(जैसा जोयीता तालुकदार को बताया गया)
गुवाहाटी की खूबसूरती बेमिसाल है, ऐसी की आपको जगह और लोगों से बस प्यार हो ही जायेगा. तभी तो गुवाहाटी को प्यार करने वालो के लिए उपयुक्त माना जाता है और शायद इसलिए असम के अलग अलग शहरों से आये युवा छात्र छात्राएं पढ़ने आते हैं और एक दुसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं. कई दिल भी टूटते हैं मगर फिर कई सच्चे प्रेमी मिल भी जाते हैं. मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. असम के एक से गांव से था और बहुत ही शांत और शर्मीला था. मगर कॉलेज में दाखिला लेते ही जैसे मेरी पूरी ज़िन्दगी ही बदल गई. मैंने फिजियोथेरेपी की पढ़ाई शुरू की. ज़िन्दगी मज़ेदार लगने लगी और दोस्तों का साथ मेरे कॉलेज के दिनों का सबसे ज़रूरी हिस्सा हो गया.
मैं अपने कॉलेज के सबसे चर्चित नामों में से एक हो गया, और अपने दुसरे साल में ही मैं कैसानोवा बन गया था. अपनी इस नयी छवि को बहुत पसंद कर रहा था और अपनी ही धुन में मग्न था. मगर फिर कॉलेज के तीसरे साल मैं उससे मिला और जैसे सब कुछ बदल गया.
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वो उनका फ्रेशर्स मीट था और हम उस इवेंट के आर्गेनाइजर थे. उसका नाम नमिता था और वो नेपाली थी. अपनी नीली साड़ी में वो पहाड़ों पर गिरती पहली बर्फ का सा एहसास दे रही थी.
पूरा दिन मैं बस उसे ही निहारता रहा और मन ही मन मैंने ये ठान लिया की नमिता के साथ एक टाइमपास अफेयर तो कर के ही रहूंगा. ये और बात थी की शुरू से ही वो मुझे बिलकुल नज़रअंदाज़ कर रही थी.
हमारा प्यार धीरे धीरे बढ़ा
जैसे जैसे वक़्त गुज़रता गया, मेरा नमिता के प्रति आकर्षण बहुत गहरा होता जा रहा था. मैं हर उस बात का ध्यान रखता जो उससे ताल्लुक रखती थी. वैसे तो नमिता मेरी तरफ रुखा व्यवहार ही रखती थी, मगर मुझे पता था की धीरे धीरे वो भी मेरी तरफ आकर्षित हो रही थी. तभी तो जब भी उसे किसी चीज़ की जरूरत होती या कोई मदद चाहिए होती, वो हमेशा या तो मेरे पास आती या मुझे बुला लेती. हम लगभग रोज़ ही एक दुसरे को मैसेज भेजा करते थे. सप्ताहांत में हम साथ फिल्में देखने जाते या फैंसी बाजार में चक्कर लगते या बस ब्रह्मपुत्र के आस पास के पार्कों में यूँ ही टहलने निकल जाते. इन पलों में नमिता सबसे ज़्यादा बोलती थी और मैं चुपचाप उसकी बातें सुनता रहता था. तो इस तरह हम अच्छे दोस्त बन गए और यूँ तो ऐसा कुछ कहा नहीं, मगर हम डेट करने लगे.
इन सब के बावजूद नमिता ने इस रिश्ते के लिए हामी नहीं भरी थी क्योंकि उसका कहना था की उसके परिवारवाले इस रिश्ते के लिए कभी राज़ी नहीं होंगे. वो एक रूढ़िवादी नेपाली परिवार से थी और मैं असामी था. उसका परिवार बहुत मुश्किलों से उसे पढ़ा रहा था और वो किसी भी कीमत पर उनके विश्वास को तोडना नहीं चाहती थी. जैसे जैसे समय बढ़ता गया, मुझे समझ आया की मैं उसके बिना अब रह नहीं पाऊँगा. ये एक दुसरे पर हमारी निर्भरता और अनोफ्फिसिअल डेटिंग को दो साल हो गए थे. अब मेरा कोर्स भी ख़त्म हो रहा था और मुझे अपना गांव जाकर अपना क्लिनिक सेट करना था.
नमिता अपनी पढ़ाई के लिए गुवाहाटी में ही रुक गई. मगर मेरे लिए ये जुदाई बहुत तकलीफदेह हो रही थी. लगभग हर रविवार को मैं नमिता से मिलने गुवाहाटी आ जाता था और उसके साथ जितना हो सके, समय बिताता था. ये सिलसिला तीन सालों तक चलता रहा.
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पारिवारिक अड़चने
हर वैलेंटाइन डे पर मैं उसे हर तरह से यकीन दिलाने की कोशिश करता था की हम दोनों एक दुसरे से प्यार करते हैं मगर नमिता इस सोच तक के बिलकुल विरुद्ध थी. हमारी दोस्ती को अब पांच साल हो गए थे और एक बार फिर मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटा कर नमिता के सामने अपने प्यार का इज़हार किया. पूरी उम्मीद थी की एक बार फिर से मुझे ठुकराया ही जायगे. मगर इस बार शायद मेरी किस्मत अच्छी थी. नमिता ने मेरे प्यार को स्वीकार किया और शादी के प्रस्ताव को भी. मगर उसकी एक शर्त थी. वो मुझे शादी तभी करेगी, अगर मैं इसके लिए उसके परिवार को राज़ी कर लूँगा.
मुझे आज भी याद है की किस तरह मेरा परिवार खुशियां मना रहा था की आखिर मुझे अपनी पसंदीदा जीवनसंगिनी मिल ही गई. मगर जब उन्हें पता चला की नमिता के परिवार ने हमारे रिश्ते को अस्वीकार कर दिया है, तो सभी सकते में आ गए. मैं उसके परिवार वालों को हमारी शादी के लिए मना नहीं पाया था. यूँ ही आठ साल निकल गए और उसका परिवार लगातार हमारे रिश्ते को ठुकराता रहा. अब मैं और नमिता दोनों ही हमारे साथ होने की उम्मीद खोने लगे थे. हम अपने रिश्ते को न तो ख़त्म करना चाहते थे और न ही अपने परिवार के खिलाफ जा कर कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे.
मगर इन सब बातों के अलावा गुवाहाटी का फैंसी बाजार पार्क में हम घंटों बातें करते और अपने अनिश्चित भविष्य के बारे में सोचते. नमिता को पानी बहुत पसंद है और पानी के आस पास वो सब कुछ भूल जाती थी. वो तेज़पुर में नौकरी करती थी और सप्ताहांत मुझसे मिलने गुवाहाटी आती थी. बस वो कुछ घंटों का साथ और उसकी यादें ही हमारे लिए हफ्ते भर को बिताने का एकमात्र रास्ता था.
आखिरकार चीज़ें बदलने लगीं
वो कहते हैं न की जब आप किसी चीज़ की चाहत पूरी शिद्दत से करो तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है. जानता हूँ की ये किसी यश राज फिल्म का डायलाग लग रहा है मगर हमारी ज़िन्दगी में ऐसा ही कुछ करिश्मा हुआ. मैंने एक आखिरी बार उसके परिवार को मनाने की कोशिश की. इस बार मैंने नमिता के बड़े जीजाजी से मिलने का फैसला किया क्योंकि वो मुझे एक नेकदिल इंसान लगते थे. जब उन्होंने हमारे आठ सालों के इंतज़ार की कहानी सुनी, तो उन्होंने कहा की चाहे कुछ भी हो जाए वो हमारे साथ हैं.
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और अचानक ही सब कुछ बदलने लगा. जो परिवार मुझे फुटी आँखों देखना बर्दाश्त नहीं करता था, अब वो मुझे प्यार करने लगे थे. जल्दी ही नमिता के परिवार वाले मेरे घर हमारी हमारी शादी का रिश्ता ले कर आये. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की आखिर ये सब सच मुच् हो रहा था और सब हमें एक सपने जैसा लगने लगा.
२९ अप्रैल २०१७ को हम शादी के बंधन में बांध गए. अपनी शादी में मुझे बार बार फिल्म ट्व स्टेट्स याद रही थी. हमारी शादी को अभी कुछ महीने हो चुके हैं और हम दोनों हीजीवनसाथी की रिश्ते के खट्टे मीठे पल समझने की कोशिश कर रहे हैं. आज भी जब हम दोनों दुनिया की नज़रों से बच कर कहीं दूर निकलना चाहते हैं, हम गुवाहाटी चले जाते हैं और ब्रह्मपुत्र के किनारे बैठ जाते हैं. आखिर उसने हमारी कहानी शुरू से अब तक बहुत गौर से जो सुनी है.
मैं एक युवा परिपक्व स्त्री हूँ जो बच्चों जैसे दिल वाले वृद्ध पुरूष से प्यार करती है
हमने दस साल, तीन शहर और एक टूटे रिश्ते के बाद एक दुसरे को पाया
Nice story