मुझे याद है कि जब मेरी शादी हुई थी, मैंने अपने पति के घर में एक सूटकेस लेकर प्रवेश किया था। मेरे पति ने पहले ही आवश्यक फर्निचर और हमारे विवाहित जीवन के लिए आवश्यक चीज़ें खरीद ली थीं। फिर मेरे माता-पिता के घर बार-बार जाने पर, मेरे घर में अधिक से अधिक घरेलू सामान जुड़ते गए। जब हम स्थानांतरित होने लगे तब जाकर मुझे पता लगा कि मैंने कितना सामान इकट्ठा कर रखा था। मेरे पति के दोस्त ने जोक मारा कि मेरे पति आए तो एक सूटकेस के साथ थे लेकिन वापस जाने के लिए उन्हें एक ट्रक की ज़रूरत है।
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विवाहित जीवन के सामान
हम एक भी चीज़ गवांए बगैर शहर दर शहर स्थानांतरित होते गए, मेरी बदौलत। अंत में, जब हम अपने खुद के घर में सैटल हुए, हमने और अधिक फर्निचर और उपकरण ले लिए, हालांकि मेरे पति ने विरोध किया। चीज़ों को स्टोर करने के लिए कमरों में बहुत सी अलमारियां थीं। अपना खुद का घर होने के उत्साह और आवेग में मैं बहुत से सामान खरीदती चली गई। और अब हमारा घर सजावट के सामान, कपड़े, खिलौने, किताबों वगैरा से भर गया है। चीजों को सावधानीपूर्वक संजोया जाना चाहिए ताकि वह घर के वातावरण को खराब ना करे।
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हर हफ्ते मुझे शो-पीस और फर्निचर को झाड़ना होता है और व्यवस्थित करना होता है। मुझे नहीं लगता कि मुझे उनका उपयोग करने का ज़्यादा अवसर मिला। जब मुझे रस्सी कूदने वाली रस्सी चाहिए होती थी जो मैंने बहुत समय पहले खरीदी थी, मुझे याद नहीं आता था कि मैंने वह कहां रखी थी। मुझमें उसे ढूंढने का धैर्य नहीं होता था इसलिए मैं बाज़ार जाकर दूसरी खरीद लेती थी। इस तरह से और चीज़े जमा होती गई। अब घर चीज़ों से घिरा हुआ दिखता है। मेरे पति मुझ पर उन चीज़ों को हटाने का दबाव डालते रहे जो अब हम इस्तेमाल नहीं करते हैं। मैं भी ये सामान हटाना चाहती हूँ लेकिन चीज़ों के साथ मेरा लगाव इतना ज़्यादा है कि मैं इन्हें फैंक नहीं पाती।
हमारी उम्र बढ़ती जा रही है। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मेरा बेटा इसी घर या इसी शहर में रहेगा। मुझे नहीं लगता कि उसे या उसकी पत्नी को उन चीज़ों में कोई रूचि होगी जो हमने जमा कर रखी है।
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दुनिया छोड़ने का रास्ता
पिछले वर्ष मेरी सास की मृत्यु हो गई। वह अपने बेटों के घर के नज़दीक एक घर में अकेली रहा करती थी। गयारहवें दिन के समारोह के बाद, हर कोई चला गया। हमें घर को बंद करना था। घर लगभग खाली था, केवल आवश्यकता की चीज़ें थीं। जैसे-जैसे मेरी सास वृद्ध होती गई, वे चीज़ों को एक के बाद एक हटाती गईं, उन लोगों को देते हुए जिन्हें वास्तव में उन चीज़ों की ज़रूरत थी। उन्हें ज़रूरतमंद लोगों का आभार प्राप्त हुआ, घर में उनका काम कम हो गया और उनके मरने के बाद संपत्ति को लेकर कोई झगड़ा नहीं हुआ।
अब मैंने चीज़ें खरीदना बंद कर दिया है। बहुत से प्रयासों और मेरे पति के दृढ संकल्प के साथ मैंने चीज़ों से छुटकारा पाना शुरू कर दिया है। ऐसे लोग हैं जो उन्हें खुशी से स्वीकार कर रहे हैं। मुझे अहसास हुआ है कि खुशी खरीदने में नहीं बल्की देने में है।
मैंने किस तरह अपनी सास का सामना किया और अपनी गरिमा बनाए रखी?
हम संतान चाहते हैं लेकिन असमर्थ हैं। मैं और मेरी पत्नी दोनों तनावग्रस्त हैं। कृपया सुझाव दीजिए