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(जैसा जे.सी पंत द्वारा हिमानी पांडे को बताया गया)
“जब तुम मुझे देखने आए थे तो थोड़ी देर मिलने पर ही मुझे एक कनेक्शन महसूस हो गया था,’’ उसने पहली बार मिलने के काफी सालों बाद यह खुलासा किया।
शादी के बाद जब मैं नौकरी के लिए यात्रा पर जाता रहता था, वह देहरादून में ही रूका करती थी, मेरे माता-पिता को अद्वितीय प्यार और देखभाल देते हुए। हम पत्र और फोन कॉल्स के माध्यम से संपर्क में रहते थे, और साल में सिर्फ तीन बार मिलते थे। वह मेरे माता-पिता की मृत्यु के बाद ही मेरे पास आई। उस समय तक मैं, बुलंदशहर में डीपीएस के संस्थापक प्रिंसिपल के रूप में एक शिक्षाविद के रूप में अपनी यात्रा शुरू कर ही रहा था।
एक अराजक सेटिंग
बुलंदशहर तब एक दूरस्थ गांव था। एक शिक्षित माइंडसेट गायब था। लोग हथियार रखा करते थे और अपराध अनियंत्रित था। मैं जानता था कि मेरा नया काम आसान नहीं होने वाला था और क्षेत्र के रूढ़िवादी सामाजिक परिदृश्य से विरोध का सामना करने वाला था। मुझे वह सवाल याद आया जो मैंने 33 साल पहले अपनी होने वाली पत्नी से पूछा था, ‘‘क्या तुम मुश्किल पलों में फैसला लेने में मेरी मदद करोगी?’’ जिसपर उसने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया था, ‘‘मैं तुम्हारे स्टडी रूम के दरवाज़े का दस्ता पकड़ कर रखूंगी और किसी को भी तुम्हारे काम में बाधा डालने नहीं दूंगी। तुम्हारा परिवार, स्कूल, बच्चे, रोटी और कॉफी मेरी ज़िम्मेदारी होगी।” मैं इतना भाग्यशाली कैसे हो सकता था? तो अब जब चीज़ें आगे मुश्किल लग रही थीं, मैंने उससे पूछा कि क्या वह चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।
ग्रामीण स्वीकार नहीं कर सके कि एक औरत बदलाव लाने के लिए आई थी। घूंघट से ढंकी महिलाओं को आदत नहीं थी कि एक औरत आए और उन्हें अनुशासन और लड़के और लड़की दोनों के लिए समान शिक्षा अवसरों के लाभ बताए। हम जानते थे कि एक सशक्त महिला प्रधान के नेतृत्व वाली महिला बिग्रेड के साथ राइफल वाले पुरूष एस्कॉर्ट्स उसके खिलाफ लगाएं जाएंगे।
किया जाने वाला काम
मैंने खेतों के बीच खड़ी एक इमारत में प्रिसिपल के रूप में पदाभार संभाला। रोमांच शुरू ही हुआ था। छात्रों ने हमारे घर में प्रवेश परीक्षा दी, नए स्टाफ और उनके परिवारों को हमारे संरक्षण में रहना था, यहां वहां घूमते अनाथ बच्चों को निश्चित रूप से अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था। जीवन में बहुत ज़्यादा यात्रा और बैठके शामिल थीं। जब मैं कर्मचारियों को रोज़ के काम के लिए गाड़ी में ले जाता था ताकि वे सुरक्षित हो सकें, तो वह दुःखी होने की बजाए खुश होती थी। बुलंदशहर की शामों का रंग एक खुबसूरत पीच-गुलाबी होता था और हमने ऐसी कई शामें आज की तारीख में मौजूद संरचना, ऑडिटोरियम, ट्रिम लॉन के इंपोसिंग ब्लॉक का इंतज़ार करते हुए बिताई।
चुनौतियां जारी रहीं। शेयरधारकों ने एक तस्वीर पोस्टकार्ड निर्माण पर ज़ोर दिया, जबकि बिल्डरों ने सुविधा के लिए ब्लूप्रिंट फीचर्स को बदल दिया। स्कूल के लिए भूमि के सौदे की वजह से मुझे मौत की धमकियां मिलीं। कभी-कभी प्रभावशाली स्थानीय लोग या बंदूकधारी नेता मुफ्त या पसंदीदा प्रवेश की मांग करते थे। इस तरह के अवसरों पर मेरी पत्नी दृढ़ता से बंदूकधारकों और प्रधान को वापस भेज देती थी कि अगर उसे या किसी और को गोली मार दी गई तो डीपीएस सोसाइटी उन्हें छोड़ेगी नहीं।
आखिरकार, वे मेरी पत्नी की हिम्मत के आगे झुक गए, उसके तर्क सुने और उन्होंने अपने हथियार और अक्रामक व्यवहार त्याग दिया।
गोलियां भी उन्हें रोक नहीं सकी
एक रात, मेरी एक आधिकारिक यात्रा से लौटते हुए, मुझपर एक शत्रु द्वारा गोली चला दी गई। अंधेरा था और मेरा ड्राइवर स्टेयरिंग व्हील पर था। तीन से चार लोग जो मुझपर गोली चलाने आए थे, वे बाइक पर थे। गोली मेरे कंधे को छूकर निकल गई। वे मुझे जान से मारना चाहते थे लेकिन फिर वहां लोग इकट्ठे होने लगे और गोली चलाने वाले भाग गए। मैं बच तो गया था लेकिन इस बारे में चिंतित था कि मेरी पत्नी कैसी प्रतिक्रिया देगी। लेकिन उसने बिल्कुल वही किया जैसा मैं करता। उसने मुझसे इस्तीफा देने या स्थानांतरण लेने को नहीं कहा। हमेशा की तरह, वह मेरे साथ रही। मैं अपने फैसले पर अडिग रहने में कामयाब रहा क्योंकि वह मेरे साथ थी।
समय के साथ, हमारे अच्छे इरादों को समझा गया और क्षेत्र के लोगों ने हमारा और डीपीएस बिरादरी का तहेदिल से स्वागत किया; और इसलिए रोमांच जारी रहा। मेरी पत्नी मेरी घड़ी थी जो मेरे ऑफिस के कार्यक्रम संभालती थी और कैंपस के रहवासियों का फैमेली बॉन्डिंग समय भी। उसने नए शिक्षकों (ब्लॉक पर नए बच्चों) के लिए कई वर्षों तक घर का भोजन मुहैया करवाया, कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों के लिए कैंसर के इलाज के लिए धन के संयोजन का निरीक्षण किया और गंभीर स्वास्थ्य समस्या वाले कर्मचारियों को उनके गृहनगर के अस्पताल में भर्ती करवाया जब तक कि वे पूरी तरह स्वस्थ ना हो जाएं।
दिल बड़ा होना चाहिए
हमने साथ में सीखा की सीमित संसाधनों के साथ भी बहुत कुछ हासिल करना संभव है, बस दिल बड़ा होना चाहिए।
हमने साथ में एक ब्रीज़ी गज़ल नाइट या फिल्म का आनंद नहीं लिया; लेकिन साथ में अमूल्य यादें ज़रूर बनाई।
कभी-कभी मैं उसे कहता हूँ कि वह मेरी ‘पाइनल ग्रंथि’ है जिसे तीसरी आँख भी कहा जाता है, क्योंकि वह सहज और संतुलित निर्णय लेने में मेरी मदद करती है। बदले में वह मुझे इगल की ताकत वाला एक सूपर लाइफ कोच कहती है।
बीस साल बाद, अब हम रिटायर हो रहे हैं। मुझे पता है कि उसके समर्पित साथ के बिना मैं अपना जीवन नहीं जी सकता था और अपना काम इतनी ईमानदारी के साथ नहीं कर सकता था। सबसे अच्छा भाग यह है कि हमारे दो बच्चों के अलावा हमने कई बच्चों की परवरिश की है। और मैं जानता हूँ कि इस राह में कहीं हमारा प्यार आध्यात्मिक हो गया है।