लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हूँ। मेरा पूर्व पति सिंगापुर में रहता है। हमें आधिकारिक रूप से अलग हुए काफी साल हो चुके हैं लेकिन 9 साल पहले मेरे बेटे और मैंने सिंगापुर छोड़ दिया और हम वापस भारत आ गए।
एक स्वतंत्र स्त्री और एक माँ के रूप में मैंने अपने जीवन को अब तक अच्छी तरह मैनेज किया है। यह मेरे माता पिता के कारण है जिन्होंने मुझे बहुत कम उम्र से ही सशक्त और स्वतंत्र होना सिखाया था। सौभाग्य से, मुझे एक उत्कृष्ट सहयोग सिस्टम मिला है। मेरे पति और मेरे बीच मतभेद थे लेकिन हम अच्छी तरह से अलग हुए। इतना ज़्यादा कि वह लगभग हर उस चीज़ में शामिल होता है जो हम एक परिवार के रूप में करते हैं। बल्कि जितना करीब वह उसके माता-पिता से है, उससे ज़्यादा मैं उनके करीब हूँ। हमारी शादी सफल नहीं हुई, लेकिन हमारी दोस्ती जो हमारे मिलन के शुरूआती दिनों में हमारे बीच हुई थी, वह अब भी जारी है। चूंकि हम दोनों अड़ियल हैं, हमारे बीच अब भी बहसें होती हैं लेकिन वह हमें ज़रूरत पड़ने पर एक दूसरे से सलाह लेने या मार्गदर्शित करने से नहीं रोकती।
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पिछले कुछ वर्षों से, मुझे लगता है कि एक औरत होने के नाते, मैं कुछ ज़्यादा ही अड़ियल और मुखर हूँ और अब कभी किसी भी तरह का अंतरंग संबंध नहीं बना सकती, खास तौर से भारतीय सेटअप में। भारत में स्त्रियों को मधुरभाषी, स्वीकार्य होना और प्रश्न ना पूछना सिखाया जाता है। मेरी शादी के बाद, मुझे धीरे-धीरे पता चला कि ज़्यादातर लड़कियों की तुलना में मेरी परवरिश अलग ढंग से की गई थी।
यह मेरी परवरिश में है
बढ़ते हुए, मेरे भाई और मेरे लिए समान नियम थे और हमें समान स्वतंत्रताएं दी गई थीं। तो आज मैं जैसी हूँ उसका कारण मेरे अनुशासनात्मक पिता द्वारा सिखाए गए मूल्य हैं जिन्होंने मुझे स्वतंत्र और सरल, आध्यात्मिक लेकिन गैर परंपरागत माँ होना सिखाया। इसके अलावा जो है वह मेरे अपने निहित गुणों के कारण है।
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मैं हमेशा से एक अभिव्यक्तिपूर्ण व्यक्ति रही हूँ। इतना ही नहीं, मैंने कभी भी अपनी बात को स्पष्ट रूप से बयान करने से संकोच़ नहीं किया। इसी बात ने मुझे जीवन में कई बार परेशानी में डाला है। एक बार जब मैं आठ या नौ साल की थी तब एक सहेली के घर के बाहर खेल रही थी तो एक असभ्य दिखने वाला आदमी हमारे पास आया और मेरी सहेली को कहा कि कि उसके बाप को बुलाए। मैं उसके अपमान से इतनी ज़्यादा परेशान हो गई कि इससे पहले कि वह जवाब दे सके मैंने तेज़ी से उत्तर दिया कि अंकल होने के बावजूद उसमें बात करने की तमीज़ नहीं है।
अगले दिन मैंने उसे फिर से हमारे नए स्कूल में देखा जहां मैं मेरे पिता के साथ प्रवेश लेने गई थी। मैं हद से ज़्यादा डर गई जब मुझे पता लगा कि वह स्कूल का प्रिंसिपल है। शुक्र है कि मुझे मेरी पिछली शाम के बर्ताव के कारण थोड़ी सी डांट के बाद प्रवेश दे दिया गया।
मैं हमेशा अपने मन की बात कहती थी
मेरी शादी के बाद भी, मैंने वही दृष्टिकोण बनाए रखा। एक जोड़े के रूप में, मेरे पति और मैं कई मुद्दों पर असहमत होते थे और चुपचाप उसकी बात मानने की बजाए मैं खुले तौर पर अपनी राय व्यक्त किया करती थी।
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हमारी बहसें सोफे के रंग या फिर हमें कितनी बार सेक्स करना चाहिए जैसी छोटी-छोटी बातों पर होती थीं। हर बार जब हम घर का सामान लेने आइकिया स्टोर जाते थे हम मूलभूत रसोई के सामान के बारे में झगड़ पड़ते थे (जैसे कि पाट्स, पैन, छुरी और कांटा) जो खरीदने की हमें ज़रूरत थी। मेरे जीवन में पहली बार, मैंने अपनी खुद की क्षमताओं पर शक करना शुरू कर दिया।
वैसे देखा जाए तो, वह एक अच्छा व्यक्ति है लेकिन साथी ही कंट्रोल फ्रीक भी है और चाहता है कि चीज़ें उसके तरीके से ही की जाएं। मुझे महसूस हुआ कि मेरी राय और प्रयास को अनदेखा किया जा रहा था। उसका बढ़ता हस्तक्षेप और तुनकमिजाज़ बर्ताव मुझे अपमानित महसूस करवाता था।
यहां तक कि मेरे कपड़ों पर भी अक्सर सवाल उठाए जाते थे। एक बार, मैंने चाइनाटाउन से खुद के लिए एक प्यारी चीनी ड्रेस (चियांगसम) खरीदी। उसने मुझसे कहा कि वह मैं सिंगापुर में ना पहनूं। उसका कारण था कि या तो लोग सोचेंगे कि मैं पर्यटक हूँ या उन्हें लगेगा मैं घुलने मिलने की बहुत कोशिश कर रही हूँ। मुझे लगा कि वह सतही और आलोचनात्मक हो रहा है और मैंने उसे यह कह दिया। इतना ही नहीं, मैंने कई अवसरों पर उसे पहना भी। ये निरंतर असहमतियां, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर, जिसमें हम दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं होता था, उसने स्थिति को बद से बदतर कर दिया और हमें दूर कर दिया, और यह हमारे ब्रेकअप के प्रमुख कारणों में से एक बन गया।
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अगर मेरी जगह कोई और होता, तो वह मेरे पति की मांग के आगे झुक गया होता या फिर उसने चीज़ों को व्यवहारकुशलता से संभाल लिया होता। लेकिन मैं नहीं कर सकती। मैं वह कला कभी नहीं सीख सकती। और इतने सालों बाद, मैं अब भी चीज़ों के बारे में चतुर नहीं हो सकती।
स्वतंत्र होने से मुझे मदद मिली है।
हालांकि, पीछे मुड़ कर देखने पर मुझे लगता है कि जीवन और लोगों के प्रति मेरे असहनीय, स्पष्ट और सीधे दृष्टिकोण ने मेरी शादी के टूटने समेत कई आपदाओं और मुसीबतों से बचने में मेरी मदद की है। मैं लोगों को आसानी से माफ करने और आगे बढ़ने में सक्षम हुई। साथ ही, मेरा मानना है कि जब चीज़ें गलत हो जाती हैं और संबंध टूट जाते हैं, तो स्पष्ट होना और कड़वाहट और दर्द को छुपाने की बजाए उससे छुटकारा पाना सबसे अच्छा है, जो अंततः अधिक नुकसान पहुंचाता है और उपचार प्रक्रिया में बाधा डालता है।
इन वर्षों में, मैं नर्म पड़ गई हूँ और अब मैं अपनी लड़ाईयां खुद चुनती हूँ। मैं महत्त्वहीन या अत्यधिक कठिन तर्कों में भाग नहीं लेती जो मुझे कुछ लाभ देने की बजाए स्थिति को और बिगाड़ दे। हालांकि, मैं अब भी विश्वास करती हूँ कि स्त्रियों को अपनी राय स्पष्टता से बतानी चाहिए, ऐसा करने के बारे मंन खुद को दोष दिए बगैर, खासतौर से उन मामलों के लिए जो उनके जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेंगे।
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