एक बार की बात है. मेरा एक पति था जो मुझे बहुत प्यार करता था, और मैं भी उसे बहुत प्यार करती थी, मैं तब हाई स्कूल में थी जब हम दोनों पहली बार मिले थे. वो उस समय कॉलेज के पहले साल में था. और फिर सात साल की लम्बी लड़ाई के बाद, वो लड़ाई जो भारत के हर प्रेम विवाह करने वाले जोड़ों को करनी पड़ती है, हमारी शादी हो गई. हमने रजिस्ट्रार के ऑफिस में एक छोटी सी शादी की जिसके बाद हमने एक ठंडी बियर और एक गरम चाइनीस लंच हमारे साथ आये हमारे दो मेहमानों के साथ मिल खाया. उसके बाद दोनों दूल्हा और दुल्हन लड़के के घर मोटरसाइकिल पर बैठ कर रवाना हो गई.
पांच साल में हमारी ज़िन्दगी कुछ कुछ सँभलने लगी. मेरा पति अपने परिवार की देखभाल करने के लिए बहुत जल्दी जल्दी बड़ा हो गया. मैं भी अपने ससुराल वालों को सँभालते सँभालते जल्दी जल्दी बड़े होने लगी. जादू की तरह एक नन्ही सी जान भी इस पूरे सीन में समां गई थी.
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काश मैं ये कह सकती की हमारी ज़िन्दगी उसके बाद बहुत ही आसान और सपने जैसी हो गई थी. मगर ऐसा नहीं था. ज़िन्दगी में बहुत कुछ और हो गया. हम अलग हो गए और फिर बहुत सारे दर्द और आंसू के बाद हम दोनों ने तलाक़ ले कर अपनी अलग अलग राह चुन ली. बेटी मेरे ही साथ आई क्योंकि हमारा सभ्य कानून ये मानता है की तलाक़ की स्तिथि में माँ ही को बच्चे की परवरिश के लिए बेहतर समझा जाता है.
खैर हम दोनों ही अपनी अपनी ज़िन्दगी में सफल होने लगे. उसने दोबारा शादी कर ली और उसके दो और प्यारे बच्चे है. मगर मैंने ये तय किया की कुछ भी हो जाए मेरे लिए मेरी यह एक बेटी ही काफी है.
क्योंकि हम दोनों अलग शहरों में रहते हैं, हमारा टकराना न के बराबर ही होता है. वो नन्ही सी जान अब इतनी बड़ी हो गयी है की उसने अपने लिए दुनिया में एक कामयाब और सुरक्षित स्थान बना लिया है.
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जहाँ तक मेरा सवाल है, मैंने अपने साढ़े पांच फ़ीट के लम्बाई के साथ सारे भेड़ियों को आँखें तरेर कर देखती हूँ. पिछले इतने सालों में मैं अपने काम में कई तरह की झुझते हुए अपनी निर्भरता को आत्म निर्भता में बदला है. इन सभी फैसलों की मदद से मैं हाई स्कूल में पढ़ाने से आगे बढ़कर स्कूल लीडरशिप और फिर कॉर्पोरेट वर्ल्ड में कई स्कूलों के समूह की गुणवत्ता नियंत्रण के काम को किया है. कई साल पहले मुझे विदेशों में भी काम करने का मौका मिला जिसके कारन मुझे अपने रिटायरमेंट के लिए अच्छी पूँजी मिल गई. अपने लिए आर्थिक स्वतंत्रता ढूंढ़ना एक बहुत ही सुकून देने वाला पुरस्कार है.
पिछले इतने सालों में मैंने अपने पूर्व पति के बारे में बहुत ज़्यादा नहीं सोचा.. बस कभी कभी उसे जुडी कोई खबर सुनने में आ जाती थी जो मैं कौतूहलवश सुनती थी मगर फिर अपनी ही दुनिया में रम जाती थी.
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मगर फिर एक सुबह मेरी बेटी ने फ़ोन कर के मुझे बताया की वो चल बसा है.
मैं अचानक अंदर तक धंसने लगी और एक बार फिर मुझे उसे खोने का एहसास हुआ. बस इस बार मुझे ये अकेले ही झेलना था.
मुझे अब पता चला की मुझे जो महसूस हुआ उसे अंग्रेजी में “दिसेनफ्रांचिस प्यार” कहते हैं जिसका मतलब है की आपके प्यार और आपके खोने के एहसास का कोई वजूद नहीं है.. क्योंकि अपने पूर्व पति की मौत का मातम मानना हमारे समाज में गलत ही कहलायेगा. मैं कभी भी क्लोसूर के सुकून को नहीं जान पाऊँगी. मेरी ज़िन्दगी के इस पड़ाव का कोई अंतिम संस्कार नहीं किया. मुझे कोई समापन नहीं मिला.
(जैसा टीम बोनोबोलोजी को बताया गया)
उसने मेरी बजाए अपने माता-पिता को चुना और मैंने उसे दोष नहीं दिया