(जैसा रामेन्द्र कुमार को बताया गया)
पहचान सुरक्षित रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं
जब भी कोई वासना का उल्लेख करता है तो मैं निशा के बारे में सोचता हूँ, वह स्त्री जिसने मुझे सिखाया कि वासना उत्कृष्ट हो सकती है। वासना उत्कृष्ट है।
मैं उसे पहली बार तब मिला जब मैं ईंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में पढ़ रहा था। वह बी.एड पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने हमारे घर आयी थी। मेरे पिता, मजबूरीवश कुंवारा पुरूष और मैं, भुवनेश्वर में एक बहुत बड़े घर में रहते थे।
निशा के साथ बात करना आसान था और वह हंसी मज़ाक की कला में माहिर थी। हमने ज़्यादा से ज़्यादा समय साथ में बिताना शुरू कर दिया। मैंने देखा कि मैं निशा के साथ दिन के उजाले में हर विषय पर बात कर सकता था जिसमें मेरा पसंदीदा विषय सेक्स भी शामिल था।
उसने मुझे बताया कि वह तीन वर्षों से विवाहित थी। उसका पति आभूषणों का व्यापारी था और विवाह के पहले वर्ष के दौरान स्थितियां काफी सहज थी। फिर धीरे-धीरे उसका कारोबार बिगड़ने लगा और वह शराब पीने लगा। उसने बी.एड करने का और उसके बाद पारिवारिक आय में सहयोग देने के लिए नौकरी करने का फैसला किया था।
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एक शाम मेरे पिता उनकी एक व्यवसायिक यात्रा पर गए हुए थे और पहली बार हम पूरी तरह अकेले थे। मैं सोच रहा था कि क्या उसे यह पता भी था। हम उसके बिस्तर पर बैठे थे। उसने शार्टस् और बहुत तंग टीर्शट पहना था।
निशा खड़ी हो गई। ‘‘देखो रोहन, मैं कैसी लग रही हूँ? मैंने यह कल खरीदा था।”
“तुम….तुम ब…बहुत स….सेक्सी लग रही हो,’’ मैंने भूखी नज़रों से उसे घूरते हुए कहा। ‘‘मैं….मैं….चाहता हूँ…’’ मैंने बोलना शुरू किया और नज़रे फेर ली।
उसने मुझे देखा और फिर बुदबुदाई, ‘‘तो तुम करते क्यों नहीं, रोहन?’’
मैंने उसे अपनी ओर खींचा और बेअदब ढंग से उसे चूम लिया।
मुझे याद नहीं कि कितना समय बीत गया जब हम अंततः साथ में विस्फोटित होकर बिस्तर पर ढेर हो गए।
इस शानदार प्रारंभ के बाद हम बहुत निडर हो गए। हमें जितने भी अवसर मिलते हम प्रेम करते; हर बार वासना की परत को हटाते हुए। निशा ने मुझे सेक्स के बारे में हर वो बारीकी सिखाई जो वह जानती थी। उसने उन कामोत्तेजक क्षेत्रों से मेरा परिचय करवाया जिनके अस्तित्व के बारे में मुझे पता तक नहीं था। हमारे बीच प्रतिबंध नाम के शब्द का कोई अस्तित्व ही नहीं था। मुझे लगता है कि जिस तरह की मुद्राओं का हमने प्रयोग किया, जिन अद्भुत कामुक कार्यों में हम संलग्न हुए, उसके कारण हम स्वयं कामसूत्र के रचयिता द्वारा प्रशंसा प्राप्त करने के पात्र थे।
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वासना के साथ हमारी गुप्त भेंट तीन वर्षों तक चलती रही। वह कुछ बार अपने घर भी गई और हर बार पहले से अधिक भूखी बन कर लौटती थी।
एक बार मैंने उसे कहा ‘‘निशा, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।”
“पागल मत बनो रोहन। हम प्यार नहीं करते बल्कि सिर्फ एक दूसरे की लालसा करते हैं। और वासना को ही हमारे बीच का एकमात्र संपर्क रहने दो -विशुद्ध और उत्कृष्ट वासना।”
तीन वर्ष बाद उसने अपना बी.एड पूरा कर लिया और भुवनेश्वर आना बंद कर दिया।
हम पहली बार 21 वर्ष पहले मिले थे लेकिन मैं निशा को कभी नहीं भूल सकूंगा, मेरी उत्कृष्ट वासना।