लपिता एक ऋषि की बेटी थी और एक आश्रम में पली बढ़ी थी। जंगल में उसकी एक पसंदीदा जगह थी जो उसके लिए एक छोटा स्वर्ग था। वह मीठे सुगंधित फूल और गुनगुनाती मक्खियों से भरा एक हरा-भरा लता मंडप था। इस जगह, एक बार उसने दो प्यासे किन्नरों को पानी प्रस्तुत किया था, जिसके बदले में उसे वरदान दिया गया था। सीधी साधी लपिता को पता नहीं था कि क्या मांगना चाहिए। तो उसने पूछ लिया ‘‘आप मुझे क्या दे सकते हैं?’’
किन्नर पौराणिक प्राणी थे और उन्होंने कहा कि वे केवल उनके जैसा जीवन ही प्रदान कर सकते थे। लपिता सोच में पड़ गई कि वह किस तरह का जीवन होगा? ‘‘एक प्यार और प्रेमी का जीवन और कुछ नहीं। उनके प्यार में किसी तीसरे के लिए कोई जगह नहीं होगी, संतान के लिए भी नहीं, लेकिन एक अनन्त प्रेम का जीवन,’’ किन्नरों ने कहा। लपिता ने सोचा कि क्या यह भी कोई जीवन हुआ और किन्नरों ने उसे आश्वस्त किया कि यह निश्चित रूप से जीवन था। लपिता ने अनंत प्रेम का जीवन चुना और वह तभी से अपने लता कुंज में अपने प्रेमी का इंतज़ार कर रही थी।
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जिस प्रेमी का वह इंतज़ार कर रही थी
एक वसंत की सुबह, उसने एक आकर्षक ऋषि को लता कुंज के सामने खड़ा देखा, उसने इतना आकर्षक ऋषि कभी नहीं देखा था। वह मंडपाल था जिसने ज्ञान प्राप्त करने के लिए कभी ब्रह्मचर्य के जीवन को अपना लिया था। उसके पिता ने सुझाव दिया था कि वह शादी कर ले और गृहस्थ व्यक्ति का जीवन जीए, ताकि उसका और उसके पूर्वजों का उद्धार निश्चित किया जा सके। जहां उसने अपने पिता और समाज की इच्छाओं के बारे में ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था, वहीं उसे यह भी बताया गया कि जरीता नाम की एक लड़की है जो उसका इंतज़ार कर रही है और वह सिर्फ उसी से शादी करेगी। सामान्य जीवन छोड़कर किसी का इंतज़ार कर रहे व्यक्ति के विचार ने ज्ञान के साधक को चिंतित कर दिया। इस प्रकार उसने उसे ढूंढ निकालने का फैसला किया और वह खांडवप्रस्थ जंगल की ओर चल पड़ा जहां जरीता रहती थी।
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लपिता ने सोचा कि मंडपाल अचानक जरीता की तलाश में क्यों निकल पड़ा। मंडपाल ने जवाब दिया कि उसे अहसास हुआ कि पत्नी और संतान के बिना कोई जीवन नहीं है और अब उसे अपना जीवन पूर्ण करना है। लपिता हंस पड़ी। ऐसा जीवन किस तरह का होगा जब दो से ज़्यादा लोग अनावश्यक हों? उसने प्यार के जीवन को अपनाया था जिसमें दो प्रेमियों के बीच में किसी और की जगह नहीं हो। मंडपाल अनिश्चित था कि ऐसा भी कोई जीवन होता है और वह सोच रहा था कि वह कौन थी। लपिता ने उसे आश्वस्त किया कि वह भी एक मनुष्य ही है और इस प्रकार का जीवन मौजूद है और उस जीवन से ज़्यादा आनंददायक है जिसकी तलाश मंडपाल कर रहा था।
मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी
मंडपाल यह कहने से खुद को रोक नहीं सका कि जहां लपिता सुंदर थी वहीं उसके विचार बिल्कुल अलग थे। ‘‘मैंने ऐसा पौधा कभी नहीं देखा जिसे फूल पसंद नहीं हों,’’ और इन शब्दों के साथ मंडपाल लताकुंज से लौट गया। लेकिन लपिता की आँखों को वह मिल चुका था जिसे वह ढूंढ रही थी और वह जान गई कि वही उसका प्यार है। उसने मंडपाल को बुलाया और कहा कि वह उसकी पसंद का जीवन ढूंढ सकता है लेकिन उसे अपना जीवन मिल गया है। वह उसके सिवा और किसी से प्यार नहीं करेगी और उसका इंतज़ार करेगी। उसके बाद से उसकी आँखें सिर्फ मंडपाल को ही देखेगी और उसी का इंतज़ार करेगी। मंडपाल ने उसका दुख और दर्द भरा चेहरा देखा और आगे बढ़ गया।
उसकी पत्नी
मंडपाल को देखकर जरिता उत्साहित हो गई थी। जब उसने उसे देखा तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उन दोनों ने शादी कर ली और समय तेज़ी से गुज़र गया। विवाह ने बच्चों को जन्म दिया और जरिता जल्द ही जीवन, परिवार और बच्चों में व्यस्त हो गई। मंडपाल अपने जीवन में एक शून्य महसूस करने लगा क्योंकि जरिता हमेशा उसके चार बच्चों के साथ व्यस्त रहती थी। मंडपाल का प्यार एक साथी की तलाश कर रहा था और उसने कभी जरिता को अपने पास नहीं पाया, यहां तक कि अकेले में भी वह हमेशा अपने बच्चों और उनकी ज़रूरतों के विचारों से घिरी रहती थी। मंडपाल का दिल तनहा महसूस करने लगा। जरिता ने यह महसूस किया और उसे आश्वस्त किया कि पूर्णिमा की रात को वह उसे पहले की तरह मिलेगी।
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उस रात मंडपाल सरिता से सबसे सुगंधित फूलों के साथ मिला। लेकिन जब वह उसे माला पहनाने ही वाला था, तब जरिता अपने बच्चों में से एक के पास चली गई क्योंकि उसे लगा कि वह उसे पुकार रहा था। मंडपाल के अपूर्ण प्यार ने उसे भीतर से जला दिया और उसने घर छोड़ दिया। वह जल्द ही लपिता के लताकुंज में पहुंच गया जहां लपिता उसके जाने के बाद से ही उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। लपिता ने उसका स्वागत किया। मंडपाल ने लपिता को माला पहनाई और वे प्यार और आनंद से भरा जीवन जीने लगे।
जब उसके परिवार पर खतरा आया
एक दिन, मंडपाल ने अग्नि के देवता हुताशन को खांडवप्रस्थ की ओर आते देखा, शायद जंगल को नष्ट करने के लिए। इससे मंडपाल परेशान हो गया, क्योंकि उसकी कुटिया भी उसी जंगल में थी। लपिता ने उसका पेरशान चेहरा देखा और उससे उसकी चिंता का कारण पूछा। जब मंडपाल ने उसे बताया कि वह अपने बच्चों की सुरक्षा के बारे में चिंतित था, तो लपिता को यह जानकर दुख हुआ कि मंडपाल का दिल अब भी उसके अलावा किसी और के लिए भी दुखी होता था। जब मंडपाल ने भगवान हुताशन से प्रार्थना करने का फैसला किया तो वह गुस्सा हो गई, लेकिन फिर भी आग के देवता की प्रार्थना में मंडपाल का साथ देने के लिए सहमत हो गई।
मंडपाल को तब राहत मिली जब भगवान हुताशन उसकी झोपड़ी छोड़ने के लिए सहमत हो गए, लेकिन लपिता यह जान कर दुखी हो गई कि मंडपाल अभी तक अपने पहले प्यार की यादों को भूला नहीं है। वह यह स्वीकार नहीं कर पा रही थी कि मंडपाल का दिल अब भी जरिता के लिए दुखता था जिसे वह छोड़ना चाहता था। मंडपाल लपिता की ईर्ष्या से दुखी हो गया और सोचने लगा कि ऐसा कोई सोच भी कैसे सकता है कि एक पुरूष का दिल अपने बच्चों और पत्नी के लिए नहीं तड़पेगा जिन्होंने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा। उसे अहसास हुआ कि वह इस तरह का जीवन नहीं चाहता था जहां किसी के लिए कोई जगह नहीं थी, यहां तक कि प्रियजनों के लिए भी नहीं, और उसने लपिता को छोड़ कर अपने बच्चों की माँ के पास जाने का फैसला किया। मंडपाल ने लपिता को यह कहते हुए सुना कि, ‘‘अगर तुम वापस मेरे पास नहीं आए तो मैं यह माला तोड़ दूंगी और तुम्हारे प्रियजनों को शाप दे दूंगी।”
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वापस अपनी पत्नी और बच्चों के पास
जरिता ने मंडपाल को आने दिया, लेकिन खुशी गायब थी। उसने अपने बच्चों के पिता का स्वागत किया था लेकिन यह वह पुरूष नहीं था जिसे वह प्यार करती थी। उसने कहा कि मंडपाल अपने बच्चों के लिए आया है मेरे लिए नहीं। लेकिन मंडपाल ने उसे आश्वस्त किया कि वह अपने घर अपने प्यार के पास लौट आया है। आज उसे सच्चे प्यार का मतलब समझ आया और उसके प्यार ने अपना सच्चा अर्थ जान लिया। उसका जीवन जरिता और उसके बच्चों के बिना कुछ नहीं था। वह प्यार की नहीं बल्कि खुशी की तलाश में भटक गया था। लेकिन अब उसे प्यार मिल चुका है।
मंडपाल ने जरिता को अपने पास खींच लिया, लेकिन तभी पता नहीं कहां से उसके सामने लपिता आ गई। उसके पास वही माला थी जो उसने लपिता को दी थी जब वह उसके पास लता कुंज में आया था। उसकी चमकती आँखे देखकर मंडपाल चिंतित हो गया था। अंत में उसने कहा, ‘‘चिंता मत करो मंडपाल मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगी क्योंकि मैं हार स्वीकार करती हूँ। हार तुमसे या तुम्हारी पत्नी से नहीं, जो निश्चित ही मुझसे ज़्यादा सुंदर है। लेकिन उनसे हार स्वीकार करती हूँ जिन्होंने तुम्हारी पत्नी को मुझसे ज़्यादा सुंदर बनाया है। कीमती रत्न जो उसे सजाते हैं, तुम्हारे बच्चे।” मंडपाल ने उससे निवेदन किया कि वह उसके बच्चों को शाप ना दे क्योंकि वह उसके लिए दुनिया के किसी भी धन से ज़्यादा मूल्यवान थे और जरिता भी जिसने उसे इस तरह के धन के साथ संपन्न किया था।
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प्यार द्वारा पराजित हुई
लपिता ने मंडपाल के दुखी और असहाय चेहरे को देखा। उसके हाथ में टूटी हुई माला और उसके चेहरे पर दुख था, ‘‘नहीं, ऋषि मंडपाल। यह माला जो तुमने मुझे दी थी अब तुम्हारे कीमती रत्नों को सजाएगी। मैं यहां शाप देने नहीं आई बल्कि यह देखने आई हूँ कि मैंने क्या खो दिया है। जिन्होंने मुझे हराया है अब वे ही इस माला को सजाएंगे।” ऐसा कहते हुए लपिता ने बच्चों को माला पहनाई और चली गई।
लपिता लताकुंज में चली गई, वह अब भी अकेली है लेकिन किसी का इंतज़ार नहीं कर रही।
यह सुबोध घोष द्वारा लिखी गई बंगाली कहानी के प्रदीप भट्टाचार्य द्वारा अंग्रेजी अनुवाद का एक संक्षिप्त संस्करण है।
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