जब बात अलग होने की हुई तो मैंने घर छोड़ने का फैसला लिया
जब हमने ये फैसला किया की हम अलग हो जायेंगे तो मैंने तय किया की घर वो नहीं, मैं छोडूंगी. मैं उस घर में नहीं रहना चाहती थी जिसमे उसके साथ मैंने दस साल बिताये थे और जहाँ का हर कोना, हर किताब और हर तस्वीर के साथ एक याद जुडी है. उस घर से करीब पांच मिनट की दूरी पर उसके माता पिता भी रहते थे. मैं उस घर से अलग होने के बाद नहीं रह सकती थी. लोगों ने मेरे इस फैसले पर कई प्रश्न लगाए और मुझे चेतावनी दी की अगर एक बार मैंने घर के बाहर कदम रख लिया तो वापस आना नामुमकिन होगा. मुझे बताया गया की बाहरी दुनिया में अकेली लड़की को बुरी नज़रों से देखा जाता है और ये भी समझाया गया की घर मुझे नहीं उसे छोड़ना चाहिए. जब मैं नहीं मानी तो फिर ये सलाह दी गई की घर बदलने का सारा बीड़ा और खर्च उसे ही उठाना चाहिए, वगैरह वगैरह.
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अलग होने के पहले ही मैंने और मेरे एक्स ने हमारे खर्चे अलग कर लिए थे और महीने के अंत में मेरे पास कुछ भी नहीं था क्योंकि मैं यूँ ही फ़िज़ूलख़र्ची काफी करती हूँ. पहले मुझे इस फ़िज़ूलख़र्ची से कोई मुश्किल नहीं खड़ी होती थी क्योंकि जब भी पैसे कम पड़ जाते, एक्स तो था ही कमी पूरी करने के लिए. इन सारी बातों के बीच में मेरे अंकल ने मुझे आर्थिक हालत के विषय में खुल कर कुछ भी कहा. उन्होंने कहा की यूँ तो परिवार हर मुश्किल में मेरे साथ ही खड़ा रहेगा मगर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी मुझे खुद ही चलानी होगी.

उन्होंने कहा की यूँ तो परिवार हर मुश्किल में मेरे साथ ही खड़ा रहेगा मगर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी मुझे खुद ही चलानी होगी.
तलाक के बाद मैं घर कैसे चलाऊंगी?
वैसे तो मैं दस से भी ज़्यादा वर्षों से नौकरी कर थी और मेरे पास जमा पूंजी भी इखट्टी हो गई थी, मगर मुझे भी घबराहट थी की मैं अकेले पूँजी सम्बन्धी फैसले कैसे लूंगी. मैंने अपने अंकल की बात गाँठ बाँध ली और एक नयी नयी एम्बीऐ की छात्रा की तरह एक्सेल शीट पर एक बजट बनाने लगी. किराया, ब्रोकरेज, जमा रखा, शिफ्ट करने का खर्चा, फ्रिज, गैस, गृहस्ती का सामान, बर्तन, कानूनी खर्चे, कामवाली बाई, किश्तेँ– मैंने एक एक चीज़ का हिसाब उस बजट में लिखा. बार बार वो लिस्ट मिटाई और दोबारा बनाई. उस लिस्ट को बनाते हुए मुझे एक चीज़ तो साफ़ समझ आ रही थी की मुझे अपने बेकार के फ़िज़ूलख़र्च तो रोकने ही होंगे. बात बेबात शॉपींग कर लेना, बाहर खाना खाना, महंगी कॉफ़ी पीने.. इन सब पर मुझे रोक लगानी थी. यूँ तो परिवार और मित्रों ने बार बार आर्थिक तौर पर मदद करने का प्रस्ताव भी रखा, मगर इस बार ठान लिया था की जो करूंगी अपने बलबूते पर ही करूंगी.
मुझे बस इस बात का ही डर था की कहीं घबरा कर मैं अपनी माँ से न पैसे मदद मांग बैठूं.
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नए घर की खोज में मैंने बहुत मशक्कत की
मुझे सबसे ज़्यादा जो नियमित खर्चे का विषय लगा वो था घर का किराया. तो मैंने अपने ऑफिस के आस पास के रिहायशी इलाकों के मकानों के दाम पता करने शुरू किये और फिर उन सबका आंकलन किया. मुझे किराया, उस जगह की सुरक्षा व्यवस्था, आदि जैसी कई चीज़ें देखनी थी. सबसे पहले तो मुझे ये तय करना था की मैं फ्लैट अकेले लेने चाहती हूँ या फिर मैं किसी के साथ साझे में रहूँ या फिर PGमें. बहुत सोचा और फिर समझ आया की ३४ साल की उम्र में जब मैं दस सालों तक अपना एक घर चला रही थी तो अब मुझसे किसी से दूध के आखिरी पैकेट और गन्दी प्लेट या बिल को लेकर झगडे नहीं किये जायेंगे. तो मैंने अंततः यही फैसला लिया की अकेले मैं अपने लिए ही एक फ्लैट ढूंढूंगी.
अब दूसरा बड़ा सवाल था की फ्लैट पहले से फर्निश्ड हो या नहीं. मैंने तय किया की मैं अपना कुछ फर्नीचर साथ ले जाऊँगी, इससे किराया भी कम होगा और मुझे अपनी चीज़ें आस पास देखकर थोड़ी सहजता ही होगी.
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पसंदीदा मकान मिलते ही मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया
एक बार जब मैंने तय कर लिया की किस इलाके में मैं घर चुनूँगी, तो फिर बाकी की चीज़ें जैसे किराया, डिपाजिट आदि भी समझ आने लगे. मैंने अपनी पूँजी का कुछ हिस्सा निकाल लिया ताकि ज़रुरत होने पर मेरे पास पर्याप्त धनराशि हो. हफ़्तों की थका देने वाली दौड़ धुप के बाद अंततः मुझे मेरी पसंद का घर मिल गया. वहां वो सब कुछ था जिसकी मुझे तलाश थी– अच्छी लोकैलिटी,सुरक्षा, सोसाइटी के अंदर ही किराने, बहुत सारी धुप और बालकनी, और सबसे ज़रूरी बात तो ये थी की वो मकान मेरे बजट के मुताबिक बिलकुल सही था.

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मैं आपको बता भी नहीं सकती की अपने लिए उस घर को ढूंढ़ने में की गई वो मेह्नत और लगन ने मेरे अंदर के आत्मविश्वास को कितना बढ़ावा दे दिया था. इसे तो कहते है न आर्थिक आज़ादी. अब ये मेरा फैसला था की मुझे अपने लिए और अपने जीवन के साथ क्या करना था. मुझे यकीन है की मुझे सलाह देने वाले मेरा भला ही सोच रहे थे जब उन्होंने मुझे सुझाव दिया की मैं अपने लिए एक बहुत ही सिमित बजट में एक कमरे का छोटा सा घर ढूंढ लून मगर मेरे लिए वो नागवार था.
मैं अपनी फ़िज़ूलख़र्चीकम करने को तैयार थी मगर अपनी जीवन शैली को कमतर करने को मैं राज़ी नहीं थी.
अब समय अपना अतीत नहीं बल्कि भविष्य देखने का है
गत एक वर्ष से मैं अपना नया घर सेट करने में लगी हूँ. मैंने अपनी खिड़कियों के लिए चिक लगवाए। ये मेरी तमन्ना कई सालों से थी मगर एक्स हमेशा ही इसका विरोध करता था. मैंने रंगीन ज़मीनी तकिये लगाए, गहरे हरे परदे, चमकती क्राकरी, एक नीले रंग की लकड़ी की टेबल और न जाने क्या क्या. लोगों को शायद लगता होगा की मैं कितनी कठोरदिल हूँ मगर वो ये नहीं जानते की रोने और टूटे दिल को जोड़ने का काम मैंने पहले ही कर लिया है. अब मुझे अपनी आगे की ज़िन्दगी के बारे में सोचना है. अगर मेरे पास आर्थिक स्वतंत्र और जमापूंजी नहीं होती तो शायद मैं अपनी शादी को तोड़ने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाती और न ही कभी खुद अपनी ज़िन्दगी दोबारा से शुरू कर पाती.
उसने सोशल मीडिया पर अपने एक्स को स्टॉक किया और वजह पूछने पर यह कहा…