प्रश्न. मैं दिल्ली में एक निजी संस्थान में सहायक प्रोफेसर रंजीनी हूँ। मेरा विवाह जुलाई 2015 में हुआ। मेरे पति एक अग्रणी कार निर्माण कंपनी में कार्य करते हैं। हम दोनों तमिलनाडु से हैं, हालांकि मैं गुजरात में पली बढ़ी हूँ। हमारा विवाह टूट चुका है, हम केवल 9 महीनों तक साथ में रहे। वह हमेशा से अहंकारी रहा है और वह किसी भी हाल में अपने माता-पिता का समर्थन करना चाहता है यह जानते हुए भी कि उन्होंने झूठ बोला और जो उन्होंने किया वह गलत था। हमारी समस्या विवाह के दौरान शुरू हुई जब उसके माता पिता ने वह सोना ना देते हुए हमें धोखा दिया जिसका उन्होंने वादा किया था। शादी के बाद से वह अपना पूरा वेतन अपने माता-पिता और बहन के लिए आलीशान सामान खरीदने में ही खर्च कर देता है, जबकि हम यहां फर्श पर सो रहे हैं। उसने मुझसे अपने प्रेम संबंध के बारे में भी झूठ बोला जो उसके मुझे हाँ कहने से पहले तक था। उसके पास घर पर और उसके लैपटॉप पर उस लड़की के अतरंग चित्र थे। जब मैने उन्हें देखा तब उसने कहा कि वह उन्हें फैंकना/डिलीट करना भूल गया। शुरू में उसने कहा कि वह केवल उसकी दोस्त थी।
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हाल ही में वह फेसबुक पर, हमारी संस्कृति में एक पत्नी को कैसा होना चाहिए, एक बहू को कैसा होना चाहिए आदि के बारे में पंक्तियां (कोट्स) पोस्ट कर रहा है और जब मैंने उससे प्रश्न किया तो उसने कहा कि वह कई महीनों से फेसबुक पर है ही नहीं।
मुझे क्या करना चाहिए? हम अलग हो चुके हैं, हालांकि अब तक कानूनी रूप से नहीं। मैं झूठ स्वीकार नहीं कर सकती और मैं कभी नहीं चाहती थी कि कोई लड़का मुझसे सोने (दहेज) के लिए विवाह करे। विवाह से पहले उसके परिवार ने उनकी ऐसी छवि प्रस्तुत की जैसे कि वे दहेज में कोई रूचि नहीं रखते लेकिन शादी के बाद वे ‘‘इस लड़की ने हमे सोना नहीं दिया है” आदि जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। मैं उसके बर्ताव का उत्तर कैसे दूं? मैंने बार बार बाते समझाईं हैं; यहां तक कि उसके मित्रों ने भी उसे समझाया है, लेकिन वह अपनी गलती मानता ही नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि ऐसा करके वह अपना सम्मान खो देगा। उसने मुझ पर हाथ तक उठाया है। कृपया मेरी मदद कीजिए। इस स्थिति को सुलझाने के लिए मेरा अगला कदम क्या होना चाहिए और यदि आपको लगता है कि ऐसे लोग कभी नहीं बदलेंगे तो उसे मेरी जिंदगी और छवि को और अधिक नुकसान ना पहुंचाने देते हुए, इससे सुरक्षित रूप से बाहर निकलने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तरः
प्यारी रंजिनी,
मैं कल्पना कर सकती हूँ कि तुम किस कठिन परिस्थिति में हो। दुर्भाग्य से, यह वर्तमान में यह हमारे समाज की सबसे आम समस्याओं में से एक है। सबसे पहले मैं चाहूंगी कि तुम स्पष्ट रूप से यह निश्चिय कर लो कि तुम रूकना चाहोगी या जाना। सब कुछ एक तरफ रखो और बस इस प्रश्न पर ध्यान दो क्योंकि यही तुम्हारी अगली कार्यवाही का निर्णय करेगा।
यदि तुम रूकना चाहती होः यदि तुम कोशिश करना चाहती हो और चाहती हो कि यह शादी बनी रहे, तो तुम्हारे पति के कार्यों को उसके परिवार से अलग करने का प्रयास करो। मैं जानती हूँ कि हम अपने जीवनसाथी को उसके माता-पिता के प्रतिबिंब के रूप में देखते हैं, जो एक हद तक सही है लेकिन 100 प्रतिशत सही नहीं है। हमे अपने जीवनसाथी को ‘‘जीवनसाथी” बनने के लिए समय देने की आवश्यकता है क्योंकि यह एक ऐसा रिश्ता है जो उसके लिए अनजाना है और हमारी ही तरह वह भी नए मोड़ों से गुज़र रहा है। तुम्हारा पहला प्रयास उसके माता -पिता और उनके कार्यों को बीच में लाए बगैर, तुम्हारे और तुम्हारे पति के बीच के बंधन को मज़बूत करने का होना चाहिए। बैठ कर यह सोचने की कोशिश करो कि तुम दोनों इस शादी का आनन्द लेने के लिए साथ में क्या कर सकते हो। उसके माता-पिता ने शादी के दौरान क्या किया या क्या नहीं किया वह बिल्कुल प्रासंगिक नहीं है। कृपया यह याद रखो। हालांकि यह मायने रखता है, यह ज़रूरी है कि तुम इसे एक तरफ रखो जब तुम पहले अपने रिश्ते का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हो। यदि संभव हो तो, तुम्हारे पति के साथ पति-पत्नी के एक चिकित्सक (थेरेपिस्ट) से मिलो और यह कह कर अपनी बात उसके सामने रखो कि तुम उसे महत्त्व देती हो, तुम इस रिश्ते को महत्त्व देती हो और तुम यह केवल इसलिए करना चाहती हो क्योंकि तुम इसे सफल करने के लिए नए तरीके सीखना चाहती हो।
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यदि तुम जाना चाहती होः यदि तुम इसे समाप्त करने का निर्णय लेती हो, तो पहला काम जो तुम्हें करने की आवश्यकता है वह यह है कि तुम्हारे राज्य में तलाक के कानून देखो। इंटरनेट पर पढ़ो; एक वकील से परामर्श करो, केवल पक्ष और विपक्ष को जानने के लिए। याद रखो सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम यह छानबीन कर रही हो, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम तुरंत जा रही हो। दिमाग शांत रखो। जानकारी इक्कट्ठी करना पहला कदम है। मैं यह मान रही हूँ कि तुम्हारा कोई बच्चा नहीं है इसलिए बच्चों का संरक्षण तुम्हारे लिए एक मुद्दा नहीं होगा। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यदि तुम वास्तव में जाना चाहती हो, तो अपराध बोध को स्वयं पर हावी मत होने दो। हर एक को अपने पसंद का जीवन जीने का अधिकार है, और अगर तुम्हें विश्वास है कि उसे छोड़ कर तुम अपने लिए वह जीवन प्राप्त कर सकती हो, तो खुद को दोष देने की कोई वजह ही नहीं है। हाँ, अधिकांश बार यह बदलना मुश्किल होता है कि लोग वस्तुओं को किस प्रकार देखते हैं, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि हमने हर संभव प्रयास किया है। हार मानने से पहले, निष्पक्षता से यह पता करो कि क्या तुमने अपने पति को अपना दृष्टिकोण समझाने की हर प्रकार से कोशिश की है। या फिर एक अलग संचार नीति में बदलने से कोई रास्ता निकल सकता है। इस बारे में सोचो। जब तुम 100 प्रतिशत सुनिश्चित हो जाओ कि सभी विकल्प समाप्त हो चुके हैं, तब तुम्हारे निर्णय में प्राकृतिक स्पष्टता होगी और कोई अपराध बोध नहीं होगा।
बस याद रखो, तुम्हारे लिए कोई भी अन्य व्यक्ति निर्णय नहीं ले सकता है। तुम्हे खुद ही यह करना होगा। इसलिए अपना समय लो, छोटे छोटे कदम उठाओ, एक के बाद एक छोटे लक्ष्य स्थापित करो और भावनाओं में बहे बगैर इसे एक ठोस समस्या की तरह देखो। शुभकामनाएँ!
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