जैसा दीपान्नीता घोष बिस्वास को बताया गया
मेरा प्यार मुझे बांध रहा था, मेरा प्यार मुझे भ्रमित कर रहा था, मेरा प्यार मुझे आगे नहीं बढ़ने दे रहा था…..और फिर भी मैं चाहती थी कि प्यार करती रहूँ। मुझे नहीं पता था कि आगे बढ़ जाने और बंधन मुक्त होने की भावना कैसी महसूस होगी – मैं ‘जुड़े नहीं होने’ की अज्ञात भावना से डरती थी और मैं किसी के साथ होने की उस आरामदायक भावना को छोड़ना नहीं चाहती थी। मैंने अपने पूरे अस्तित्व के साथ उस पर भरोसा किया था, मैं अपना जीवन उसके साथ बिताना चाहती थी और हमारा भविष्य साथ में बुनना चाहती थी लेकिन यह बस मैं ही थी, वह ऐसा नहीं चाहता था। और इसे जारी रखने में मुझे कोई औचित्य नज़र नहीं आया।
जब मैं उसे पहली बार मिली, मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने एक नए शहर आई ही थी। मैं अकेले रहने के बारे में उत्साहित थी, और मेरे साथ हुई सबसे अच्छी बात वह था, वास्तव में। वह एक व्यस्त चिकित्सक था लेकिन उसने अपने व्यवसायिक दायित्वों की चोट मुझे कभी महसूस नहीं होने दी। चीज़ें बिल्कुल सही और प्यारी थीं -बिल्कुल वैसी ही जब प्यार फलता-फूलता है। लेकिन मैं काँटों को अनदेखा नहीं कर सकती थी -मेरा ब्वायफ्रेंड एक विवाहित पुरूष था। बेशक, उसने अपनी पत्नी के साथ असंगतता की झूठी दुखभरी कहानी का मुझे विश्वास दिलाया था, लेकिन फिर भी, इससे उसकी वैवाहिक स्थिति बदल नहीं जाती।
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वह मुझे बार-बार आश्वस्त करता रहा की उसका तलाक नज़दीक है, और उसके और उसकी पत्नी के बीच कुछ भी सही नहीं चल रहा है।
उसके प्रति मेरा प्यार हमेशा मेरी अंतरात्मा से युद्ध में जीत जाता था और में उसके झूठ के जाल में फंसती चली जाती थी।
वह चाहता था कि मैं तलाक के दौरान भावनात्मक रूप से उथल-पुथल वाले चरण में उसके साथ खड़ी रहूँ और मैंने अपने प्यार का साथ दिया। मेरे पास संबंध विच्छेद करने के पर्याप्त कारण थे -उसकी तथाकथित ‘विरक्त’ पत्नी के साथ उसकी लंबी बातचीत, जब मैं बाहर यात्रा पर गई होती थी तब घर में स्त्री की उपस्थिति के स्पष्ट संकेत -लेकिन प्यार ने मुझे अंधा कर दिया था।
एक वर्ष ऐसे ही बीत गया। जब मैं प्रश्न नहीं पूछती थी, तब मैं खुश रहती थी, लेकिन सच ज़्यादा दिन तक नहीं छुपता। और फिर मेरे सामने उसके और उसकी पत्नी के फोटो फोल्डर आ गए भिन्न छुट्टियों के स्थानों पर और एक दूसरे की बाहों में।
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जिस भ्रम को मैं बनाए रखने की कोशिश कर रही थी वह टूट गया और मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन सबूत वहीं था।
अचानक, मैं प्रियजन से दूसरी स्त्री बन गई, और यह पीड़ादायक था। मुझे पता था कि दोषी और कोई नहीं बल्कि मैं ही थी।
मैंने इस संबंध को जारी रखने का निर्णय लिया था, अच्छी तरह जानते हुए कि यह केवल मुझे दर्द ही देगा।
यह एक दुःस्वप्न था जब मैंने उन सभी तस्वीरों के साथ उसका सामना किया। उसने संकोच किया लेकिन एक बार फिर अपने संबंध के बारे में झूठ कहा और इस हद तक कि अपनी पत्नी पर दूसरे पुरूष के साथ सोने का आरोप तक लगा दिया।
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वह चाहता था कि मैं रूकूं और मेरे दिल ने भी मुझसे रूकने का कहा। लेकिन मेरे दिमाग ने मुझे थोड़ी अक्ल दी और मैं उसकी सारी कहानियों के साथ उसके परिवार से मिली। मुझे जो पता चला उससे मैं हैरान नहीं हुई -मुझे पता चला कि वह दोनों पक्षों को खुश रखने की कोशिश कर रहा था। उसने ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही नहीं, और जारी रखा लेकिन मैंने खुद को दबा हुआ महसूस किया। मैं हर रात तकिया गीला करती थी और उसका गुप्त रहस्य होने के बारे में तुच्छ महसूस करती थी। लेकिन मुझमें आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं थी। मेरा आत्मसम्मान पूरी तरह टूट गया था जब मैं यह सोचती थी कि पिछले दो वर्षों से मैं ऐसे संबंध में सुकून और मान्यता तलाश रही थी, जो कभी सामने आने योग्य था ही नहीं। लेकिन घर तोड़ने वाली स्त्री कहलाना मेरे दुखों के ताबूत में अंतिम कील थी।
मैंने कुछ ही दिनों में अपनी नौकरी, घर, शहर और उसका जीवन छोड़ दिया और अपने माता-पिता के घर चली गई। यह पीड़दायी लगता है कि मैं अपने दुःख उनके साथ साझा नहीं कर सकती, लेकिन उनकी उपस्थिति सुकून देती है। ‘‘मैंने गलत क्या किया,’’, ‘‘क्या मैं उसके लिए अच्छी नहीं थी,”, ‘‘क्या उसने कभी मुझसे प्यार नहीं किया?’’ -ये प्रश्न मुझे निरूत्तर कर देते हैं। दिल टूटने और दिमाग के विक्षिप्त होने के बाद मुझे अहसास हुआ कि वह ऐसा था ही नहीं जो मेरा साथ देता। हाँ, मैं उससे दूर आ गई हूँ लेकिन नहीं, मैं वास्तव में दूर नहीं जा सकी हूँ। मैं स्वयं पर कम कठोर होना चाहती हूँ लेकिन यह इतना आसान नहीं है। मैं अपना उत्साह और मन की शांति खो चुकी हूँ; अब मेरे पास केवल अविश्वास है।
हमारा परिवार एक आदर्श परिवार था और फिर सेक्स, झूठ और ड्रग्स ने हमें बर्बाद कर दिया