हमारे फ़िल्मी इतिहास में कुछ फिल्में ऐसी बनी हैं जिन्होंने रील और रियल के बीच के फासले को धुंधला कर दिया है. ऐसी ही कुछ फिल्में हैं सिलसिला, मुग़ल-ए-आज़म और कागज़ के फूल.
कागज़ के फूल गुरु दत्त के निर्देशन में बनी आखिरी मगर बेमिसाल फिल्म थी, मगर वो फिल्म अपने समय से काफी आगे थी. गुरुदत्त ने इस एक फिल्म को बनाने में अपना सब कुछ झोंक दिया था. न सिर्फ आर्थिक तौर पर, बल्कि भावनात्मक तौर पर भी गुरु दत्त ने इस फिल्म में अपनी पूरी जान लगा दी थी. दिलचस्प बात ये है की गुरुदत्त की यह फिल्म उनकी असली ज़िन्दगी से काफी करीब थी.
गुरुदत्त अपनी फिल्म CID के लिए एक नए चेहरे की तलाश कर रहे थे जब उन्होंने वहीदा रहमान को हैदराबाद में देखा और बसउसे अपनी फिल्म के लिए साइन कर लिया. धीरे धीरे वहीदा गुरुदत्त की काफी प्रिय हो गयी और उनकी काफी फिल्मों की इंस्पिरेशन भी. प्यासा, कागज़ के फूल और साहिब बीवी और गुलाम जैसी असाधारण और चर्चित फिल्मों में गुरुदत्त और वहीदा रहमान ने साथ काम किया.
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एक रील से रियल स्टोरी
फिल्म कागज़ के फूल में गुरुदत्त सुरेश नामकएक निर्माता की भूमिका में नज़र आते हैं. फिल्म में सुरेश को अपनी नयी फिल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश है और फिर उसकी मुलाक़ात दिल्ली में शांति (वहीदा) से होती है. बहुत जल्दी ही शान्ति सुरेश की काफी प्रिय हो जाती है और उसकी फिल्म की हीरोइन भी.
जब गुरुदत्त वहीदा से असली ज़िन्दगी में मिले थे, उनके बच्चे थे. फिल्म में भी यही दर्शाया गया है. बस असल और फिल्म में एक ही अंतर था–जहाँ असल ज़िन्दगी में गुरुदत्त अपनी पत्नी और बहुचर्चित गायिका गीता दत्त के साथ ही थे, फिल्म में उन्हें (अर्थात सुरेश को) अपनी पत्नी से अलग हुए दर्शाया गया था.
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यद्यपि शान्ति को सुरेश के विवाहित होने का पता था, फिर भी वो सुरेश के प्यार में पड़ने से खुद को रोक नहीं पाती. असल ज़िन्दगी में भी वहीदा और गुरुदत्त का प्रेम जग जाहिर था और अगर लोगों की माने तो उन दोनों के रिश्ते की वजह से ही गीता दत्त अपने बच्चों के साथ अलग रहने लगी थी.
कोई नहीं जानता की असली बात क्या थी. क्या सच में वहीदा रहमानगुरुदत्त की टूटती शादी के लिए ज़िम्मेदार थी या नहीं, मगर ये तो सच है की गुरुदत्त ने फिल्म जगत को वहीदा रहमानके साथ कुछ यादगार फिल्में दी, और विश्व के नामचीन निर्माताओं में उनका नाम गिना जाने लगा.
कोई खुशनुमा अंत नहीं
उनकी असल ज़िन्दगी की तरह फिल्म कागज़ के फूल में भी सुरेश और शांति के प्यार को सुखद अंजाम नहीं मिल पाया. शायद भारतीय सिनेमा जगत में कागज़ के फूल सबसे भावनात्मक और गहरी प्रेम कहानी रही होगी, मगर हिंदी फिल्मों जैसा उस फिल्म में कोई रोमांस नहीं दर्शाया गया.
सुरेश और शान्ति के प्यार के बीच में न तो अमीर-गरीब की कोई दिवार थी न कोई जाती-धर्म का कोई एंगल. उनके बीच थी एक शादी, एक बच्चा और उम्र का फासला. उस पूरी फिल्म में दोनों किसी सुन्दर वादी में रूमानी गाने गाते नहीं दिखे, इसके विपरीत उन्हें अकेले में मिलने तक के बहुत ही कम मौके मिले.
उनके बीच काफी गहरी बातें तो होती थी, मगर कई बार एक दुसरे के अनकहे अलफ़ाज़ भी वो समझ जाते थे. ज़्यादा कुछ बोलते नहीं, मगर एक दुसरे की भावनाएं खूब समझते थे. जैसा की सुरेश ने एक दृश्य मेंकहा था, “हम एक दुसरे को हमेशा समझ लेते हैं.”
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उस फिल्म का सबसे अस्मरणीय पल तब है जब सुरेश और शांति एक अँधेरे, वीरान स्टूडियो में एक दुसरे के आमनेसामने खड़े होते है और बैकग्राउंड में “वक़्त ने किया क्या हसीं सितम” चल रहा है. विडम्बना तो देखिये, इस गाने को आवाज़ दी है गुरुदत्त की असली पत्नी गीता दत्त ने.
शराब ने उनके जीवन को ख़त्म किया
सुरेश शान्ति के साथ मिलकर एक बहुत ही चर्चित फिल्म “देवदास” बनाता है.मगर परिस्तिथियों के दबाव में आकर उसे शांति और उनके बच्चे को छोड़ना पड़ता है. उसके लिए यह तन्हाई बहुत असहनीय हो गयी थी, और धीरे धीरे उसके जीवन में शराब के अलावा हर किसी का महत्व ख़त्म होने लगा. अपनी शराब की लत की वजह से वो सब कुछ खोने लगा–अपनी शोहरत से लेकर अपनी सारी पूँजी. और इन सब के बावजूद वो एक चीज़ जो वो नहीं खोता है, वो है शांति का बनाया एक स्वेटर जो उसने सुरेश के लिए बनाया था. वो स्वेटर उसकी आखरी सांस तक उसके साथ ही रहता है.
दूसरी तरफ शांति भी पूरी तरह टूट जाती है सुरेश से अलग हो कर. यूँ तो वो अब भी फिल्मों में काम करती है, मगर उसके अंदर जैसे कुछ भी ज़िंदा नहीं रहता. बस एक ही चीज़ थी जो उसे आस देती थी और वो थी सुरेश के लिए बनाये अधबुने स्वेटर को पूरा करने की ललक.
इस बार वक़्त की चकरी कुछ उलटी घूमी और ठीक गुरु दत्त की फिल्म की तरह उस महान फिल्मनिर्माता की असल ज़िन्दगी भी हो गई. कागज़ के फूल बॉक्स ऑफिस पर पूरी तरह फ्लॉप हो गयी और गुरु दत्त ने अपने आपको फिल्म के सुरेश की तरह ही शराब में झोंक लिया, एक अव्यवस्थिक जीवन जीने लगे और अपनी ज़िन्दगी वक़्त से कहीं पहले ख़त्म कर ली.
हम सच कभी नहीं जान पाएंगे
वहीदा रहमान ने अपनी एक्टिंग जारी रखी और इस घटना के बाद भी ख़ामोशी और गाइड जैसी कई खूबसूरत फिल्मों में मुख्य किरदार निभाया. वहीदा ने बहुत बाद, वर्ष १९७४ में एक कम जानेमाने अभिनेता कमलजीत से शादी कर ली.
उनके पति का निधन सन २००० में हो गया. वो अभी भी कभी कभार फिल्मों में नज़र आती हैं. अब वो मुंबई में ही रहती है. वहीदा ने कभी खुल कर अपने और गुरुदत्त के रिश्ते के बारे में बातें नहीं की हैं, मगर पूछे जाने पर वो हमेशा गुरुदत्त को अपना गुरु और मेंटर ही बताती हैं.
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