जैसा कि तान्या मैथ्यू को बताया गया
मैं 19 साल की थी जब मेरी शादी हो गई। यह 1980 का दशक था और जैसा कि तब के रिवाज थे, मैं अपने पति से पहली बार सगाई के दिन मिली। मेरी सभी सहेलियां मेरी निकट भविष्य में होने वाली शादी से ईर्ष्या कर रही थीं। क्योंकि मेरी शादी ’बंबई’ के एक अमीर परिवार में हो रही थी। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहकर, मुंबई जाना मेरे लिए सपने के सच होने जैसा था। मैं बहुत खुश थी। मैं वरसोवा के एक बड़े फ्लैट में अपने संयुक्त परिवारके साथ रहने चली गई जिसमें मेरे सास-ससुर, मेरे पति की पाँच बहनें और बेशक मेरे पति शामिल थे। तब दुर्व्यवहार शुरू हुआ।
दस लोगों के लिए खाना बनाना, घर की साफ-सफाई करना और कुत्ते द्वारा गंदा किया घर साफ करना- इस सारी हलचल में मैंने अपने आप को खो दिया पर मैंने कभी किसी काम को मना नहीं किया और अपनी मदद के लिए खुद का तरीका खोजा। एक बार मैंने अपनी ननद से एक हेयर ड्रायर मांगा जिसके लिए मुझे सारे दिन ताने दिए गए (एक गंवार लड़की ने मेरा हेयर ड्रायर कैसे मांग लिया? क्या तुमने आज तक कभी हेयर ड्रायर देखा भी है?) इस सब के दौरान मेरे पति चुपचाप खड़े रहे।
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फिर मेरे ससुराल वाले रोज़ मेरा भावनात्मक शोषण करने लगे…हर घंटे। मेरे माता-पिता को गालियां देने से लेकर मेरा आत्मविश्वास तोड़ने तक – मुझे यह कहना कि मैं बोझ हूँ, खराब हूँ, मुझसे यह कहना कि मुझमें क्लास या सोफेस्टिकेशन नहीं है।
मेरे देवर ने एक दिन मुझे थप्पड़ तक मारने की कोशिश की तब मेरे ससुर ने अंततः बीच-बचाव किया। हमारी शादी में हमें प्राप्त हुए सभी उपहार और पैसे हमसे ले लिए गए थे। यहाँ तक कि मेरी शादी का जोड़ा भी।
मैं हैरान थी कि मेरे पति इस सब के दौरान चुप थे। न तो उनके पास नौकरी थी और न ही अन्य कोई आय। हम मेरे अमीर सास-ससुर पर निर्भर थे। मैंने अपने माता-पिता से कहा।लेकिन उन्होंने मुझे यह सब खुद सुलझाने के लिए कहा और इसे अनदेखा कर दिया।
मेरे पति ने अजीब लक्षण दिखाने शुरू कर दिए। वे रैंडम चीजों पर अचानक चिल्लाना शुरू कर देते, वे बहस करते कि “हम प्रेशर कुकर को रसोई के बजाय हॉल में क्यों नहीं रखते?“ वे हर पड़ोसी से झगड़ा करते और चिल्लाते हुए और लोगों को अपशब्द कहते हुए सड़कों पर भागते। मैंने देखा की उनकी माँ उन्हें छुप कर दवाईयां दे रही थीं। तब मुझे यह महसूस हुआ कि इतना बड़ा परिवार यूपी के एक छोटे से कस्बे में अपने बेटे की शादी के लिए लड़की ढूंढने क्यों आया। मैं गर्भवती थी जब मुझे यह अनुभव हुआ। मेरे पति गंभीर सिज़ोफ्रेनिया से ग्रसित थे।
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मैं कई दिनों और महीनों तक रोती रही। मैं नहीं जानती थी कि क्या करूँ। मुझे मेरे पति से प्यार था पर मुझसे झूठ बोलने के कारण मैं उनसे नफरत भी करती थी। मैं उन्हें छोड़ भी नहीं सकती थी। मैं कहीं जा भी नहीं सकती थी।
वह एक अच्छे व्यक्ति थे लेकिन उनके पागलपन के दौरे ने मेरी स्थिति दयनीय बना दी थी, वे हमेशा दूसरों के सामने मुझे नीचा दिखाते थे। भारत मानसिक रूप से अक्षम लोगों के प्रति उदार नहीं है। मेरे पति को उनकी बिमारी की वजह से उनके आसपास के लोगों द्वारा गाली दी जाती थी और यहां तक कि उनपर हाथ भी उठाया जाता था।
तब मैं धार्मिक हो गई। मैंने प्रार्थना करनी शुरू की और भगवान से मदद मांगी। और हो सकता है यह घिसा पिटा लगे, लेकिन हर दिन पिछले दिन से आसान होने लगा। आखिरकार मैंने अपना डर खो दिया, अपने बच्चे का डर, मेरे सास- ससुर का डर, मेरे पति की बीमारी का डर, वित्तीय सुरक्षा न होने का डर, सबसे बुरा पहले ही घट चुका था। इससे बुरा नहीं हो सकता था। पाँच महीने के गर्भ के साथ मैंने बैंगलोर में अध्यापक की नौकरी के लिए साक्षात्कार दिया और नौकरी प्राप्त कर ली। मैंने स्थिति को संभाला और निर्णय किया कि हम खुद बेहतर होंगे। मैंने अपनी शर्तों पर दुनिया का सामना करने का निर्णय किया।
एक गर्भ, मानसिक रूप से विकलांग पति और 300 रूपये के साथ मैं बैंगलोर की ट्रेन में बैठ गई- आजादी की ओर। मुझे एक छोटे निजी प्री स्कूल में नौकरी मिली थी। गर्भ के साथ स्कूल में छोटे बच्चों को संभालना बहुत चुनौतीपूर्ण था। लेकिन काम ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। इसने मुझे महसूस कराया कि मैं भी अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण थी। मैं बहुत खुश थी कि मैं शिक्षित थी, और मेरी डिग्रियां ही मेरी संपत्ति थी।
हमारे पारिवारिक मित्रों ने हमें अपने सरवेंट क्वार्टर में कमरा दे दिया। यह छोटा और गन्दा था लेकिन यह घर था और मैं खुश थी। मैं इसे जानती इससे पहले ही मेरे बच्चे ने जन्म ले लिया। बच्चे के बाद मेरे पति ने मेरी बहुत मदद की। उनका सबसे बड़ा गुण था जब मैं काम करती तो वह बच्चे की देखभाल करते, खाना बनाते, घर को साफ करते और संभालते। यह परंपरागत शादी नहीं थी पर यह काम कर रही थी। शहर नया था, भाषा अलग थी, मौसम आश्चर्यजनक था —- एक नई शुरुआत के लिए आदर्श था। और वही हमने किया।
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अब मेरी शादी को 32 साल हो चुके हैं और मेरे दो बच्चे हैं। एक डाक्टर और एक इंजीनियर। मेरे पति अब पहले से बहुत बेहतर हैं हालांकि वह पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं। मैंने सैंकड़ों बच्चों को पढ़ाया और अपने देश के भविष्य-निर्माण में मदद की। इससे ज्यादा क्या चाह सकते हैं? कई बार मैं हैरान होती हूँ कि यह सब मेरे साथ ही क्यों हुआ? एक प्यार करने वाले पति और सामान्य सास-ससुर के साथ मेरी जिंदगी सामान्य क्यों नहीं हो सकती थी? पर जैसा कि कहा गया है सोने को चमकने के लिए तपना ही पड़ता है। मैं यह सीख चुकी हूँ कि युवा लड़कियाँ आज कठिन चुनौतियों का सामना कर रही हैं। पर मैं उनसे कहना चाहूँगी कि सबसे पहले खुद को खुश रखें, खुद को जानें, अपनी बुद्धिमत्ता, कैरियर और चरित्र को बनाएँ। कोई भी एक मजबूत और आत्मविश्वासी लड़की का शोषण नहीं कर सकता। मेरी सभी माताओं से प्रार्थना है कि अपनी बेटियों को मुक्त और मजबूत बनाएँ जिससे वे खुद की मदद कर सकें जब उनकी कोई मदद न कर सकता हो। जीवन अप्रत्याशित है, बुरे से बुरे के लिए तैयार रहें और सर्वश्रेष्ठ की आशा करें!