जैसा पारोमिता बारदोलोई को बताया गया
(पहचान छुपाने के लिए नाम बदले गए हैं)
मेरा नाम प्रज्ञा है. मैं भारत के एक छोटे से शहर से हूँ. अपने माँ बाप की एकलौती बेटी हूँ और उनका एक छोटा सा बुटीक है. पिछले साल ही मेरे कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई है. अब मैं अपना बीएड कर रही हूँ और मैं आगे जाकर किसी सरकारी स्कूल मेंपढ़ाना चाहती हूँ. अभी मैं एक प्राइवेट स्कूल के प्राइमरी बच्चों को पढ़ाती हूँ. प्राइवेट टूशन भी लेती हूँ. पहले मैं सरकारी स्कूल में पढ़ी और फिर सरकारी कॉलेज में. हम कभी भी बहुत अमीर या बहुत गरीब नहीं थे. बस इतना था की ज़िन्दगी की ज़रूरतें पूरी हो जाती थी. मेरे माँ बाप के सिले हुए कपडे ही पहनती थी, दो जोड़ी जूते थे और खेलने के लिए कुछ गुड़िया. छुट्टियां होती तो कुछ दिन के लिए दादा दादी के पास जलंधर चले जाते. दिल्ली के आलावा और किसी बड़े शहर नहीं गई हूँ. मेरे माँ पिता बहुत ही शरीफ और इज़्ज़तदार लोग है. उनका सपना बस ये है की मैं जल्दी से सरकारी नौकरी करूँ और फिर वो मेरी शादी करवा देंगे.
हमारी ज़िन्दगी बहुत संतुष्ट थी, मगर थोड़ी धीमी थी.और एक दिन मेरे माता पिता ने हमारी ज़िंदगी विस्तृत करने की ठानी. तो उन्होंने एक घर के लिए लोन लिया. एक साल के अंदर ही हमारी ये योजना विफल हो गई. मैंने तब तक पढ़ाना शुरू कर दिया था. हमें घाटा होने लगा और हमें लोन वापस करना था. मेरे माता पिता वापस से उस छोटी सी जगह पर काम करने लगे जहाँ उन्होंने पूरी ज़िन्दगी गुज़ारी थी.ज़िन्दगी वापस पहले जैसी हो गई बस अंतर ये था की अब हमारे ऊपर क़र्ज़ का भार था. और हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था की समय पर हम किस्तें कैसे अदा करें. मैंने घर पर ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया मगर क्योंकि मैं ये पहली बार कर रही थी, मेरे पास अभी ज़्यादा बच्चे नहीं आ रहे थे. हम सबसे मदद मांग रहे थे मगर कहीं कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. वो हमारी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल दिन थे, जब हम तीनों जीतोड़ मेहनत कर रहे थे, मगर हमारे पास पैसे नहीं आ रहे थे.
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एक दिन मैं सब्ज़ियां खरीदने बाज़ार गई थी जहाँ मैंने एक दिवार पर एक इश्तिहार चिपका देखा. उसमे लिखा थी की उन्हें महिला फ़ोन ऑपरेटर की ज़रुरत थी. काम आप घर से भी कर सकते थे. जब मैंने वो इश्तेहार देखा, तो तुरंत ही उस पर दिया फ़ोन नंबर नोट कर लिया. घर पहुंचते ही मैंने उस नंबर पर फ़ोन किया.
जिस महिला ने मुझसे बातें की, वो बहुत ही प्यार से बात कर रही थी. उसने मुझे कहा की मुझे पुरुषों से फ़ोन पर बातें करनी होगी. मेरी तनख्वाह इस बात पर तय होगी की मैं कितने पुरुषों से बात करती हूँ. उसने बताया की मैं जितने घंटे चाहूँ, ये काम कर सकती हूँ. मैं समझ गई की वो सेक्स कॉल ऑपरेटर की नौकरी थी.
मैं एक मिडिल क्लास लड़की थी और ऐसी नौकरी की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. मेरे उसूल और मेरी परवरिश मुझे थू थू कर रही थी. मैं दो रातों तक रोती रही मगर दूसरी तरफ क़र्ज़ और घर छीन जाने की घबराहट थी. अगर हम घर खो देते तो शायद हम सड़क पर आ जाते. मैंने फैसला कर लिया की मैं ये काम करूंगी.
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पहले दस दिन मेरे लिए सबसे ख़राब थे. मुझे एक वस्तु जैसा महसूस हो रहा था. मगर फिर मैंने अपने आप को समझाया की इस समय पैसे की हमें सबसे सख्त ज़रुरत है. शुरू में बहुत मुश्किल हो रही थी और फिर मैंने खुद को समझाया की फ़ोन पर जो महिला पुरुषों से बात कर रही थी वो कोई और थी. मैं तो एक स्कूल में पढ़ाती थी.
हर फ़ोन सेक्स के बारे में ही नहीं होता था. और मैं अनजान लोगों से बात करके उत्तेजित नहीं हो रही थी. सबसे बड़ी बात ये थी की मैं उस फ़ोन वाली लड़की से कोई भी सम्बन्ध नहीं महसूस करती थी. तो जब कई पुरुष मुझसे पूछते की मैंने क्या पहना है या ये की मेरे वक्षों का आकार कैसा है, तो मैं बेबाक कुछ भी बोल देती थी. हर दिन कुछ अलग सा जवाब दे देती थी. और पुरुष भी बहुत उत्तेजित हो जाते थे ये सोचकर की वो किसी महिला से ऐसी बातें कर पा रहे हैं. कभी कभी हंसी आती थी की मैंने असल में तो लौकी काट रही होती थी और बातें इतनी सेक्सी करती थी की लाइन के दूसरी तरफ बैठे पुरुष किसी और ही दुनिया में पहुंच जाते थे. मेरे लिए ये बस एक्टिंग थी. और मुझे इस नाटक के पैसे मिल रहे थे.
एक दिन मैं बाथरूम का फर्श रगड़ रगड़ कर साफ़ कर रही थी, और अपने कान से फ़ोन लगा कर एक पुरुष से बातें कर रही थी. विषय था हमारा सेक्स किसी स्विट्ज़रलैंड जैसी रोमांटिक जगह पर. मैं पूरी तरह उसे ऐसी काल्पनिक दुनिया में ले गई की उसकी सांसें उखड़ने लगी. मगर असल ज़िन्दगी में मेरे बाथरूम के फर्श चमक रहे थे.
रोल प्ले के लिए मुझे बहुत सारे कॉल आते हैं. इनमे भी सबसे ज़्यादा फरमाइश देवर और भाभी के रोल निभाने के लिए होते है. और हाँ हर बार दो तीन चीज़ें तो ज़रूरी ही होती है. मेरे वक्ष बड़े होने चाहिए, देवर हमेशा ही एक बहुत ही मासूम लड़का होता है और भाभी उसे अपनी तरफ रिझाती है. इसके अलावा कई बार पुरुष ऐसी स्त्री के लिए आग्रह करते हैं जो उनपर स्वामित्व दिखा सके और सेक्स में उन पर हावी हो जाए. देवर भाभी के अलावा बॉस और सेक्रेटरी के रोल के लिए भी कॉल आते हैं. कई पुरुष चाहते हैं की मैं उनसे गन्दी भाषा में बातें करूँ, गाली दूँ और लाइन के दूसरी तरफ वो इन बातों से उत्तेजक हो जाते हैं.
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कई विवाहित पुरुष भी होते हैं, और जो नहीं होते वो अक्सर शहरों के अंग्रेजी बोलने वाले, और बड़े दफ्तरों में काम करने वाले लड़के होते हैं. अधिकतर लड़के या तो इंजीनियर होते हैं या एमबीए। और हाँ, ऐसा नहीं है की हर कॉल सिर्फ सेक्स के लिए ही होती है. कई बार पुरुष बस बातें करने के लिए फ़ोन करते हैं. कुछ अपनी शादी से ऊब चुके होते हैं, कुछ फ़ोन करके खूब रोते हैं, कई ज़िन्दगी की बातें करते हैं तो कुछ बस ऐसे ही इधर उधर की शिकायतें.
मुझे आज भी वो एक कॉल याद है. उस रात एक लड़के ने मुझे फ़ोन किया. वो लगातार रोये जा रहा था. बस यही कह रहा था की उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे धोखा दे दिया और उसे समझ नहीं आ रहा की वो क्या करे. मैंने उसकी बातें सुनी, उसे समझाया और सांत्वना दी. जब तक हमने फ़ोन रखा, वो काफी हद तक शांत हो गया था. उस दिन उसने मुझे फ़ोन किया था क्योंकि शायद उसके पास रोने के लिए कोई और नहीं था. एक बार एक पुरुष ने फ़ोन कर के बताया की उससे अपने दादा दादी की मौत का सदमा झेला नहीं जा रहा है. वो चालीस वर्षीय था और अपने परिवार के साथ रहता था. उसने कहा की किसी को भी वो अपनी कमज़ोरी नहीं दिखा सकता था और उसे किसी से बात कर मन हल्का करना था. कुछ कॉल ऐसे घबराये हुए पुरुषों की आती हैं जिनकी शादी होने वाली होती है. कुछ प्यार के नुस्के लेने के लिए भी फ़ोन करते हैं. कुछ फ़ोन करते हैं क्योंकि वो अकेले है और कुछ क्योंकि उनकी उनके साथी से नहीं पटती।
लगता है की हमारे समाज में अकेलापन शायद सबसे बड़ी बीमारी है. अधिकतर पुरुष ये सोचते हैं की अगर किसी को अपने डर बता देंगे, तो समाज उन्हें कमज़ोर समझेगा. तो इसलिए मेरा काम अक्सर ऐसे पुरुषों की बातें सुनना और उनका मनोबल बढ़ाना है.
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दूसरी तरफ अब लगातार आते पैसे की मदद से मैं क़र्ज़ भी उतार पा रही हूँ. जैसे जैसे पैसे आते हैं, मैं किश्ते भर्ती जाती हूँ. इससे लेनदार भी अब काफी संतुष्ट हो गए हैं. क़र्ज़ भी किसी भूत सा होता है. आपके दोस्त, परिवार आपसे पीछा छुड़ा कर दूर तक भाग जाते हैं. आपका स्वाभिमान, आपकी इज़्ज़त सब खा जाता है ये क़र्ज़. आप अचानक अपने आपको कमतर समझने लगते हैं, और क़र्ज़ का भूत सारा दिन और सारी रात पीछे पड़ा रहता है. आप अजीबोगरीब डर से घिरने लगते हैं. क्या होगा अगर फ़ोन आने बंद हो जाएं? क्या फिर हमें घर छोड़ना पड़ेगा? कभी कभी मुझे उन लोगों से ज़्यादा मुस्कुरा कर बात करनी होती है जो लेनदार हैं. कभी कभी खुद से शर्मिंदा हो जाती हूँ. इनमे से कई लोग ऐसे हैं जिनसे शायद मैं बात करना पसंद नहीं करूंगी, मगर वक़्त के कारण मज़बूर हूँ. मगर हर महीने मैं उन्हें जब एक और किश्त देती हूँ, बहुत हल्का महसूस करती हूँ.
अभी मुझे कुछ और महीने लगेंगे क़र्ज़ को पूरी तरह उतारने में. मैं इंतज़ार कर रही हूँ. फिर मैं इस काम को छोड़ दूँगी. मेरा बीएड पूरा हो जायेगा और उम्मीद है की मैं किसी अच्छी जगह नौकरी कर सकूंगी. और तब ज़िन्दगी ऐसे बढ़ेगी जैसे ये सब कभी कुछ हुआ ही नहीं.
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क्या मैं अपराधबोध महसूस करती हूँ अपने काम के कारण? सच कहूँ तो नहीं. मुझे पता है की समाज मुझे धिक्कारेगा, मेरे माँ बाप का दिल बुरी तरह टूट जायेगा मगर ये काम ही है जिसके कारण हमारी छत हमारे ऊपर है. मेरे माँ पिता को पता है की मैं कुछ ऑनलाइन पढ़ाती हूँ जिससे मुझे अच्छे पैसे मिल रहे हैं. मुझे एक बात पता है की ये समाज न तो हमारे क़र्ज़ उतरेगा और न ही हमारा पेट ही भरेगा. मेरे लिए ये एक ज़रुरत थी और मैंने अपने परिवार की सुरक्षा को समाज से ऊपर रखा. मैं किसी को धोखा नहीं दे रही हूँ. जो भी मुझे फ़ोन करते हैं, वो जानते है की न मेरा नाम असली है और न मेरी पहचान.
क्या मैं ये सब किसी को बताने के लिए तैयार हूँ? नहीं. हमारा समाज इस तरह की सच्चाई के लिए अभी तैयार नहीं है. अगर सच सामने आ गया तो ये मेरे भावी जीवन और मेरे नज़दीकी लोगों को बहुत नुक्सान पंहुचा सख्त है. कभी कभी नहीं जानना ही बेहतर होता है.
मगर कभी कभी मुझे समाज के इस दोगले चेहरे को देख कर दुःख होता है. अगर किसी को मेरे काम की सच्चाई पता चली तो ये बदनामी ज़िन्दगी भर के लिए मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी। मगर कभी कोई उन पुरुषों से पूछेगा जिन्होंने मुझे फ़ोन किये थे. इस समय मैंने खुद ही सारे क़र्ज़ उतारने का बीड़ा उठाया है मगर मान लीजिये की मुझे लोगों से मदद मांगनी पड़े तो ये सब लोग आनन् फानन गायब हो जायेंगे. हम इस समाज के लिए, इसके डर से कितना कुछ करते हैं, मगर क्या कभी समाज हमें कुछ पलट कर देता है?
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