मुझे ऐसा लगा की मुझे मेरा आदर्श जीवन साथी मिल गया
चौबीस साल की उम्र में मैंने उस इंसान से शादी की जिससे मैं प्यार करती थी. वो मेरा पहला प्यार था और मैं जानती थी की मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी उसके साथ ही बितानी है. तो जब उसने प्रोपोज़ किया, मुझे फैसला लेने में कोई वक़्त नहीं लगा.
हम दोनों लगभग हमउम्र ही थे और अपने परिवारों के कारण मिले थे. बस अभी अभी कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई थी और असली ज़िन्दगी में पाँव टिकाने की कोशिश में लगे थे. ये बात ही मेरे पिता को सबसे अधिक खल रही थी. आखिर हर पिता की तरह उनका भी सपना था की बेटी का जीवनसाथी एक नौकरी और ज़िन्दगी में ठीक से सम्भला हुआ हो. उन्हें समझाने में हमें बहुत मुश्किलें हुई थी. उसके परिवार की कुछ मिलीजुली सी प्रतिक्रिया थी हमारी शादी को लेकर. खैर हर तरफ से रज़ामंदी मिल गई और हम विवाहित हो गए.
शादी के बाद के पहले कुछ साल तो बहुत ही शानदार थे. हमने रजिस्टर्ड शादी की और जब मौका मिलता तब साथ रहते. सामजिक शादी कई कारणों से एक साल के लिए टल गई थी. एक तरफ मेरे पिताजी की तबियत खराब थी और थोड़ी आर्थिक परेशानियां भी थी जिसके कारण हमने एक साल और इंतज़ार किया. मगर उस साल मैं गर्भवती हो गई. हम अभी न तो साथ रहते थे और न ही आर्थिक तौर पर इतने सशक्त थे की ये ज़िम्मेदारी उठा सकें इसलिए हमें गर्भपात कराना पड़ा. हमने सोचा की परिवार को बढ़ाने के लिए हमें अभी कुछ वक़्त की और ज़रुरत है. खैर, अंत में हम कभी भी परिवार को नहीं बढ़ा सके.
हम सबसे अच्छे मित्र थे, एक दुसरे के साथ सबसे अच्छे पल बिताते थे और दोनों ही अपने सपनो को पूरा करने की कोशिश में जी जान से लगे थे. वो मुझसे भी ज़्यादा मेहनत कर रहा था खुद को किसी मुकाम पर खड़ा करने के लिए.
और फिर उसका अफेयर हुआ
मगर इन सारी चीज़ों के बीच कुछ गलत हो गया. हमारी शादी के करीब छह साल बाद वो भटक गया. अपने से एक बहुत ही कम उम्र की लड़की के साथ उसका अफेयर हो गया.
मेरी दुनिया तो पूरी तरह से टूट गई. मैं अपने माता पिता के घर वापस आ गई. ज़िन्दगी ने ऐसा थप्पड़ मारा की मैं तो बिलकुल ही टूट कर बिखर गई थी. वो मेरे माता पिता के घर आया, उसने उनसे बात की और माफ़ी भी मांगी. मेरे माता पिता ने उसे एक और मौका देने की बात रखी. मैं भी उसे बहुत प्रेम करती थी और मैंने उनकी बात मान ली. आखिर ज़िन्दगी में हर किसी को दूसरा मौका मिलना चाहिए.
मगर वापस आकर उस टूटे रिश्ते को वापस जोड़ना बहुत ही जटिल था. हम जितना भी एक दुसरे के पास आने की कोशिश कर रहे थे, उतना ही दूर होते जा रहे थे. जब भी मैं उसके साथ चलने की कोशिश करती थी, वो मुझे धकेल कर अपने से दूर छिटक देता था.
जब भी मैं उसके साथ चलने की कोशिश करती थी, वो मुझे धकेल कर अपने से दूर छिटक देता था.
हम दोनों ही शारीरक, मानसिक और सेक्सुअल लेवल पर बहुत ही अच्छे से मेल खाते थे. मगर अब तो जैसे हमारे शरीर भी नहीं मिल पा रहे थे. करीब बीस साल बाद अब मेरी शादी हर मायने में टूट गई थी.
हम ने एक दुसरे के साथ होने की कोशिश की मगर नाकाम रहे.
मैं एक टूटे दिल के साथ आहात हो चुकी थी और मैंने अपने इर्द गिर्द एक दिवार बना ली. मैंने सिगरेट, शराब सब शुरू कर दिया. प्यार से टूटी, प्यार ढूंढती मैं अपने हर रिश्ते और दोस्ती को हिला रही थी.
खैर, ज़िन्दगी के तो अपने ही प्लान्स थे. मैं अपने एक पुराने मित्र से फिर से मिली. हालांकि वो मुझे उन दिनों पसंद करता था मगर फिर भी इतने सालों हमने एक दुसरे से कोई संपर्क नहीं रखा था. उसने मुझसे कहा की चलो हम कोशिश करते हैं की हम एक दुसरे का सहारा बनेंगे मगर कोई झूठे वादे नहीं करेंगे और न कोई सपने बुनेंगे।
मुझे लगा की वो आज भी मुझ पर वो पहले जैसा ही विश्वास करता था. तीस साल बाद भी वो मुझे ऐसा देखता है जैसे कुछ भी नहीं बदला है. उसका मुझ पर विश्वास मुझे जीने की हिम्मत देता है और खुद पर यकीन करने की इच्छा। धीरे धीरे उसके विश्वास के कारण मुझमे भी हिम्मत आने लगी है और मैं अपना आत्म सम्मान फिर से पाने लगी हूँ. उन दिनों मुझे भविष्य से कोई उम्मीद तक नहीं थी और भगवन ने उसे भेज कर जैसे मेरे सारे प्रश्नो का हल दे दिया है.
वो तो बस बिना किसी उम्मीद और वादे के मेरे साथ चल भर रहा है. मुझे क्या और कुछ भी चाहिए?