(श्रीलता मेनन एक सहेली की कहानी साझा रही हैं जिसने अपने पति से बहुत प्यार करने से लेकर उसे छोड़ने तक का सफर तय किया)
अल्कोहोलिज़्म की शाब्दिक परिभाषा है ‘शराब के अत्यधिक और आमतौर पर बाध्यकारी सेवन के कारण हुआ एक दीर्घकालिक विकार जो मनोवैज्ञानिक या शारीरिक निर्भरता या व्यसन का कारण बनता है ’ । लेकिन शब्दकोष आपको यह नहीं बताता है कि यह भारी दर्द और गंभीर परेशानी का कारण बन सकता है। अन्य लोगों के लिए।
मुझे अहसास ही नहीं हुआ कि शराब पीना कब मज़ेदार होने से गुज़र कर अपमानजनक दुःस्वप्न बन गया।
देर रातें, पार्टियां, शिफॉन और शैम्पेन से भरी शामें और वह हमारे जीवन का सबसे अच्छा समय था। दुर्भाग्य से चीज़ें बदल गईं। हमारे गेट टुगेदर घर लौटने के बाद भी रात तक जारी रहने लगे। सिर्फ हम दोनों। एक छोटा सा ड्रिंक उसे अगले ड्रिंक तक पहुंचा देता था और फिर वह सिलसिला चलता ही रहता था। यह हानिरहित आनंद था, या शायद मैंने ऐसा सोचा था। लेकिन जल्द ही हमारे पार्टी के बाद के पोस्टमार्टम जिसमें हम दूसरे लोगों के खर्च की हंसी उड़ाते थे, अंदर की ओर बढ़ने लगे। ‘‘तुम अमुक व्यक्ति से बात क्यों कर रही थी? क्या तुम देख नहीं सकती कि मैं कितना तुच्छ महसूस कर रहा था? मेरी पत्नी मेरे सीओ के साथ फ्लर्ट कर रही है।” मेरे द्वारा उत्तर दिए जाने पर कठोर शब्द सुनाई देते थे। सो जाना ही उससे मुकाबला करने का एकमात्र तरीका था।
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कभी-कभी मैं जाग उठती थी तो उसे उस समय भी गुस्से में शराब पीता हुआ देखती थी। कुछ ही घंटां की नींद और फिर सुबह वह वापस वही अद्भुत पुरूष बन जाता था जो वह बेतहाशा पीने से पहले था।
यह ऐसा था जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं था। गालियां, अपमान, घिनौनी धमकियां, सब कुछ भूला दी जाती थीं। वह पहले की ही तरह प्यार करने वाला बन जाता था और तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल जाता था। और मैं भी भूल जाती थी और माफ कर देती थी।
लेकिन थोड़े ही समय में, वे शामें और ज़्यादा भयावह बनती गईं और जल्द ही बाहर बिताई जाने वाली शामें भी बंद हो गईं। उसके पास साथ के लिए उसकी बोतल होती थी। और फिर मौखिक स्लैप उत्सव शुरू हो जाता था। ‘‘हम असंगत हैं, हमें कभी शादी करनी ही नहीं चाहिए थी और तुम मेरे लिए कुछ भी नहीं हो।” और मैं डर कर सोचने लगती थी कि यह अद्भुत पुरूष अपमानजनक शैतान कैसे बन गया। मैंने उसकी बोतले छुपाना और नौकरों को जल्दी घर भेजना शुरू कर दिया। मैं नहीं चाहती थी कि वे देखें कि मुझे घर के बाहर बंद कर दिया गया है और मैं अंदर आने के लिए गिड़गिड़ा रही हूँ। हर थोड़े दिनों में वह आधी रात को घर से बाहर निकल जाया करता था और मुंह अंधेरे ही लौटता था। ‘‘तुम कहां गए थे, किसके साथ थे?’’ कोई उत्तर नहीं मिलता था, बल्कि मेरे मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया जाता था।
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मैंने दूसरे कमरे में सोना शुरू कर दिया। मैं बहस करती थी। उसके जवाब में मैं भी चिल्लाती थी। रात में उसकी एक घिनौनी टिप्पणी के बदले में मैं दस टिप्पणियां देती थी। इससे उसे और ज़्यादा गुस्सा आता था। मैं भी उसके द्वारा किया गया अपमान याद रखती थी और सुबह उसे गुस्से में याद दिलाती थी जब वह शांत और लविंग होता था। इसलिए अब हमारी सुबहें भी विषाक्त बन गईं। अगर दुर्व्यव्हार रात का प्रतिमान था, तो क्रूर टिप्पणियां दैनिक कार्य बन गईं। लेकिन शब्दों के परे अपमानित होने पर, मैं अपना आत्मविश्वास खो रही थी।
उसके पास कम से कम एक बहाना था – शराब। मेरे पास नहीं था। मैं स्वयं को दोषी महसूस करने लगी। क्या यह कहीं ना कहीं मेरी गलती थी कि वह शराब पीता था?
थोड़े समय के लिए मैं अपने दोस्तों, उसके कोर्स मेट्स को अनदेखा करने लगी। लेकिन जब वे आसपास होते थे, तो वह हमेशा अच्छा बल्कि स्नेही व्यवहार करता था। इसलिए मैं उन्हें घर पर बुलाने लगी। लेकिन उनके जाने के बाद दुःस्वप्न फिर से लौट आता था। और फिर जब एक दिन मेरी समर्पित नौकरानी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं चाहती हूँ कि वे भी घर पर ही सो जाएं, तो मैं समझ गई कि उन्हें पता चल चुका है।
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लेकिन जब मैंने सोचा कि मेरा अपमान पूरा हो चुका है, तो मैं गलत थी, और अपमान बाकी था। एक दिन उसके सहकर्मी ने मुझे सहानुभूतिपूर्वक देखा और परामर्श लेने का सुझाव दिया। क्या वह जानता था? वह मुझे क्यों बता रहा था? क्या दूसरे लोग भी जानते थे? पता चला कि जिन रातों को वह घर से बाहर चला जाया करता था वह किसी ना किसी बार में होता था और अंततः होशो हवास खो बैठता था, फिर बारमैन उसके किसी कोर्स मेट को कॉल करता था कि वे उसे घर छोड़ आएं। तो उसे बड़बड़ करते हुए, अनाप शनाप बकते हुए और लड़खड़ाते हुए घर छोड़ दिया जाता था। वे सभी चुप रह रहे थे। और मैं नहीं जानती थी। बस वह मेरी सहनशक्ति की सीमा थी। मुझे लगा कि मुझे धोखा दिया गया है और मेरी गरिमा को खत्म कर दिया गया है। मैंने सोचा कि अब मैं और अपमान नहीं सहूंगी। ज़ाहिर है कि यह सार्वजनिक हो गया था और थोड़े समय से सार्वजनिक रहा था। मेरे मन में उसके लिए जो भी प्यार था शायद बहुत समय पहले से फीका पड़ चुका था। शराब के आक्रमणों के कारण मुरझाया हुआ प्यार जा चुका था और अब वफादारी भी। भगवान का शुक्र है कि हमारी कोई संतान नहीं थी। इसलिए मैंने हिम्मत जुटाई। अपना बोरिया बिस्तर बांधा। और चली गई।
और उस तथ्य के वर्षों बाद आज यहां हूँ। अब मैं एक अच्छी स्थिति में हूँ। मैंने अपनी गरिमा पुनः प्राप्त कर ली है। गरिमा एक स्त्री के पास एकमात्र सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है। कोई भी रिश्ता या पुरूष इस योग्य नहीं होता कि उसके लिए अपनी गरिमा खो दी जाए।
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