(जैसा गीता नेगी को बताया गया)
शादी के बाद हमारी पहली रात काफी अजीब थी। वह ऐसी नहीं थी जैसी फिल्मों में दिखाते हैं या जो हम रोमांटिक उपन्यासों में पढ़ते हैं। वह काफी प्रक्रियात्मक थी- जितनी जल्दी उसने शुरू किया उतनी ही जल्दी उसने खत्म कर दिया। जबकि मैं फूलों से सजे बिस्तर पर लेटी सोच रही थी, ‘‘क्या वास्तविक जीवन में यह ऐसा ही होता है? बगैर किसी तामझाम या तरीफ के या यहां तक कि बगैर किसी बातचीत के?’’
बाद में मुझे पता चला कि वास्तवकि ‘कार्य’ में संलग्न होने से पहले विवाहित जोड़े वास्तव में प्यार करते थे, जिसका अर्थ है कि छोटी-छोटी प्यारी बातें और बहुत सारा अपनत्व, शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से।
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और तब मेरी स्थिति मेरे सामने स्पष्ट हुई।
मुझे उनमें से कोई भी चीज़ नहीं मिलने वाली हैं जिनके बारे में मेरी सहेलियों ने मुझे बताया था जब वे अपने यौन समागम के बारे में बताते हुए शर्म से लाल हो रही थीं।
बेशक, पिछले कुछ वर्षों में मैं अपने पति के व्यवसाय जैसे रूख की आदी हो गई हूँ। लेकिन मेरी आत्मा को जो चीज़ खाए जा रही थी वह यह थी कि शयनकक्ष की चारदिवारी के बाहर भी, हम भावनात्मक रूप से यदा-कदा ही जुड़ते थे। वह कभी यह पूछने की ज़हमत नहीं उठाता था कि मैं कैसा महसूस करती हूँ, मैं क्या सोचती हूँ और मैं जीवन से क्या चाहती हूँ? मेरी भावनात्मक आवश्यकताओं के प्रति इस पूरी उपेक्षा ने मुझे उसके स्पर्श के प्रति शुष्क बना दिया और उसके भारी शरीर के नीचे मैं बेजान हो जाती थी।
शारीरिक अंतरंगता के लिए उसकी निरंतर मांग और उसके व्यवहार से उत्पन्न मेरी समस्याएं, जिसमें अब दुर्व्यवहार और मेरे जीवन पर नियंत्रण भी शामिल था, उसने हमारे विवाहित जीवन को प्रभावित किया, बिस्तर में भी और उसके बाहर भी। मैं खुशी-खुशी स्वयं को ऐसे पुरूष को नहीं सौंप सकती थी जो मेरा अपमान करता था और जिसे मेरे निर्णयों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था।
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जब बिस्तर पर हमारा जीवन दुखमय हो गया, तो वह हमारे जीवन के दूसरे पहलुओं पर भी प्रतिबिंबित होने लगा। निरंतर झगड़े, मौखिक और शारीरिक दोनों, हमारे पारिवारिक जीवन का एक स्थायी भाग बन गए। अगर कुछ हफ्तों के लिए शांति होती थी तब भी, अनसुलझे मुद्दों का गुप्त प्रभाव अपने बदसूरत रूप में जल्द ही उभरने लगता था। मुझे लगता है कि उसका व्यवहार काफी हद तक उसकी यौन अतृप्तियों और एक यौन साथी के रूप में मुझसे उसकी अपेक्षाओं से संबंधित था, जबकि प्रतिक्रिया देने में मेरी असमर्थता, भावनात्मक शून्य का प्रत्यक्ष परिणाम था जो पूरी तरह मुझ पर हावी था। तो एक तरह से हम एक ऐसी स्थिति में थे, मानो सांप अपनी ही पूंछ को पकड़ने में लगा हो और एक दूसरे पर दोष मढ़ना कभी बंद नहीं हुआ और हर बार जब हम बात करने की कोशिश करते, लौट कर फिर वहीं पहुंच जाते।
वह, उसे संतुष्ट करने में मेरी असमर्थता को अपने गुस्से का कारण मानता था जबकि मैं प्रतिक्रिया देने में अपनी असमर्थता को उसके शुष्क व्यवहार की उपज मानती थी। और समस्याएं केवल बढ़ती ही गई।
उन दिनों के दौरान, मैंने एक सहेली से बात की जो ऐसी ही स्थिति का सामना कर रही थी। शारीरिक अंतरंगता के लिए उसके पति की अतृप्त भूख थी जिससे मेरी बेचारी सहेली तालमेल नहीं बिठा पाती थी। यौन असंगति के कारण उसका पति गुमराह हो गया। सबसे बुरी बात तो यह थी कि मेरी सहेली यह जानती थी फिर भी उसने चुप रहने का निर्णय लिया।
जब मैंने उससे पूछा कि वह विवाहेतर संबंध से अप्रभावित कैसे रह सकती है, तो उसने उदासीनता के साथ जवाब दिया कि अगर उसका पति रात को उसके पास लौट आता है, तो वह कुछ घंटे कहां बिताता है इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन क्या मैं इस तरह के समझौते के लिए तैयार थी? शायद नहीं। मैं हमेशा से ऐसी रही हूँ कि या तो मुझे कोई चीज़ पूरी तरह चाहिए, या फिर चाहिए ही नहीं।
और अब शादी के आठ साल और अनेक गर्भपात तथा दो बच्चों के साथ, हम फिर से पहले जैसे ही हो गए हैं। सिवाय इसके कि जब शारीरिक वार असहनीय होने लगे और जख्म छुपाना मुश्किल हो गया, तब मैंने उसका घर छोड़ने का फैसला किया। मैंने उसके विरूद्ध एक निरोधक आदेश प्राप्त किया जो यह सुनिश्चित करता था कि मैं सुरक्षित रूप से उससे दूर रह सकूँ।
बेशक, कभी कभार मैं पुनर्मिलन के बारे में सोचती हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि बच्चों को पिता की ज़रूरत है लेकिन जब मैं एक पति और पत्नी के रूप में हमारे जीवन के बारे में सोचती हूँ और किस तरह हमारा अराजक संबंध उनके नन्हें दिमागों को नुकसान पहुंचा सकता है, तो मैं पीछे हट जाती हूँ।
दो झगड़ने वाले अभिभावकों की बजाए एक शांत एकल अभिभावक के साथ रहना मेरे बच्चों के लिए अच्छा रहेगा।
मैं एक चिकित्सा पेशेवर हूँ और ऑस्ट्रेलिया में अपने दो बच्चों के साथ अकेली और खुश रहती हूँ।
शादी के तीन साल बाद पति ने मुझे अचानक अपनी ज़िन्दगी से ब्लॉक कर दिया