मेरे पति और मैं कॉलेज के दौरान दोस्त बनें और फिर वह दिन भी आ गया जब उन्होंने घुटनों पर बैठ कर पूरी फिल्मी शैली में मेरा हाथ मांगा। मैंने हाँ कह दिया, लेकिन मुझे पता था कि पारिवारिक नाटक जल्द ही शुरू हो जाएगा। मेरे माता-पिता बहुत सख्त थे, जबकि उनके माता-पिता चाहते थे कि वह एक घरेलू लड़की से शादी कर ले और मैं ‘कैरियर ओरियेंटेड’ थी; मैं सिंधी थी और वे गुजराती। किसी तरह हम अपने-अपने परिवारों को मनाने में सफल हुए।
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मैं उनके परिवार का एक अंग बनकर बहुत खुश थी। मैंने सबसे बात करने की कोशिश की। मैंने उनके रीति-रिवाज़ समझने की कोशिश की। मैंने अपने घर में बहुत कम काम किया था और मुझे बना बनाया खाना परोसा जाता था। मैं कभी-कभी देर से जागा करती थी और केवल तभी अपनी मम्मी की मदद करती थी जब कामवाली नहीं आया करती थी। उसके अलावा, मैं केवल नौकरी पर जाया करती थी। लेकिन अब मैं पूरी तरह अलग परिवार में थी, कठिनाई से संघर्ष कर रही थी और एकमात्र चीज़ जो मैं चाहती थी वह था स्वीकार किया जाना।
वह अपने ससुराल वालों की अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश करती रही, और फिर उसे अंततः अहसास हुआ कि बेहतर होगा कि मैं जैसी हूँ वैसी ही रहूँ और गलतियाँ करूँ।
मैं घर देर से आया करती थी, लेकिन फिर भी जिस भी तरह से मैं कर सकती थी, अपनी सास की मदद करने की पूरी कोशिश करती थी। यहाँ तक कि मैं अपने ससुराल वालों से यह भी कहती थी कि मुझे काम करने दें, क्योंकि मैं घर चलाना सीखना चाहती थी, लेकिन वे मुझे करने नहीं देते थे।
अगर मैं खाना बनाना चाहती थी, तो वे मुझे कोई दूसरा काम करने का कह देते थे। मुझे कभी भी किसी चर्चा में भाग लेने को नहीं कहा जाता था, और मुझे अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं थी।
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हालांकि मेरी पीड़ा की अनदेखी नहीं हुई। मेरे पति यह सब देख रहे थे और जब वे मेरी सहायता करने की कोशिश करते तब उन पर ‘जोरू का गुलाम’ होने का ठप्पा लगा दिया जाता। आठ महीनों बाद, मेरे पति को घर, खर्च और कुछ अन्य मामलों पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया। मुझे लगा कि यह एक सामान्य चर्चा होगी। लेकिन मेरी दुनिया ही उजड़ गई जब मैंने अपनी सास को यह कहते सुना कि ‘‘शादी के बाद तुम बदल गए हो। तुम गैर ज़िम्मेदार और स्वार्थी हो गए हो।”
जब मेरी सास शहर से बाहर गई हुई थी, तब मैंने ही खाना बनाने से लेकर सफाई और घर के दूसरे काम निपटाए थे। फिर भी मुझे ऐसे ताने सुनने को मिलते थे जैसे कि, ‘‘यह घर के काम-काज संभालना कब सीखेगी? यह कुछ भी नहीं करती है।”
मैं घर संभालना सीख रही थी। सफाई, झाड़ू-पोंछा, मदद करना, घर संभालना और खाना बनाना, यहाँ तक कि घर खर्च के लिए अपने वेतन का एक भाग देना। क्या उन्हें मुझे समय नहीं देना चाहिए था? लेकिन हम इसे अपना कर्तव्य समझकर अपने परिवार का सहयोग करते रहे।
एक दिन, मेरी सास ने अचानक कहा, ‘‘मैं तुम्हें 15 दिनों का समय दे रही हूँ तुम दोनों अपने लिए एक घर ढूँढ लो।” मैं आज तक इतना बड़ा कदम उठाने का कारण नहीं जान सकी हूँ। हमारे पास आवश्यक अनुभव नहीं था। लेकिन अब हमें यह शुरू करना था। मेरे पति ने लोगों से संपर्क कर कुछ घर देखे और अंत में, उन्हें एक घर पसंद आया। मेरी स्वीकृति मिलने के बाद हम उस घर में स्थानांतरित हो गए। मुझे हमारी प्रतिज्ञा याद थी कि चाहे जो भी हो, हम एक दूसरे का साथ देंगे। हमने विदा ली और हमारी अपनी यात्रा शुरू हुई।
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मेरे पति ने मुझे ऑफिस जाने को कहा और उस बीच उन्होंने घर की सफाई और स्थानांतरण का काम पूरा किया। हम अपने घर के लिए सामान खरीदने हर दिन बाज़ार जाते थे। सप्ताहांत आमतौर पर घर के लिए खरीदारी करने और सामान व्यवस्थित करने में ही बीतता था। उस समय की यादें बहुत सुंदर हैं।
कुछ दिनों बाद, हमें अपना गैस सिलेंडर मिल गया और जब मैं घर पहुँची उन्होंने मुझे एक कुर्सी पर बिठाया और कहा, ‘‘आज, मैं तुम्हारे लिए खाना बनाऊंगा।” मैं उन्हें निहारती ही रह गई, मैं किचन में गई और हमने अपना पहला भोजन, हम दोनों का पसंदीदा पुलाव साथ में बनाया।
आज, हम अपना घर और नौकरियां साथ में संभालते हैं। हम अपना घर बहुत अच्छी तरह संभाल रहे हैं। वे खाना बनाने और सफाई करने में मेरी मदद करते हैं। जैसी मैं हूँ वे उसके लिए मेरा सम्मान करते हैं। वे मुझे स्वतंत्रता और आवश्यक दूरी देते हैं। हम साथ में निर्णय लेते हैं। हमारे घर में झगड़ों और गलतफहमियों के लिए कोई स्थान नहीं है। भले ही यह किराए का घर है, हम सकारात्मक और चिंतामुक्त हैं और जानते हैं कि थोड़े समय बाद, हम अपना स्वयं का घर खरीदने में सक्षम होंगे।
मैं उसका एक भाग बनकर खुश हूँ। वह चाहता तो अपने परिवार के नियम और शर्तें मान कर उनके साथ रह सकता था। लेकिन उसने मेरे आत्मसम्मान और मेरी रक्षा करने का निर्णय लिया। उसने मेरा साथ दिया।
मैं अत्याचारी पति से अलग हो चूकी हूँ लेकिन तलाक के लिए तैयार नहीं हो पा रही हूँ