शादी का सीज़न आ चुका है। मौज मस्ती और आनंद का समय। शादी से पहले दुल्हन के घर में बहुत सी रस्में और उत्सव। समारोह का आनंद और फिर विदाई के छोटे, निराशाजनक पल। और फिर दुल्हन का उसके नए जीवन में स्वागत… बारान…
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लेकिन क्या आप जानते हैं कि बंगाल में दूसरा ही रिवाज़ है? यह कालरात्रि, काली रात या अशुभ रात की प्रथा है। यह वह रात है जब नवविवाहितों को एक दूसरे से अलग रहना पड़ता है और कहीं-कहीं पर एक दूसरे से मिले बगैर। क्यों? क्यों वह रात जब एक दुल्हन अपने नए घर में आती है, उस जोड़े के लिए इतनी अशुभ है?
वह देवी बनना चाहती थी
इसे समझने के लिए हमें एक पुरानी बंगाली कथा को जानना होगा। शिव की बेटी मनसा, सर्पों की देवी थी। वह ईश्वरों के समूह में स्वीकार किए जाने के लिए तड़पती थी और चाहती थी कि हर कोई उसकी पूजा करे। लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया था।
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उसने चाँद सौदागर से, जो एक अमीर व्यापारी और उसके पिता के प्रबल अनुयायियों में से एक था, भगवान के रूप में उसकी पूजा करने को कहा। लेकिन अभिमानी चाँद सौदागर ने इनकार कर दिया। उसने उसे देवी तक नहीं माना।
फिर उग्र मनसा ने उसे श्राप दिया…और उसके सारे जहाज समुद्र में खो गए, उसके छह बेटे मर गए और उसकी संपत्ति नष्ट हो गई…लेकिन फिर भी जिद्दी व्यापारी ने गलती मानने से मना कर दिया।
श्राप सच हो गया
अंत में उसके सबसे छोटे और लाड़ले बेटे लखिंदर की शादी का दिन आ गया। अस्वीकृत देवी ने गुस्से में नए युगल को श्राप दे दिया कि दुल्हन के घर से लौटने पर जोड़ा जो पहली रात साथ में गुज़ारेगा, तब दुल्हा साँप के डसने से मर जाएगा।
चाँद सौदागर ने दैवीय वास्तुकार विश्वकर्मा से जोड़े के लिए एक महल बनवाया, जो भली भांति सील बंद किया गया था जिसमे कोई भी दरार या छेद नहीं था ताकि हत्या करने के इरादे से कोई साँप प्रवेश ना कर सके। लेकिन मनसा उन सबसे अधिक शातिर थी। उसने विश्वकर्मा को डराया, जिसने बहुत छोटा छेद छोड़ दिया जिसमें से सबसे छोटा साँप प्रवेश कर सके….
युवा जोड़ा महल में अपनी पहली रात के लिए रह गया था। उसकी सास ने दुल्हन बेहुला को सर्पों की देवी के श्राप के बारे में चेतावनी दे दी थी। बेहुला ने पूरी रात अपने पति की रखवाली में जागते रहने का फैसला किया। पहले साँप, कालनागिनी ने चुपके से प्रवेश करने की कोशिश की लेकिन दुल्हन ने पूरी नम्रता के साथ उसे दूध की कटोरी पेश की। मंत्रमुग्ध साँप लखिंदर को नुकसान पहुँचाए बिना चला गया।
फिर प्रतिशोधी मनसा ने स्वयं नींद को ही बेहुला की पलकों पर बैठने के लिए भेज दिया। युवा दुल्हन को नींद आ गई और कालनाग ने छेद में से प्रवेश कर लखिंदर को डस लिया। दूल्हे की मृत्यू हो गई।
दुल्हन ने हार नहीं मानी
सुबह चारों ओर रूदन हो रहा था, लेकिन बेहुला चुप थी। उन दिनों में, साँप के ज़हर से मरने वालों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता था बल्कि उन्हें तैरते बेड़े पर छोड़ दिया जाता था। बेहुला ने घोषणा की कि वह अपने पति के शव के साथ दूसरी दुनिया तक जाएगी, देवी को शांत करेगी और अपने पति को वापस जीवित करेगी।
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बहुत कठिनाइयों के साथ बेहुला मनसा से मिलने में सफल हुई। देवी की सौतेली माँ, पार्वती जो युवा विधवा की दुर्दशा देखकर पिघल गई थी, उसने मनसा को उसके पति को पुनः जीवित करने का आदेश दिया। सर्पों की देवी सहमत हो गई लेकिन केवल एक शर्त पर कि चाँद सौदागर उसकी पूजा करे और पृथ्वी पर उसकी पूजा का प्रचार करे।
बेहुला को उसके पति, छह देवर और अपनी खोई हुई संपत्ति के साथ लौटता हुआ देखकर चाँद सौदागर पिघल गया और सर्पों की देवी की पूजा करने के लिए सहमत हो गया लेकिन केवल अपने बाँए हाथ से….
सर्पों की देवी उस बात से संतुष्ट थी।
और बेहुला और उसका परिवार शांति में रहने लगा।
लेकिन तभी से कालरात्री की प्रथा निभाई जा रही है….नवविवाहित जोड़े पहली रात को अलग रहते हैं…हालांकि बेहुला की जीत हुई थी और पूर्व आर्य देवी को आर्य देवताओं के समूह में स्थान मिल गया था।