मैं यह छोटी सी कहानी आपके साथ साझा करना चाहती हूँ।
कुछ समय पहले की बात है, एक अच्छा दिखने वाला, शिष्टाचारी और समृद्ध माता-पिता वाला एक लड़का था। वह महत्वाकांक्षी था और आकाश को छूना चाहता था। वह घुमक्कड़ भी था। जैसा की स्पष्ट है, उसके परिवार ने उसकी शादी करवाने का सोचा, क्योंकि वह किसी तरह उसकी ‘भटकने’ की समस्या को ठीक कर देगी।
इसलिए उसकी शादी उतनी ही सुंदर, खूबसूरत, शिष्टाचारी और समृद्ध माता-पिता वाली लड़की के साथ कर दी गई। दोनों खुश थे, या फिर दुनिया को ऐसा लग रहा था। अजीब बात है कि जोड़े की खुशी का अंदाज़ा अक्सर उसकी सुंदरता से लगाया जाता है। और ये दोनों अकेले में, या साथ में हमेशा सुंदर दिखते थे।
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तुम्हारी समस्याएं दूर करने के लिए संतान पैदा करने के बारे में क्यों नहीं सोचते?
पांच साल बीत गए, लेकिन लड़का अभी भी घुमक्कड़ ही था। वह हमेशा बोरिया बिस्तर बांध कर पहाड़ चढ़ना चाहता था। इसलिए माता-पिता ने सोचा कि जोड़े को एक परिवार शुरू करना चाहिए। हाँ, जो चीज़ परिवार ठीक नहीं कर सकती, वह संतान कर सकती है। तो पत्नी गर्भवती हो गई। परिवार खुश था। उन्होंने सोचा कि अब वह अपने परिवार के साथ रहेगा और सब खुशी-खुशी जीएंगे।
अब वह समय आया जब स्त्री को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। दर्द कष्टदायक था और उसे लगा वह मर जाएगी। उसने अपनी सहेलियों से सुना था कि जब वे बच्चे को जन्म दे रही थीं तो पति उनका हाथ थामे उनके साथ खड़ा था। हाँ, उसने सुना था कि पति गर्भावस्था को ‘उनकी’ गर्भावस्था कहते थे। उसने हाथ थामने के लिए पति को ढूंढा, लेकिन उसे जल्द ही अहसास हो गया कि उसके मामले में यह सिर्फ ‘उसकी’ गर्भावस्था है।
उसे बताया नहीं गया था लेकिन वह जानती थी कि ना तो वह और ना ही बच्चा ‘समस्या’ ठीक कर सका था। उसका पति उसे छोड़ चुका था। वह बच्चे को भी छोड़ गया था। पहाड़ उसे बुला रहे थे और उसे बड़ी भूमिका निभानी थी।
वह रोई। उसने विलाप किया और फिर झूले में से छोटा बच्चा चिल्लाया। उसे भूख लगी थी। उसे माँ की ज़रूरत थी।
मैं उस लड़की के बारे में बस इतना ही जानती हूँ। मुझे नहीं पता कि क्या वह कभी अपने माता-पिता के पास वापस गई या उसने दुबारा शादी की। मुझे कोई अंदाज़ा नहीं कि क्या वह पुरूष वापस आया या उसे बुलाया गया, क्या उनका बेटा भी उसी की तरह घुम्मकड़ बन गया या फिर वह माँ के साथ रहा। नहीं, मैं इसमें से कुछ नहीं जानती।
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राजकुमार पीछे मुड़े बिना ही चला गया
लेकिन मुझे इतिहास की किताबों से एक इसी तरह की कहानी पता है और मुझे उस कहानी का अंत पता है।
मुझे पता है कि जब सिद्धार्थ ने महल और अपने बेटे को जन्म देने वाली अपनी पत्नी को छोड़ दिया था, तब वह हमेशा के लिए चला गया था। वह व्यक्ति जो बरसों बाद लौटा था वह भगवान बुद्ध था, अभिज्ञात व्यक्ति।
उसने उन सभी विलासिताओं और आरामदायक जीवन को छोड़ दिया जो उसके भाग्य में लिखे थे और हाँ, उसकी पत्नी और बच्चों को भी।
मैं बुद्ध धर्म का बहुत पालन करती हूँ और मुझे अक्सर लगता है कि बुद्ध की शिक्षाएं आधुनिक जीवन के तनाव और चिंता से निपटने का सबसे उपयुक्त दृष्टिकोण हैं।
लेकिन कभी-कभी, मैं बुद्ध की पत्नी यशोधरा के बारे में सोचती हूँ। किवदंती यह है कि यशोधरा द्वारा पुत्र को जन्म देते ही राजकुमार सिद्धार्थ ने संसार छोड़ दिया।
कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि जब उसे पता चला होगा कि वह जा चुका है तो उसे कैसा महसूस हुआ होगा। उसे शायद अपने पति से दुबारा बात करने का मौका नहीं मिला होगा, लेकिन अगर उसे मौका मिलता तो उसने क्या पूछा होता? मैं नहीं जानती, लेकिन मैं एक औरत हूँ। एक माँ। और मैं शादीशुदा हूँ। मुझे उसकी परेशानी नहीं पता, लेकिन मैं कुछ देर के लिए खुद को उसकी जगह रखकर राजकुमार सिद्धार्थ से कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ।
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तुमने मुझसे शादी क्यों की?
हाँ, तुम्हें जाना पड़ा। तुम्हारा दिल कहीं और था। तुम जीवन में बहुत बड़ी और गहरी चीज़ों के लिए बने थे और मैं खुश हूँ कि तुमने अपने मन की बात सुनी। जब तुम्हें ज्ञान मिला, तो बहुत से और लोगों को भी ज्ञान प्राप्त हुआ। विश्व को तुम्हारी ज़रूरत थी सिद्धार्थ, लेकिन जब तुम बड़े हो रहे थे, क्या तुम्हें एक बार भी महसूस नहीं हुआ कि तुम गृहस्थ जीवन के लिए नहीं बने हो? तुम्हारे मन में शादी के बारे में कुछ संदेह तो होंगे। तुमने अपने माता-पिता से बात क्यों नहीं की? जब तुम्हारे पास इतना साहस था कि तुम हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए तो तुमने तब थोड़ा साहस इकट्ठा कर के अपनी बात क्यों नहीं रखी? उस प्रक्रिया में तुमने मेरे लिए भी आवाज़ उठाई होती। मैं बच गई होती।
तुमने मुझे क्यों नहीं बताया?
एक दिन तुम्हें अहसास हो गया होगा कि तुम हम सब को छोड़ कर जाने से खुद को रोक नहीं सकते हो, है ना? मैं समझती हूँ। लेकिन अगर तुमने एक बार भी मुझे अपनी भावनाएं बताई होती, तो मुझे थोड़ा कम विश्वासघात महसूस होता। हम जीवन भर के लिए बंधन में बंधे थे। हम जीवनसाथी थे और भले ही हम एक दूसरे के जीवन का हिस्सा बनने के लिए नियत नहीं थे, फिर भी काश की तुम मेरे पास आए होते और तुमने मुझे समझाया होता कि तुम क्या करना चाहते हो। मैंने तुम्हें रोका नहीं होता सिद्धार्थ, या शायद मैंने कोशिश की होती। हो सकता है मैं तुमपर थोड़ी चिल्लाती, लेकिन अंत में मैंने तुम्हें जाने दिया होता। उस रोने ने समापन कर दिया होता। लेकिन तुम बस चले गए।
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मैं हमेशा इंतज़ार करती रही
हाँ, मैंने तुम्हारे प्रबोधन के बारे में सुना और मुझे गर्व हुआ था। लेकिन मैं फिर भी तुम्हारा इंतज़ार करती रही। मैं जानती हूँ कि तुमने विश्व को निवार्ण के बारे में सिखाया और यह भी कि इस जीवन नाम के पिंजरे से कैसे बाहर निकलना है। लेकिन मैं एक साधारण व्यक्ति थी जिसे तुम्हारे द्वारा छोड़े गए घर की देखभाल करनी थी। हमारा बेटा बड़ा हो रहा था और उसे एक पिता चाहिए था। मैं इंतज़ार करती रही क्योंकि मैंने सोचा शायद एक दिन….
तुमने मेरा बेटा छीन लिया
जब तुम पांच साल बाद गौतम बुद्ध के रूप में लौटे, मैं बहुत खुश थी। मुझे लगा जैसे मैं खुशी से मर जाउंगी। लेकिन तुम वह भावना नहीं समझ पाओगे। तुम इन सब बातों से बहुत उपर थे। इसलिए, जब मैंने अपने बेटे को तुमसे मिलने के लिए भेजा और जब उसने ‘‘विरासत” मांगी, तब तुम जानते थे कि उसका क्या मतलब था। या शायद तुम नहीं जानते थे। लेकिन तुम इतना ज़रूर जानते थे कि वह तुम्हारे साथ जाना तो नहीं चाहता था। और ना ही मैं ऐसा चाहती थी। लेकिन मेरी बात का महत्त्व ही क्या था?
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क्या तुमने कभी मेरे बारे में सोचा?
सिद्धार्थ तुमने दुख और पीड़ा के बारे में सोचा था। तुम संसार के शिकंजों से परेशान थे और तुम इस दुख से बाहर निकलना चाहते थे। तुम निर्वाण की तलाश कर रहे थे। और जब तुम्हें ज्ञान प्राप्त हो गया, तो तुम पूरे समाज के लिए पथप्रदर्शक बन गए। तुमने दुनिया को भी रास्ता दिखायाः जब तुमने पुरूषों और महिलाओं को अपने पास आते देखा, क्या तुमने एक बार के लिए भी मेरे बारे में सोचा? हमने कई वर्ष साथ में बिताए और हम एक दूसरे के बारे में कुछ बातें भी जान गए थे। क्या तुम्हें कभी किसी भी वजह से हमारे द्वारा साथ में बिताए गए समय की याद आई? क्या कभी किसी बच्चे को देख कर तुम्हें अपने बेटे की याद आई जो घर में पिता के बिना रह रहा था? ओह सिद्धार्थ, क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहते थे? शायद माफी मांगना या फिर स्पष्टीकरण देना। मैं कभी जान नहीं पाउंगी।
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अनुलेखः यह लेख बचपन की यादों का परिणाम है। वर्षों पहले हमने हिंदी कवि मैथिली शरण गुप्त की कविता पढी थी ‘सखी वो मुझसे कह कर जाते’। कविता में यशोधरा अपना दुख एक सहेली के साथ बांट रही है, ‘‘सिद्धी हेतु स्वामी गए ये गौरव की बात। पर चोरी चोरी गए ये बड़ा व्यघात” (‘‘मेरे पति प्रबोधन प्राप्त करने गए ये मेरे लिए गर्व की बात है। लेकिन इस बात ने मेरा दिल तोड़ दिया कि वे गुप्त रूप से गए”)
तो हर साल जब हम बुद्ध पूर्णिमा मनाते हैं, मेरा दिल कहीं ना कहीं यशोधरा के लिए दुखता है।