नवंबर का वो सुहाना दिन था, और हम दोनों क्लाइंट से मिलने के बाद ऑफिस वापस जा रहे थे. हम दोनों गुरुग्राम की एक मार्केटिंग कंपनी में कार्यरत थे. मैं चुपचाप बैठा था और वो भी कुछ नहीं बोल रही थी.
मैं बहुत अंतर्मुखी हूँ
अक्सर महिलाओं के साथ बातचीत का अनुभव थोड़ा कष्टप्रद ही रहा है. और ये इसलिए क्योंकि मैं अंतर्मुखी हूँ. मेरा ये मानना है की बात करने की कला में हर कोई निपुण नहीं होता है. ज़्यादातर लोग तो सिर्फ ये कामना ही रखते हैं की काश वो भी बातें करना जानते. तो हमारी क्लाइंट मीटिंग के दौरान भी मैं अधिकतर शांत ही रहा और उसने ही ज़्यादा बातें की. मैं तो बस वक़्त वक़्त पर हम्म्म और सर हिला कर अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहा था.
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उसमे एक अजीब सी कशिश थी. उससे बातें करते हुए ऐसा लगता था मानो आप एक अँधेरे कमरे से निकल कर एक सुन्दर से रौशनी से भरे बाग़ में आ गए हो. वो तीस के आस पास की होने वाली थी, और मैं २३ साल था. हम दोनों के बीच करीब छह साल का फासला था, और इसके कारण हम दोनों के बीच किसी रूमानी रिश्ते के सम्भावना भी न के बराबर थी. मगर ये फासला इतना भी नहीं था की मैं उससे मिलने की अपनी तड़प को मिटा पता. तो दोपहर जब उसके लंच का टाइम होता, मैं भी कैफेटेरिया के चक्कर लगाने लगता.
वो मेरी बातें सुनती थी
मेरे जैसे अंतर्मुखी इंसान के लिए उसकी दोस्ती बहुत असाधारण थी. वो मुझे एक बच्चा कहती थी और मैं उसे आंटी बुलाता था. उसके आस पास रहने से मेरे मन में एक नयी उमंग और आत्म विश्वास भर जाता था. उससे बातें करता था तो मेरे अंदर की सारी झिझक जैसे ख़त्म हो जाती थी. उसकी वही कशिश ही थी जो मुझे उसके पास खींच कर ले जा रही थी. क्योंकि मैं खुद भी बहुत कम बोलता हूँ, अक्सर लोग मुझसे बातें सिर्फ जवाब देने के लिए करते थे. मगर वो बैठती थी ताकि मेरी बातें सुन सके. ये मेरे लिए एक नया अनुभव था.
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हम दुनियाभर की बातें करते थे, और हमारी बातों में हमेशा सच्चाई और गहराई होती थी. मैं अक्सर उसके पास मदद मांगने जाता था, और वो मुझे कभी मना नहीं करती थी. न मेरी छोटी मोटी गलतियों पर खीज़ती, न मेरा मज़ाक उड़ाती. उसकी यही बातें मुझे उसके पास खींच रही थी.
ये मेरा एकतरफा प्यार था
मैं उसके लिए बस एक दोस्त, एक सहकर्मी और राज़दार था. मगर मैं उसके लिए कुछ अलग महसूस करता था. एक आकर्षण था जो मुझे उससे दूर नहीं जाने देता था. जब मैंने नौकरी से इस्तीफा दिया, वो बहुत आश्चर्यचकित हो गई थी. हम इतनी बातें करते थे मगर मैंने कभी उसे इस बारे में कुछ नहीं बताया था.
जब मैं आखिरी दिन ऑफिस गया, हमें एक दुसरे से बातें करने का मौका ही नहीं मिला. मैं उसे बताना चाहता था की मेरी ज़िन्दगी में उसके बिना एक सूनापन रह जायेगा जो मुझे शायद बिखेर देगा. शायद हम दोनों ही बातें करना चाहते थे मगर कुछ भी कह न सके.
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हांलांकि मुझे नहीं पता की जो मैं उसके लिए महसूस करता था, वो प्यार था या नहीं, मगर मैं एक बात यकीं से कह सकता हूँ की हमारी दोस्ती मेरे लिए एक बेशकीमती रत्न जैसा था, जो शायद मुझे दोबारा कभी न मिले.
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