गुआहटी के नीले पहाड़ों के बीचे एक मंदिर है जो स्त्री शक्ति की पूजा करती है. ये ख़ास बात नहीं है इस मंदिर की. ख़ास बात ये है की यहाँ स्त्रियों के मासिक धर्म की पूजा की जाती है. हर महीने यहाँ स्त्री की प्रजनन की क्षमता को पूजा जाता है. ये कामाख्या देवी का मंदिर जहाँ देवी अपने रजोधर्म के दिनों में विराजती हैं. यहाँ मासिक धर्म को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता, न फुसफुसा कर इसकी बातें होती हैं; यहाँ स्त्रियों के इस महिमा का गुणगान होता है.
सती की मृत्यृ
ऐसा कहा जाता है की शिवा की पहली पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष की इच्छा के विरुद्ध शादी की थी. यूँ तो सती बहुत ही सुखी जीवन व्यतीत कर रही थी, मगर फिर भी वो अपनी माँ और भाई बहनों से मिलने अपने पिता के घर जाना चाहती थी. जब उसे पता चला की दक्ष एक बहुत ही विशाल यज्ञ कर रहे हैं और उन्होंने शिवा के अलावा हर देव को आमंत्रित किया है, तो उसने भी यज्ञ में जाने का फैसला किया.
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अपने पति शिवा की सारी चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर वो भी यज्ञ में चली गई. उसे पूरी उम्मीद थी की शायद वो अपने पति के बारे में पिता की राय बदल पायेगी. मगर ऐसा कहाँ होना था. दक्ष ने शिव की बहुत खिल्ली उड़ाई और उसका अपमान किया. आहात सती ने उसी यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी.
गुस्से और दर्द से तड़पते शिव ने वहां पहुंच कर पूरे यज्ञ को द्वंषित कर दिया और अपनी पत्नी के पार्थिव शरीर को कन्धों पर रख पूरे विश्व के चक्कर लगते एक विनाशकारी नृत्य किया.
शिव के इस नृत्य से भगवन विष्णु भयभीत हो गए की शायद इस क्रोध से संसार का विनाश हो जायेगा। तब उन्होंने अपने चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया. अपनी मृत पत्नी के शरीर के टुकड़ों को देखकर अंततः शिव का क्रोध शांत हुआ.
सती के शरीर के विभाजित टुकड़े १०८ जगह गिरे और अब वो सभी स्थल शक्ति पीठ के नाम से जाने जाते हैं.
जब नदी लाल हो जाती है
असाढ़ के महीने में मंदिर के बगल से बहती ब्रह्मपुत्र नदी चार दिनों के लिए लाल रंग की हो जाती. आज तक कोई नहीं समझ पाया है की कैसे ये नदी का पानी लहू सा लाल हो जाता है. इन दिनों में ही अम्बुबाची मेले का आयोजन होता है.
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पुरोहितों का समूह पत्थर पर सफ़ेद कपडा उड़ाते हैं, जो योनि का प्रतीक होता है. इन दिनों गर्भगृह के दरवाज़े भी बंद कर दिए जाते हैं. चार दिन बाद वो सफ़ेद कपडा लाल और गीला मिलता है. उसके टुकड़े कर प्रार्थियों के बीच बाँट दिए जाते हैं. इस कपडे का एक अंश भी अपने घर में रखना बहुत शुभ माना जाता है.
प्रेम के देवता कामदेव ने देवी से उनकी कोख और उनके अंग मांगे थे अपनी नपुंसकता के निवारण के लिए. जब उनकी समस्या का हल हो गया तो अपना आभार प्रकट करने के लिए कामदेव ने देवी को वचन दिया की उनकी पूजा इस स्थान पर योनि के रुप में ही होगी.
इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है और यहाँ सिर्फ एक योनि की पूजा होती है, जिससे हमेशा एक जल स्रोत निकलता है जो योनि को नम रखता है. ये स्त्री के गर्भाशय का प्रतीक है जहाँ से सारे जीवन का श्रोत है.
शिव और शक्ति का मिलन
कहते हैं की यहाँ पेड़ फुसफुसा कर बातें करते हैं, और ऐसे राज़ छुपाये हैं इन वृक्षों में जो सिर्फ नदी ही जानती है. शिव का यहाँ सती से एक उत्तेजक मिलन होना था. क्योंकि यौन इच्छा का संस्कृत शब्द काम है, इस देवी को कामाख्या के नाम से जाना जाता है. कामाख्या का अर्थ है जो सारी इच्छाएं पूरी करे.
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कलिका पुराण में कामाख्या को इच्छा पूर्ति देवी कहा है जो शिवा की युवा वधु है. इस मंदिर में एक खास सिन्दूर मिलता है जो इसका प्रतिक है. यह कामाख्या सिन्दूर एक चट्टान से बनाया गया है और माना जाता है की खुद देवी ने इसे आशीष दिया था.
कामाख्या देवी को जीवन यापिनी कहा गया है. यह वो रूप है जो हर स्त्री धरती है जब उसमे किसी को जन्म देने की शक्ति आती है. पूरे संसार में ये उन चुनिंदा मंदिरो में से एक है जहाँ देवी को उसके जैविक रूप में पूजा जाता है.