भले ही आप कहीं भी रहते हों, भारतीय माता-पिता के पास अदृश्य रिमोट कंट्रोल के साथ अपने बच्चों के जीवन को नियंत्रित करने की एक शक्ति होती है। यह इतना शक्तिशाली है कि चाहे आप दुनिया के किसी भी कोने में रहते हों, यह काम करता है और अच्छी तरह काम करता है।
हमारे समाज में माता-पिता के बीच एक आम धारणा भी है। उनका मानना है कि जब वे उनकी बेटियों की शादी करते हैं तो वे घर के सबसे सम्मानित अतिथि को घर लाते हैं। वे मानते हैं कि इस ‘सम्मानित अतिथि’ का कर्तव्य है कि उनकी बेटी की सभी इच्छाओं और सपनों को पूरा करे और उसे खुश रखे। सभी परिकथाओं की तरह, उनकी राजकुमारी अपने राजकुमार के साथ हमेशा खुश रहना चाहिए। लेकिन…जब वे अपने बेटों की शादी करते हैं, तो वे सहानुभूति के आधार पर एक गुलाम को घर लाते हैं और वह उनका हुकुम बजाने और उनकी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने के लिए वहां होती है।
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इस पूरे परिदृश्य में, बेटों के लिए मेरी बहुत सहानुभूति है। बेचारा मासूम लड़का…जल्द ही….बिना किसी गलती के उसे नाम दे दिया जाता है; मम्माज़ बॉय या फिर जोरू का गुलाम। यह ठप्पा हमेशा के लिए कायम रहता है।
मेरा पहला बलिदान
इसलिए जब मेरी सास ने मुझसे मेरी एमबीए क्लास शुरू करने की बजाए उनके साथ कुछ महीने बिताने को कहा, तो मैंने उनके आदेश को अपने पति की इच्छा मान कर पूरा किया। वैसे भी, मुझे प्रवेश आईआईएम में नहीं मिला था। मैंने एक श्रेष्ठ बहू की डिग्री प्राप्त करने के लिए अपना डिप्लोमा छोड़ दिया।
“श्रेष्ठ बहू! वैसे हम सभी जानते हैं कि यह एक काल्पनिक डिग्री है।
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कुछ वर्षों बाद, मम्माज़ बॉय की नौकरी हमें एक दूर देश में ले गई। उन्हें पूरब में छोड़कर, बीच में भूमि के बहुत बड़े विस्तार के साथ हम पश्चिम में चले गए। लेकिन…क्या मैं इतनी भाग्यशाली थी कि अपने जीवन के निर्णय के अतिक्रमण से दूर रहूँ? दुबारा अनुमान लगाओ।
“तुमने स्कूल क्यों जॉइन कर लिया? घर, मेरे बेटे और तुम्हारे बच्चों का ध्यान कौन रखेगा? नौकरी छोड़ दो और तुम्हारे घर और बच्चों की देखभाल करो। वह ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। हमे कामकाजी बहू नहीं चाहिए।” यह आदेश फोन पर दिया गया था।
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मैंने अपनी तरफ से कमान संभाली और जो मैं करना चाहती थी वह करती रही। मेरे पति के लिए रिमोट कंट्रोल दबा दिया गया था लेकिन जोरू का गुलाम चुप रहा।
अगली मांग
दो महीने बाद मेरे सास-ससुर हमारे साथ रहने आ गए। मेरी सास ने मुझे आदेश दिया कि एक महीने की छुट्टी लेकर उनके साथ घर पर रहूँ।
“क्यों? यह एक प्ले स्कूल है और मैं सिर्फ चार घंटों के लिए घर से बाहर रहूँगी,’’ मैं शांत रहने की कोशिश करते समय परेशान हो रही थी। ‘‘मुझे एक महीने की छुट्टी नहीं मिलेगी!’’
“तो नौकरी छोड़ दो। तुम कितना कमा रही हो?’’ मैं उससे दुगनी राशि तुम्हें दूंगी। घर पर रहो और अपने घर का ध्यान रखो।” मुझे स्वर में तानाकशी महसूस हुई।
मुझे ठेस पहुंची थी। क्या यह इसलिए था कि पूरी चर्चा के दौरान मम्माज़ बॉय चुप था या फिर इसलिए क्योंकि मैं अपनी गरिमा के लिए खड़ी नहीं हो सकी थी? मुझे पता नहीं था।
लेकिन इस बार नहीं
अगली सुबह, मैं कड़ाके की सर्दी वाली सुबह, शॉवर के नीचे खड़ी रही। मैं कांप रही थी लेकिन निश्चित रूप से ठंडे पानी की वजह से नहीं। मेरी आंखों से आंसू पानी में मिल कर अपनी पहचान खो रहे थे। वे अब मेरी भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं थे। वह सिर्फ पानी था, किसी को भी इस बात की परवाह नहीं थी कि यह बहता है या झूठी मुस्कान के पीछे छुपकर आंखों में रह जाता है।
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मुझे भी पता था कि जो कुछ मैं कर रही थी वह एक ‘टाइमपास’ नौकरी थी जो मैंने खुद को व्यस्त रखने के लिए की थी। मैं जानती थी कि जो अल्प वेतन मुझे मिल रहा है वह सिर्फ मेरा ‘जेब खर्च है’ लेकिन फिर भी मेरी नौकरी मेरे लिए बहुत मायने रखती थी। सब से बड़ी बात की यह मुझे खुश और जीवित महसूस करवाती थी।
मैंने आईने में देखा। लाल शर्ट के मेरे मूड को और बढ़ाया। मैंने लाल लिपस्टिक और हल्के मेकअप के साथ उसे मैच किया। अपना आत्मविश्वास ओढ़कर मैं दंग नज़रों से मिलने चली गई। ‘‘नाश्ता टेबल पर है और मैं लंच से पहले आ जाऊंगी।” मैं मुख्य दरवाज़े की ओर चलती गई। मेरी हील वाली जूती की खट-खट मुझे आनंदित कर रही थी।
आखों के किनारों से मैंने देखा कि जोरू के गुलाम के चेहरे पर एक साहसी मुस्कान दौड़ रही थी।