(पहचान छुपाने के लिए पात्रों के नाम बदले गए हैं)
“कुछ प्रलोभन आकस्मिक ही आपके पास आ जाते हैं और इस अनामंत्रित भाव को समझना और इन से निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है,” मैंने कहा.
मैंने मुस्कुराते हुए अपनी पत्नी और मेरे परिवार की तरफ देखा. शादी के संगीत की आवाज़ें अब माहौल में गूँज रही थी और साथ ही शराब के जाम भी अब नज़र आने लगे थे.
नैना को पता था कि मेरी बात का आशय उसकी तरफ ही है, मगर उसने बखूबी अनजान बनकर दिखाया. नैना लगभग ५० वर्षीया थी और मैं २४. वह मेरी पत्नी की मौसी थी और मैंने जो अभी बोला था, वो उसके और मेरे लिए खतरनाक हो सकता था. मुझे नहीं पता था कि मैं इसके तैयार हूँ भी की नहीं, मगर मैंने पहला तीर मार दिया था.
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अब बस इंतज़ार था जवाब का.
यह सब शुरू हुआ था व्हाट्सप्प के मासूम मामूली हाय हेलो के मैसेज से. धीरे धीरे यह मैसेजेस बढ़कर मुस्कुराती फोटो में बदले और फिर पता नहीं कब सेक्स मैसेजेस में बदल गए. मेरे लिए सबकुछ बहुत रोमांचक था. अब भी बहुत रोमांचक है. मगर उसके लिए? क्या वो भी सच में उन इच्छाओं को हकीकत में बदलना चाहती थी? मुझे नहीं पता था की क्या वो भी परिवार की बनायीं सीमाओं को अपने निजी सुख के लिए लांघने को तैयार थी?
जहाँ तक मेरी बात है, मेरी तो नज़रें तक उससे नहीं हट रही थी. वो किसी कामदेवी सी मेरे समीप बैठी थी और मैं उसे देख देख बस ये महसूस कर रहा था कि उसकी कोमल त्वचा का स्पर्श, उसके भरे होटों का चुम्बन कितना मद भरा होगा. मैं मन ही मन चाह रहा था कि वो मुझे प्यार के वो सुनहरे पल देदे, वो राज़ बतादे जो मेरी कम उम्र पत्नी न जानती है, न बता सकती है.
पता नहीं, मेरी किस उत्तेजक कल्पना ने मुझ में शक्ति भर दी. मैंने उसकी कलाई पकड़ी और धीरे से पुछा, “एक सेल्फीलें?” वो मुस्कुराई, मगर उस मुस्कराहट में मैंने बहुत सारी कामनाओं के लिए हामी देखी.
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“थोड़ा इंतज़ार करो,” उसने फुसफुसा कर मेरे कानों में कहा और मुझे उस कमरे में अकेले छोड़कर चली गई. उसने कुछ कहा नहीं मगर वो इंतज़ार मुझे और उत्तेजित कर रहा था. मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था और उस समय मैंने यह निश्चय किया कि अब मैं अपनी भावनाओं को नहीं रोकूंगा. उन्हें रोक कर मैं अपने अंदर के तूफ़ान को और बढ़ा रहा था इसलिए अब मैं वो ही करूंगा, जो मेरा दिल चाहेगा.
मैं अभी यह सब सोच ही रहा था की अचानक मेरा फ़ोन बजा.
नैना का मैसेज था, “२० मिनट में मेरे कमरे में आओ.”
उस मैसेज को पढ़ने के बाद मैं तो जैसे आपे से बाहर ही हो गया. अनजान लोगों को देखकर मुस्कुरा ने लगा, दूल्हा दुल्हन से ऐसे मिला मानो उनका नहीं, मेरा ही सब से महत्वपूर्ण दिन हो वो पागल सा हो गया था मैं उन बीस मिनटों में. वो बीस मिनट बीस घंटों से कम नहीं लग रहे थे. खैर, बड़ी मुश्किल से बहाने बनाता, सब से बचता बचाता, मैं बैंक्वेटहॉल से बाहर निकल पाया.
दिल, दिमाग कुछ भी मेरे वश में नहीं था. उसके रूम के बाहर मैं दो मिनट रूका, खुद को समेटा या कम से कम समेटने की कोशिश की. मेरे मन में पशोपश यह नहीं थी कि जो मैं करने जा रहा हूँ, वो सही है या गलत. मेरी चिंता यह थी कि मैं जो करने जा रहा हूँ, वह सही से तो करूंगा. फिर लगा की ज़्यादा सोचने से बेहतर है कि अंदर जाता हूँ, और खुदबखुद ही पता चल जायेगा की मैं कितने पानी में हूँ.
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बिना घंटी बजाये मैं उसके कमरे में घुस गया. आखिर एक दुसरे को इतने गुदगुदाते चित्र और वौइस्मैसेज भेज चुके थे कि इतनी हिम्मत तो आ ही गई थी. अंदर प्रवेश करते ही सामने उसे देखा. नैना ने बहुत सेक्सी काली ड्रेस पहनी थी, हाथ में वाइन का गिलास था और आँखों में आमंत्रण. वो सामने ही खड़ी थी और मैंने जल्दी से दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया. यह हमसे स्वतः ही हो जाता है– किसी और की पत्नी के साथ समय बिताने जाओ तो दरवाज़ा बंद करना अमूमन याद ही रहता है. खैर मैं उसके करीब पंहुचा.
मुझे पास देख, उसने अपना वाइन का गिलास किनारे में रखा और मुझे अपनी तरफ खींच लिया. उसके हाथ मेरी शर्ट ज़रूर खींच रहे थे मगर असल में तो उसके वो होंठ थे जो मेरे होठों को खींच रहे थे. दोनों मिले, और हमें जन्नत मिली. हमारी जिव्हा एक दुसरे को महसूस कर रही थी, और हाथ बड़ी हड़बड़ाहट में एक दुसरे को नग्न करने में मशगूल थे. मिनटों में हमारे शरीर एक दुसरे से लिपटे थे और हमारे कपडे फर्श पर एक दुसरे से लिपटे थे. सब कुछ स्वप्न सा था, और स्वप्न में कुछ सही और गलत नहीं होता.
उस दिन पहलीबार मैंने जाना की अपनी प्रेयसी को कैसे मैं प्रेम के चरम पर पंहुचा सकता हूँ. और उस दिन उसने फिर अपने आप को फिरसे कमसिन यौवन से सरोबार महसूस किया. मैंने उसका दिल अपनी जिह्वा से भिगाया और उसने सीखा अपने घिचपिच विचारों से निकल थोड़ा साजीना. हम दोनों ने उन पलों में इतना आनंद लिया की हम ने तय कर कि अब हम वास्तविकता को कुछ देर भूल अपने इस वर्त्तमान के पल ही जियेंगे.
अगले कुछ दिन जब तक शादी चल रही थी, हम दोनों अपने लिए कैसे भी करके कुछ समय निकाल ही लेते थे. मगर इन पलोंका अंत होना ही था. तो एक दिन बारातियों के साथ साथ हमारे मदमस्त साथ का भी पैकअप हो गया. एक दुसरे को अलविदा करना बिलकुल भी आसान नहीं था मगर यह बाई तो लाज़मी था. तो हमने बहुत ही भरे मन से एक दुसरे को अलविदा कहा, मगर बस दोबारा मिलने तक. आखिर हमने वो राह एक बार लेली थी तो अब वापसी का कोई इरादा नहीं था.
इस बात को एक साल हो गया है. हम अब भी परस्पर बातें करते हैं. एक दुसरे के लिए हमारी चाहतें अब भी उतनी ही प्रज्वलन्त हैं. हमारे बीच की दूरियां बहुत अधिक हैं इसलिए हम मिल नहीं पाते. मगर हम दोनों के लिए हमारा वो तज़ुर्बा बहुत ही ख़ास है क्योंकि ये पहलीबार है जब हम दोनों ने ही समाज और परिवार की बनाई हुई सीमाएं और मर्यादाएं लांघी हैं. मगर क्या यह आखिरी बार हमने ऐसा किया है? शायद नहीं. आखिर जब जीते बस एक ही बार हैं तो क्यों नहीं वो सब करें जो करना चाहते हैं.
(जैसे नेहा डी को बताया गया)
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जब मेरी पत्नी ने मुझे धोखा दिया, मैंने ज़्यादा प्यार जताने का फैसला किया