मैं अपनी सास से बहुत प्यार करती हूँ। मेरा एक प्रेम विवाह है। मैं एक बंगाली ब्राहृमण हूँ जो दिल्ली/एनसीआर में पली-बढ़ी है जिसकी शादी आधे उत्तर प्रदेश के बनिये- आधे मारवाड़ी लड़के से हुई है। परिवार में हमारा पहला प्रेम विवाह था, जिसमें आधे से ज़्यादा खानदान बहुरानी को देखने का इंतज़ार कर रहा था। मेरी दूसरी माँ (मेरे फोन में उनका नाम इसी नाम से सेव है) से बेहतर कामरेड, मार्गदर्शक, दोस्त मुझे मिल ही नहीं सकता था।
शादी की अटकलों से पहले मैं स्त्री के जीवन की शत्रु -सास, के बारे में सोच-सोच कर डर से मरी जा रही थी। और वह भी बनिया! पूरे समय जॉर्जेट/शिफान साड़ी पहनने का डर, शालीन पल्लू के साथ सिर ढंकना और अंत में कांच की चूड़ियां पहनना जो गरीब बच्चों द्वारा बहुत बुरी स्थिति में बनाई जाती है! और फिर शादी का दिन आ गया और मैं एक संयुक्त परिवार में आ गई जिसमें दादा-दादी, माँ-पापा और छोटी ननद शामिल थे।
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जब मेरी सास ने मुझे नौकरी के दौरान फोन किया
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ऑफिस में मेरा पहला दिन सहकर्मियों और कार्यालय के दोस्त, जो नई नवेली बनिया दुल्हन को छेड़ रहे थे और तंग कर रहे थे, उनके साथ सुसंगत रूप से चल रहा था, तभी अचानक मेरा फोन बजा। मेरी सास का फोन था।
यह सोचते हुए कि उन्होंने मुझे क्यों फोन किया, मैंने धीरे से उत्तर दिया, ‘‘हाँ माँ?! उन्होंने मधुरता से उत्तर दिया, ‘‘बेटा, तुम रात के खाने में क्या खाना चाहोगी?’’ कुछ पलों के लिए मैं भौंचक्की रह गई थी। मेरी सास ने मुझे यह पूछने के लिए फोन किया कि मैं डिनर में क्या खाउंगी! मैंने ऐसा कभी नहीं सुना था। फिल्मों में भी नहीं। मेरी खुद की माँ ने भी कभी ऐसा नहीं किया था, मेरे जन्मदिन पर भी नहीं। बेशक वह मेरी छुट्टी के दिन यह पूछा करती थी लेकिन यह वास्तव में अविश्वसनीय था। यह मुझे अपनत्व महसूस करवाने का उनका तरीका था।
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मैं क्या पहनू इसमें मेरी मदद करना
एक और याद जो मेरे दिमाग में हमेशा के लिए अंकित है, वह उस शादी की है जिसमें मुझे और मेरे पति को जाना था। दूल्हा मेरे पति के दोस्त का भाई था। हालांकि विवाह रविवार को था लेकिन मुझे किसी ज़रूरी काम की वजह से ऑफिस जाना था। मैं किसी तरह शाम के सात बजे घर लौटने में कामयाब हो गई एक पूरी तरह उलझन भरे दिमाग के साथ कि मैं क्या पहनूंगी। मैंने बस मेरा बैग रखा ही था कि मेरी सास ने मुझे उनके कमरे में बुलाया। मैचिंग जे़वरों के साथ एक नई साड़ी उनके बिस्तर पर सुंदर ढंग से रखी हुई थी। मेरे लिए! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या प्रतिक्रिया दूँ।
और धीरे-धीरे एक नए जीवन, नए अनुभवों ने मेरा स्वागत किया और मुझे समृद्ध किया। मैंने अपनी ननद से सब्जियां काटना सीखा। मुझे किसी भी धार्मिक रीति-रिवाज़, पूजा और अनुष्ठान के बारे में कुछ नहीं पता था और हाँ उपवास…भाई ये चीज़ क्या है? नवरात्री के दो दिन तो मैंने आसानी से संभाल लिए, लेकिन करवा चौथ बहुत बड़ा दर्द है। पानी भी नहीं। लेकिन वह हर बार दादी को बताए बगैर मुझे सरगी खाने देती थी। सबसे अच्छी बात? उन्होंने मुझे एक नहीं बल्कि कई बार डांटा कि मैं अपनी उम्र के अनुसार कपड़े क्यों नहीं पहनती, मतलब कि मैं फिटेड लाइक्रा जीन्स क्यों नहीं पहनती? मेरी माँ ने भी कभी मुझे ऐसा सुझाव नहीं दिया था।
मेरा पहला करवा चौथ
मेरा पहला करवा चौथ मेरे लिए हमेशा विशेष रहेगा। इसलिए नहीं क्योंकि यह पहला था, बल्कि जिस तरह से वह संपन्न हुआ था इसलिए।
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पिछले दिन मेरी ननद को पेट के गंभीर रोग की वजह से अस्पताल में भर्ती किया गया था। हम अस्पताल से ऑफिस दौड़े और उसे इतने दर्द और पीड़ा में देखकर, हम चकित हो गए, चौंक गए और रो पड़े। मेरे लिए अगले दिन का उत्सव पूरी तरह महत्त्वहीन था, मैं बस चाहती थी कि वह जल्दी से ठीक हो जाए।
उस निराशाजनक समय में भी, मेरी सास ने हमें घर जाकर आराम करने को कहा और विशेष रूप से मुझे अगली सुबह मेहंदी के लिए तैयार होने को कहा।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। उनकी खुद की बेटी बिस्तर में पड़ी है और उसे बोतलें चढ़ रही है और वे मुझे एक त्यौहार के लिए तैयार होने को कह रही हैं। आप तर्क दे सकते हैं कि मैं उनके बेटे के लिए उपवास कर रही थी, लेकिन वे एक भेदभवपूर्ण माँ नहीं थीं।
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अगली सुबह वे अस्पताल से घर आई और उन्होंने देखा कि मैं घर की झाड़ू लगा रही हूँ क्योंकि नौकरानी नहीं आई थी। उन्होंने मेरे हाथ से झाड़ू खींच ली, ‘‘आज नहीं” और मुझे सभी कामों से दूर कर दिया ताकि मैं नहा सकूं और मेहंदी लगा सकूं। मैं फिर से कुछ नहीं कह सकी।
मामूली झगड़े निश्चित रूप से उत्पन्न हुए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं जो हमें अलग करता। मैंने कभी उनके बेटे को छीनने की या उनके किचन पर राज़ करने की कोशिश नहीं की, ना ही कभी उन्होंने मुझे ये चीज़े बांटने से रोका और यहां तक कि उनके बेटे और किचन को नियंत्रित करने की भी अनुमति दी।
मैंने किस तरह अपनी सास का सामना किया और अपनी गरिमा बनाए रखी?