बात १९९५ की है. पांच साल पहले मैंने उन्नी से बैंगलोर के सिविल कोर्ट में शादी करने के लिए किसी और को ठुकरा दिया था. मैंने उसे नाश्ते की टेबल पर बताया की मेरी सहेली की पांचीस्वी सालगिरह है और उसने कहा, “इतना लम्बा समय.. ज़रूर उसकी फिगर काफी अच्छी होगी.” मैं भी उसके साथ हंसने लगी. फिर उसने पुछा की हम दोनों की शादी को कितने साल हुए हैं, और जब मैंने कहा पांच तो वो कहने लगा, “इतने साल? सच में इतने साल ?”
मैंने उसकी इस बात को नज़रअंदाज़ करना ही बेहतर समझा क्योंकि वो जब भी पैसों या सेहत को लेकर परेशान होता था हमेशा आत्महत्या की बातें करता था. हमारी एक पांच साल की प्यारी बेटी थी जो उसकी जान थी और एक तीन साल का शरारती बेटा। उन्नी एक अच्छा प्रदाता था क्योंकि वो सबसे अच्छी सब्ज़ियां, सबसे बड़ी मछली और सबसे बेहतरीन मीट लाता था. उसे एक आलिशान तौर पर सजी हुई डिनर टेबल बहुत ही पसंद थी और उससे भी ज़्यादा पसंद था दोस्तों की मेहमाननवाज़ी करना. और जब इस तरह के मूड में होता था, किसी को भनक भी नहीं हो सकती थी की वो कभी डिप्रेस भी होता है.
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सब अच्छा ही चल रहा था
उसने एक नयी प्रिंटिंग प्रेस खोली थी और क्योंकि उसके पास इस क्षेत्र में जर्मनी की डिग्री और जानकारी थी, और वो अपने काम में बहुत ही निपुण और सक्षम था, उसका व्यवसाय अच्छी तरक्की करने लगा. मैं उसके शराब पीने या सिगरेट की आदत पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी क्योंकि मैं खुद ६० के दशक के फ्लावर पावर के ज़माने की थी. ये परेशानी की बात नहीं थी, मुझे परेशानी थी उसके सेक्स को लेकर उस लत की. यूँ तो मैं उसकी ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश हमेशा करती थी, मगर मुझे फिर भी लग रहा था की चीज़ें हाथ से बाहर जा रही हैं.
एक दिन मेरे पास उन्नी के बड़े भाई का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे आगाह किया की उन्नी की आदतों पर समय रहते रोक लगाने की ज़रुरत है. उन्होंने मुझे बताया की एक दिन उन्नी को उन्होंने एक डांस बार से पैसे देकर बाहर निकाला था. उन्नी के पास पैसे नहीं थे और वो लड़कियां बिना अपने पैसे लिए उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी. मैं सोच में पड़ गई की आखिर उन्नी उनसे क्या करवा रहा रहा था. हालांकि मैंने उसके भैया को तल्ख़ शब्दों में कह दिया, “अब बिस्तर मैंने लगाया है तो सोना भी मुझे ही उस पर होगा.”
मैंने काफी कुछ अनदेखा किया
दो छोटे बच्चों को सँभालना एक काफी कठिन काम होता है और उस पर से खाना बनाना, घर की साफ़ सफाई, सब कुछ मेरा पूरा समय ले लेता था. दिन में दो बार घर का झाड़ू पोछा करती थी, तीनों समय का खाना बहुत ही दिल लगा कर बनाती थी मगर वो हमेशा नाखुश ही रहता था या फिर उदास या चिड़चिड़ा. ये बात और है की व्यवसाय में वो बहुत मेहनत कर रहा था और काफी अच्छी पूँजी भी इखट्टी कर रहा था. एक दिन जब उसका मन थोड़ा शांत था और वो नशे में नहीं था, उसने मुझसे पुछा की क्या वो एक ऐसी डील करे जो गैरकानूनी तो है मगर उसमे मुनाफा बहुत है. मैंने उसे साफ़ मना कर दिया और कहा, “बिलकुल नहीं! मैं नहीं चाहती की हमारे बच्चे हमारे पापों की सजा भुगतें.” उसने कुछ सोचा और फिर कहा, “हाँ कर्मा तो सच में होता है.”
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उसके बाद वो एक ट्रिप पर मुंबई चला गया जहाँ उसके अंकल आंटी रहते थे. दस दिन बाद जब वो वापस आया तो उसकी हालत काफी ख़राब दिखी. बिखरे बाल, लम्बी गन्दी दाढ़ी और उसे देखकर मेरे मन में खतरे की घंटी बजने लगी. मगर मैं बस हंसी में सब टाल गई और उसकी वेशभूषा का मज़ाक उड़ाने लगी. मैंने उसे अंग्रेजी में “डेरेलिक्ट” कहा, उसने जब अर्थ पुछा तो मैंने बताया की वो व्यक्ति जिसे समाज ने तिरस्कृत कर दिया हो. अर्थ सुन कर वो चुप हो गया और परेशांन दिखने लगा.
लड़ाइयां बढ़ने लगी
हमारे बेटे के जन्म के बाद मुझे नौकरी छोड़ कर बच्चों की देखभाल करनी पड़ी थी. हम दोनों अक्सर दोस्तों के सामने भी लड़ते थे और एक दिन तो उसने मुझ पर गुस्से में सबके सामने हाथ भी उठा दिया था. मेरे दो दांत टूट गए और क्योंकि उसने मुझे इलाज़ के लिए कोई पैसे नहीं दिए, इन्फेक्शन मेरे जबड़े तक फ़ैल गया था. बच्चों के प्लेस्कूल के लिए भी वो पैसे नहीं देता था क्योंकि उसका कहना था की सरकारी स्कूल की पढ़ाई काफी होगी उनके लिए. मैंने अपने पास रखे सारे सोने के ज़ेवर बेच दिए ताकि बच्चों की स्कूल फीस भर सकूं. मुझे इन सारी बातों के बात भी ये एहसास नहीं हो रहा था की मेरा पति एक मानसिक रोगी हो रहा था। मैं हमेशा उसके रवैये को उसके काम का स्ट्रेस और शराब के नशे को इसका ज़िम्मेदार मानती थी. जब भी हम बातें करते थे, वो बस झगड़ना ही होता था और मैं उससे अक्सर ये पूछती थी की उसने मुझे शादी करने की ज़बरदस्ती क्यों की थी. इस बात से तो वो और भी ज़्यादा तिलमिला जाता था.
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रविवार की एक सुबह वो बहुत ही परेशान दिख रहा था मानो कोई ज़रूरी फैसला लेना चाह रहा हो. तो मैंने उससे ज़िद की की वो मुझसे बातें करे और मुझे अपनी परेशानी बताई. उसने मेरी बात बिलकुल नज़रअंदाज़ कर दी और टीवी की आवाज़ और बढ़ा दी. मैंने जाकर टीवी बंद कर दिया. तब वो दिवान से उठा और मेरे ऊपर झपटा. मुझे नहीं पता की उस दिन उसके आक्रमण से मैंने खुद को कैसे बचाया और मेरे ऊपर उसका एक भी वॉर नहीं हो पाया. वो इस बात से इतना बौखला गया की वो भाग कर किचन की तरफ गया और एक बड़ा सा चाक़ू ले आया. वो चाक़ू मैं नारियल छिलने के लिए इस्तेमाल करती थी. वो मेरी तरफ कदम बढ़ा रहा था और साथ में कह भी रहा था, “आज सब कुछ ख़त्म ही कर दूंगा.” मैं भाग कर गई और खुद को बाथरूम में बंद कर दिया. मैं बाथरूम में खड़ी कांप रही थी और वो बाहर से दरवाज़ा पीट रहा था.
दोस्तों ने मदद करनी चाही
तभी अचानक उसका सबसे गहरा मित्र विनोद हमारे दोनों बच्चों को गोदी में लेकर घर में घुसा. मैं खुश थी की बच्चे इस पूरी घटना के समय पड़ोसी के घर पर खेल रहे थे. उन्नी के अंदर जैसे कुछ ख़त्म हो रहा था. मैंने उससे तलाक माँगा और कहा की वो चाहे तो बच्चों को अपने पास रख सकता है. विनोद ने स्तिथि भांप ली और हम दोनों से कहा की हम एक दिन के लिए उसके घर चलें. हम उसके आलिशान घर पहुंचे. वहां तो चीज़ें और ही बदतर होने लगी. ऐसा लगा जैसे मैं दरबार में खड़ी हूँ. एक तरफ मैं अकेली और दूसरी तरफ उन्नी और उसके दोस्त। मैंने उसके हिंसा के लिए उसे तीन थप्पड़ मारे और मेरा हिसाब बराबर था.
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विनोद की पत्नी ने सबके लिए खाना बनाया और करीब तीन बजे, हम घर वापस आ गए. सारे पुरुष बैठ कर पी रहे थे क्योंकि वो रविवार था और घर आकर भी वही सिलसिला जारी रहा. दिन भर की चिल्लमचिल्ली में मेरा माइग्रेन का दर्द शुरू हो गया था. बच्चों को नींद आ रही थी और मैं उन्हें लेकर कमरे में जा रही थी की की शराब में धुत उन्नी ने मुझे रोका. मैंने उससे कहा की बच्चों को सुला कर मैं आऊँगी. मैं उन्हें सुलाने गई मगर थकान और दर्द के कारण खुद भी मुझे गहरी नींद आ गई.
वो सुबह
अगली सुबह के पांच बजे मेरी सुबह के वाक की संगिनी शांता आ गई थी. मैं जल्दी जल्दी जॉगिंग के कपडे पेहेन कर बाहर निकल रही थी जब उसने मुझे लिविंग रूम के लाइट और पंखे खुले छोड़ने के किये डांट लगाई. टीवी भी चल रहा था. मैने बिस्तर पर देखा मगर उन्नी वहां नहीं था. फिर मैंने उसे आवाज़ लगाई, सोचा शायद बाथरूम में होगा. फिर मैंने गेस्ट रूम का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की मगर वो अंदर से बंद था. मैं बाहर जाकर खिड़की से अंदर झाँकने गई. वो छत पर लगे एक हुक से लटका हुआ था. उस हुक पर हमने एक झूला लगाया था जो इस समय ज़मीन पर पड़ा था.
उसने रात वाले ही कपडे पहने थे और ज़मीन से उसके पाँव करीब एक फ़ीट ऊपर थे.
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मैं वही बैठ गई. मुझमे कुछ भी बोलने की शक्ति नहीं थी.
ये घटना २१ साल पहले हुई थी. मैंने बहुत संघर्ष किये और कुछ अल्लाह के बन्दों की मदद से अपने बच्चों को अकेले ही बड़ा किया.
उसने सोशल मीडिया पर अपने एक्स को स्टॉक किया और वजह पूछने पर यह कहा…