मेरी पत्नी का विवाहेतर संबंध था। एक बार नहीं बल्कि दो बार। और मैं सुखद रूप से दोनों बार अनजान था। जब तक कि एक शनिवार की शाम को मैंने उसके फोन पर वह चैट नहीं पढ़ी थी। वह उसे डिलीट करना पूरी तरह भूल गई थी।
मैंने उससे प्रश्न किया। उसने इनकार कर दिया। मैंने आधी रात को उस लड़के को फोन करने की धमकी दी। मैंने वास्तव में फोन कर भी दिया। उसने फोन नहीं उठाया।
विद्रोही होकर, वह स्वीकार करने से इनकार करती रही कि कुछ हुआ था।
मैं संतुष्ट नहीं था, मैंने रविवार को अपने लैपटॉप पर उसके मैसेजिंग एैप का एक क्लोन बनाया।
सोमवार सुबह, मेरे पास सबूत था कि उसका संबंध था। सोमवार की रात, मैंने फिर से उससे पूछताछ की। उसने फिर से इनकार किया। मैंने उसे सबूत दिखाया। वह रो पड़ी और उसने स्वीकार कर लिया।
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दो दिन बाद, निरंतर दबाव के कारण, उसने पहला विवाहेतर संबध भी स्वीकार कर लिया। वह परिवार के करीबी सदस्य के साथ था।
वह संबंध हमारा पहला बच्चा होने के बाद हुआ था। वह मुझे 15 वर्षों से बेवकूफ बना रही थी।
मैं बर्बाद हो गया था। मेरी पूरी दुनिया बिखर गई। मैं वास्तव में घर छोड़ कर चला गया और 7 दिनों तक यहां-वहां भटकता रहा, यह भी नहीं जानता था कि मुझे जीवित रहना चाहिए या मर जाना चाहिए। मुझे लगा कि मेरा पूरा जीवन एक धोखा है।
मेरे सभी निकटतम लोगों ने मेरे खिलाफ षड़यंत्र किया और मेरे पीठ पीछे मेरी खिल्ली उड़ाई। शायद वे सभी जानते थे कि मैं एक मूर्ख, एक बेवकूफ हूँ। सात दिनों के लिए, मैं अपने परिवार और मित्रों के संपर्क से दूर रहा, क्योंकि मैं नहीं जानता था कि इसमें और कौन-कौन शामिल था और मैं किस पर भरोसा करूं!
जब मैंने अंततः उससे संपर्क किया, वह टूटने की कगार पर थी। मैंने उसे गोवा में बुलाया। वह आई बावजूद इसके कि कई लोगों ने उसे मुझसे अकेले ना मिलने का सुझाव दिया था। दो दिनों तक, हम दोनों ने सिर्फ बात की और चर्चा की कि क्या गलत हो गया और क्या हमारा कोई भविष्य है। मुझे अहसास हुआ कि जो कुछ हुआ उसके बावजूद, मेरी कुछ ज़िम्मेदारियां थीं। मुख्य रूप से हमारे जीवन में दो अद्भुत बच्चों के प्रति। यह मायने नहीं रखता था कि उनमें मेरे जीन्स थे या नही। मैंने उन्हें पाला था और दुनिया का सामना करना सिखाया था। मेरा उनके साथ जो बंधन था वह किसी भी खून के रिश्ते से ज़्यादा मजबूत था। मेरी स्थिति के बावजूद, अपनी पत्नी के कृत्यों और मेरी प्रतिक्रियाओं के कारण मैं उनकी ज़िंदगी बर्बाद नहीं होने दे सकता था।
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हम घर वापस आ गए। मुझे उसके संबंधों को स्वीकार करने में लगभग 6 महीने लग गए।
इस धीमी और कष्टपूर्ण यात्रा के दौरान, मुझे अहसास हुआ कि मेरी नफरत और क्रोध का मूल कारण उसके कृत्य नहीं बल्कि वे अवास्तविक उम्मीदे थीं जो मुझे उससे थीं।
जिन्हें हम प्यार करते हैं उनसे हम सब ये उम्मीदें रखते हैं। वफादारी। प्रतिदान। अगर मैं वफादार था, तो मैं उससे वैसा ही होने की उम्मीद रखता था। हमें अहसास नहीं होता कि हम एक दूसरे के क्लोन नहीं हैं। समस्या मेरे साथ थी, उसके प्रति मेरी अवास्तविक अपेक्षाएं, उससे जो एक व्यवसायिक रूप से योग्य, स्वनिर्धारित दिमाग वाली व्यक्ति थी जो मेरे बराबर थी ना कि सहायक, द्वितीय श्रेणी की जीवनसाथी।
यह अहसास अकस्मिक नहीं अपितु क्रमिक था। यह उन कारणों की खोज के साथ शुरू हुआ जो उसके कार्यों को प्रेरित कर सके। जब उसका जीवन समृद्ध, कामुक रूप से रोमांचक, व्यावसायिक रूप से परिपूर्ण था और विवाहित जीवन संतुष्ट था तो ऐसा क्या था जो उसे एक भावुक संबंध में ले गया?
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मैंने प्यार, विवाह और संबंधों के विषय में ऑनलाइन बहुत सारे लेख पढ़े और वीडियो देखें। मुझे अहसास हुआ कि मैं अकेला नहीं था। और धीरे-धीरे मुझे अहसास होने लगा कि उसके संबंध, मुझमें या हमारे संबंध में किसी कमी के कारण नहीं थे।
उसे, मेरी तरह, जीवन में एक से अधिक लोगों द्वारा सराहना किए जाने, वांछित होने और प्रशंसा किए जाने की अंतर्निहित आवश्यकता थी।
मुझे पता लगा कि विवाह और संबंधों के टूटने की सबसे बड़ी वजह वफादारी और निष्ठा की अवधारणा है। किसी एक व्यक्ति या विचार या लोगों के प्रति वफादार होना मनुष्यों की मुक्त भावना के विपरीत है। प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता की इच्छा रखता है। आजीवन एक व्यक्ति के प्रति वफादार होना गुलाम होने जैसा है। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग विद्रोह करते हैं।
आज मैं अधिक परिपक्व हूँ और उतार चढ़ाव को संभालने में सक्षम हूँ, ना सिर्फ मेरे विवाह में बल्कि जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में भी। मैं मनुष्यों की कमज़ोरियों के प्रति और अधिक खुल गया हूँ और दूसरों के कार्यों के प्रति गैर आलोचनात्मक हो गया हूँ।
मुझे दृढ़ विश्वास है कि मेरे विवाह में जो कुछ भी हुआ वह मेरे जीवन के लिए एक सबक थाः मुझे बेहतर इंसान बनाने के लिए।