(जैसा रंजना कामो को बताया गया)
हमारी ज़िन्दगी में सब सही था
अजित और मेरी शादी १९८० में हुई थी. हमारी ज़िन्दगी काफी अच्छी चल रही थी. अजित बिज़नेस में बिजी रहते थे और मैं घर की बागडोर संभाल रही थी. अजित के बिज़नेस से घर भी आराम से चल रहा था. जल्दी ही हमारे इस खुश परिवार में एक बेटी और दो बेटे भी हो गए. अजित इस बात का पूरा ध्यान रखते थे की हर सप्ताहांत वो हम सब को फिल्म दिखाने या पिकनिक पर ज़रूर ले जाता था. मेरे परिवार वालों से भी अजित की अच्छी बनती थी और वो उनसे मिलने भी अक्सर जाता रहता था. मेरे सास ससुर हमारे बिलकुल पड़ोस में ही रहते थे और उनसे भी हम कम से कम हफ्ते में तीन बार तो मिल ही लेते थे. मुझे लगता था की शायद मैं दुनिया की सबसे खुशकिस्मत महिला हूँ. एक प्यार करने वाला पति, तीन प्यारे प्यारे बच्चे–सब कुछ बिलकुल आदर्श थे मेरे जीवन में.
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और फिर शादी के सात साल बाद हमारे शांत और खुशहाल जीवन में किस्मत ने एक करारा तमाचा लगाया.
अजित ने खुद को कमरे में बंद कर लिया
एक दिन अजित घर जल्दी आ गया और आते ही उसने कमरे में खुद को बंद कर लिया. मैं उसके इस व्यवहार से चकित भी हुई और परेशां भी. मैं बार बार उसके रूम का दरवाज़ा खटखटा रही थी मगर अजित ने दरवाज़ा नहीं खोला. बच्चे मेरे इर्द गिर्द खड़े हो गए क्योंकि अब उन्हें भी मेरी आवाज़ में टेंशन महसूस हो रही थी. मैं घर के बाहर मदद मांगने भागी. पडोसी घर पर नहीं थे तो मैंने अपने सास ससुर को बुलाया. मुझे वो सब कुछ एक बुरे सपने की तरह लग रहा था मगर वो सच था. मेरे सास ससुर भी बहुत कोशिश करते रहे मगर अजित ने दरवाज़ा नहीं खोला. बहुत देर तक उसकी मिन्नतें करी और फिर अजित ने दरवाज़ा खोला. मगर अजित बदल गया था. वो किसी से भी बात करने को तैयार नहीं था. मैं ये सब अपनी आँखों से देख कर भी विश्वास नहीं कर पा रही थी. इन दो घंटों में अजित इतना कैसे बदल सकता था.
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अजित ने कहा की उसे कोई परेशानी नहीं है. वो मुझे या अपने माता पिता को कुछ भी बताने को राज़ी नहीं था. हम सब उसके इस व्यवहार से अचंभित थे. मेरे सास ससुर को इसमें किसी की कोई साजिश लगी और मेरे पड़ोसिओं को किसी जादुई शक्ति का हाथ. मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की आखिर ये हो क्या रहा था. कई लोगों ने हमें सलाह दी की हम किसी मनोचिक्त्सक से सलाह लें और कुछ लोगों ने कहा की हमें साधु और तांत्रिकों की मदद लेनी चाहिए. हमने मदद लेने की कोशिश की मगर हमारी सारी कोशिश विफल हो रही थी. अजित किसी से भी बात करने को तैयार नहीं था. मेरा घर जो कभी बच्चों की हंसी और मस्ती से गूंजता था अब अजित की कटीली शान्ति से बिलकुल सुनसान हो गया था. मुझे ज़िन्दगी मेरे हांथों से फिसलती नज़र आ रही थी. बच्चे कुछ भी समझने के लिए बहुत छोटे थे मगर इतना तो वो भी समझ रहे थे की घर का माहौल उदासीन है. वो अब चुपचाप मेरी हर बात मानते थे और मेरी बेटी, जो तीनों में सबसे बड़ी है, मेरे कमज़ोर पलों में मेरा हाथ पकड़ मुझे सँभालने की कोशिश करती थी.
हमारी ज़िन्दगी बिखर गई
अजित ने काम पर जाना बंद कर दिया था. वो हमेशा कमरे के एक कोने में बैठ कर खिड़की से बाहर देखता रहता था. मैं जब भी उससे कुछ पूछती, वो या तो सर हिला कर जवाब देता या किसी साधू संत की कोई कही बात कह देता था. मैं उससे अगर पूछती की क्या उसे बसिनेस्स में कोई मुश्किल आ रही है तो वो मेरे प्रश्न को बिलकुल अनसुना कर देता था. आज तक हम सब नहीं समझ पाए है की अजित के अंदर ये बदलाव कैसे और क्यों आये.
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कुछ महीने यूँ ही निकल गए और फिर मुझे एहसास हुआ की हमारी आर्थिक स्तिथि अब ठीक नहीं थी. मेरे सास ससुर ने जब मुझसे पुछा की क्या मैं काम करना चाहूंगी, तब मैं सोचने लगी. मैं तो बस एक ग्रेजुएट थी और बच्चों को पढ़ाने के अलावा और कोई काम मुझे सूझ नहीं रहा था. मुझे अपना घर और अपने तीन बच्चे भी सँभालने थे, इसलिए घर से ही बच्चों को ट्युशन देने का विचार मुझे सबसे सही लगा.
मैंने ट्यूशन्स देने शुरू कर दिए
मेरे लिए अपने पड़ोसियों को इस बात के लिए मनाना की वो अपने बच्चे को मेरे होम स्कूल में भेजे. मेरे सामने और कोई उपाय नहीं था और इसलिए मैंने इस काम में अपना जी जान लगा दिया. मैंने फिर से पड़ोसियों और दोस्तों से बात करी और जल्दी ही मुझे मेरा पहला छात्र मिला. वो एक चार साल का बच्चा था और उसका एडमिशन नर्सरी में होना था. उसके दादाजी ने लिहाज़ में बच्चे को मेरे पास भेजने का फैसला किया था. मैं जानती थी की शायद ये मेरे लिए अकेला मौका था जब मैं अपनी क़ाबलियत दिखा सकती थी. वो बच्चा मेरे लिए बहुत लकी साबित हुआ. उसका अच्छा व्यवहार मेरे काम को अपने आप ही प्रशंसा दिलवाने लगा. मैंने उसे अक्षर ज्ञान, पोयम्स, रंग और हर वो विषय जो मुझे उपयुक्त लगा, सीखना शुरू कर दिया. बच्चा भी सब कुछ तेज़ी से सीखने लगा. जल्दी ही उसे देख कर दो और बच्चे अगले दो महीनो में मेरे स्कूल में आ गए और धीरे ये संख्या बढ़ने लगी.
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अजित अब भी नहीं बोलता था और बस जब भी मैं उसके पास से गुज़रती, वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगता. उसकी उस मुस्कान को देख कर मुझे उम्मीद बंधती थी की शायद सब ठीक हो जाये मगर अब वो पहले की तरह संवेदनशील नहीं रह गया था. एक बार मेरा बेटा बहुत बीमार हो गया और उसे हॉस्पिटल में भर्ती करने की नौबत आ गई. मैं और मेरे ससुर हस्पताल और घर के चक्कर लगते रहे और इस कारण मुझे स्कूल भी तीन दिनों के लिए बंद करना पड़ा. मगर अजित ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जब मैंने उसे हमारे बेटे की तबियत के बारे में बताया तो उसने मुझे सुनी आँखों से देखा और किसी कविता की एक पंक्ति कह दी जिसका अर्थ किसी भी तरह से उस स्तिथि के लिए नहीं था. कभी कभी उसके इस व्यवहार से मैं खिन्न हो जाती थी मगर फिर जब वो मुझे मुस्कुरा कर देखता, मेरे पास उसे माफ़ करने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता.
तुम उसके साथ रहती क्यों हो?
मेरे लिए स्तिथि बहुत जटिल होती जा रही थी. मेरे मित्र और पडोसी मुझसे बार बार यही पूछते थे की मैं एक ऐसे व्यक्ति के साथ क्यों रह रही हूँ जिसने सांसारिक जीवन को इस तरह से त्याग दिया है. हर बार मेरा एक ही जवाब रहता था, ” उसने मुझे सात खुशहाल साल और तीन प्यारे बच्चे दिए है. कुछ तो हुआ होगा जिसके कारण वो इस तरह बदल गया. जब तक वो मेरे आस पास है, मुझे हमारा घर सँभालने में कोई मुश्किल नहीं थी. हमारी संस्कृति और हमारी परवरिश हमें रिश्ते निभाना सिखाती है, पलायन करना नहीं. अगर उसकी जगह मेरी ये हालत होती तो क्या वो मुझे छोड़ कर चला जाता. सच कहूँ तो मुझे नहीं लगता की वो मेरा साथ छोड़ देता. मैं भी ज़िन्दगी के हर मोड़ पर उसका साथ देना चाहती हूँ. हो सकता है जिस तरह अचानक सब बिखर गया है, एक दिन अचानक ही सब ठीक भी हो जाए. हम दोनों ने एक बहुत ही प्यारा साथ निभाया है इतने सालों तक और अब जब उनकी हालत ऐसी है, मैं उन्हें और हमारे रिश्ते को यूँ छोड़ कर नहीं जा सकती. ख़ास कर इस समय जब उसे मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. ये एक बीमारी है और मैं उसके साथ ऐसे ही रहूंगी, हमारे अच्छे और बुरे वक़्त में.
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मुझे सब कुछ ठीक होने की पूरी उम्मीद थी मगर मुझे अब सुबह होती नज़र नहीं आती. मेरे बच्चे जैसे ही थोड़े बड़े हुए, उन्होंने मेरी मदद ट्युशन में करनी शुरू कर दी. वो बहुत ही संजीदगी से अपनी पढ़ाई के साथ साथ मेरी भी मदद कर रहे थे. ज़िन्दगी ने बहुत जल्दी उन्हें बहुत कुछ सीखा दिया और आज वो इतने समझदार और ज़िम्मेदार हैं की अपनी माँ की मदद करते हैं. वो स्कूल से वापस आते ही, अपना गृहकार्य पूरा करते और मेरे पास छत पर आ जाते जहाँ मैं अपना स्कूल चलाती हूँ.
मेरा स्कूल आज बहुत प्रसिद्द हो गया है
हम चारों मिल कर इतनी मेहनत कर रहे थे की धीरे धीरे उसका असर मेरे स्कूल की कामयाबी में दिखने लगा. इतनी बड़ी तादाद में बच्चे आने लगे की हमें तीन शिफ्ट में क्लास लेनी लगी. हम सुबह छह बजे से रात के आठ बजे तक काम करते थे. मैं सुबह की क्लास लेती थी क्योंकि उस वक़्त बच्चे स्कूल में होते थे और फिर बाकी की दो शिफ्टों में बच्चे मेरी मदद करते थे.
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इतने साल बीतने के बाद अजित अब मुझसे थोड़ी बातें करने लगा है. ये बात और है की हमारे वार्तालाप सिर्फ उसके चाय मांगने तक ही सिमित है. अब वो शाम की चाय मेरे लिए बनाता है और कई बार मुझे आराम करने को कहता है और खुद ही डिनर बना लेता है. मैं जब उसे मेरा ध्यान रखते देखती हूँ तो दिल बहुत हल्का महसूस होता है. बच्चे भी अब बड़े हो गए हैं. मेरी बेटी की शादी हो गई है और अब वो विदेश में रहती है. मेरा बड़ा बेटा एक एडवरटाइजिंग कंपनी में जॉब करता है और मेरा छोटा बेटा स्कूल चलाने में मेरी मदद करता है. मैंने अब दो टीचर रख ली हैं जो शिफ्ट सँभालने में मेरी मदद करती हैं.
मेरे स्कूल का नाम अब काफी अच्छा हो गया है और मेरे आसपड़ोस में ये काफी मशहूर हो गया है. अजित आज भी अपनी ही कविताओं और प्रार्थनाओं की दुनिया में रहता है और कभी कभी मुझे उसका प्यार और चिंता दिख जाती है जब वो मेरे लिए डिनर या चाय बनाता है. मुझे अब भी उम्मीद है की एक दिन अजित बिलकुल ठीक हो जायेगा और फिर वो पुराना मेरा वाला अजित हो जायेगा.