२३ साल तक हम दोनों ने एक दूसरे से कोई बात नहीं की. मगर फिर ८ साल पहले सोशल मीडिया के कारण हम दोनों की बातचीत फिर से शुरू हो गई और फिर चार साल बाद मैंने उसे फिर से देखा. वो २७ साल जब हम नहीं मिले, उसके बाद हम तीन बार तीन अलग अलग शहरों में मिले. उसका पति नौकरियां बदलता रहा और साथ में शहर भी और ये संयोग ही था की जिन शहरों में उनका तबादला होता, मैं वही होता था और अचानक ही टकरा जाता. हर बार जब हम मिलते, साथ बैठ कॉफ़ी पीते और एक दुसरे को अपनी अपनी ज़िन्दगी की अपडेट दे देते.
इस बार बात थोड़ी अलग थी. इस बार वो मुझसे अपनी बेटी के साथ मिल रही थी. उसकी बेटी एक प्रसिद्द नृत्र्य के स्कूल में आवासीय प्रोग्राम कर रही थी और उसने अपनी रोज़मर्रा की गृहस्थी से ब्रेक ले कर इस शहर में आई थी.
ये भी पढ़े: उसने दूसरे पुरूष से शादी कर ली लेकिन मैं उससे प्यार करता हूँ
वो अपने इस ब्रेक का भरपूर उपयोग कर रही थी. उसने पहाड़ों के बीच हिंदी साहित्य पर एक वर्कशॉप ज्वाइन की थी, नाट्यशास्त्र पर कई सेशन अटेंड कर रही थी, प्रदेश के गाँव वाले इलाकों में जा कर वहां के पुरातन मंदिरों को समझ रही थी– उसकी बातें सुन कर मुझे याद आने लगा की कई साल पहले मैं क्यों उसकी तरफ यूँ आकर्षित हुआ था.
वो कुछ यूँ मिले
मैं साहित्यिक गतिविधियों में पूरी तरह सम्मलित था और ऐसी जगहों पर पुरुष और स्त्री का रेश्यो १:२० जैसा होता है, तो ऐसे में अगर थोड़ी से भी नारी उपस्तिथि होती, तो हम बहुत खुश हो जाते थे.
मैं उन दिनों में भी बहुत व्यावहारिक और तार्किक इंसान था. मैं हिंदी प्रदेश से था और जल्दी ही सफल बनना चाहता था. मैं अपने कॉलेज में लड़कियों से दूर ही रहता था. वैसे भी ये लड़कियां अक्सर बड़े शहरों की ऊँची हील पहने फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती थी.
ये भी पढ़े: जब मुझे और मेरे बेस्ट फ्रेंड को एक ही लड़के से प्यार हो गया
मगर वो उन सभी से अलग थी. बहुत भारतीय और भारतीय पुरातन साहित्य और रिवाज़ों की अच्छी जानकार भी थी. उसे संगीत, नृत्य और नाटक में काफी दिलचस्पी थी. इसके अलावा वो मनोविज्ञान में डॉक्टरेट कर रही थी जो असल में संयोग ही लगता था.
हम दोनों की मुलाकात एक नाटक केरिहर्सल के लिए मिलते थे. ये बात और है की वो प्ले कभी भी स्टेज नहीं हुआ. हम दोनों ही साहित्य से बहुत सानिध्य रखते थे और दोनों ही एक सा संगीत भी पसंद करते थे. मैं ग्रेजुएट हो गया और वो अपना रिसर्च करती रही.
और यूँ वो अलग हुए
चूँकि उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे, हम एक दुसरे को चिट्ठियां लिखा करते थे. मैं उसके लिए कवितायेँ लिखा करता था. उन दिनों झटफट स्माइली और मैसेज का तो दौर नहीं था मगर मुझे यकीन था की मेरी चिट्ठियों और कविताओंसे उसकी मुस्कान तो बेशक खिल उठती होगी.
ये भी पढ़े: 6 पुरुषों ने बताया कि जिन महिलाओं से उन्होंने शादी की उनसे शादी के लिए वे कैसे तैयार हुए
हम बाद में कई बार अचानक ही मिले. एक बार तो अपने अपने घरों से दूर एक नए शहर में एक लिफ्टमें हम फिर से मिले और हमारा सम्बन्ध और गहरा होता चला गया. चूँकि हम दोनों की बौद्धिक समानताएं काफी थी, धीरे धीरे हमारे बीच रोमांटिक नज़दीकियां भी स्वाभाविक ही था. हम एक दुसरे पर बहुत निर्भर करने लगे.
चूँकि उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे, हम एक दुसरे को चिट्ठियां लिखा करते थे. मैं उसके लिए कवितायेँ लिखा करता था. उन दिनों झटफट स्माइली और मैसेज का तो दौर नहीं था मगर मुझे यकीन था की मेरी चिट्ठियों और कवितियों से उसकी मुस्कान तो बेशक खिल उठती होगी.
हम बाद में कई बार अचानक ही मिले. एक बार तो अपने अपने घरों से दूर एक नए शहर में एक लाइफ में हम फिर से मिले और हमारा सम्बन्ध और गहरा होता चला गया. चूँकि हम दोनों की बौद्धिक समानताएं काफी थी, धीरे धीरे हमारे बीच रोमांटिक नज़दीकियां भी स्वाभाविक ही था. हम एक दुसरे पर बहुत निर्भर करने लगे.
एक दिन उसने मुझसे वो सवाल पूछ ही लिया. मेरी आदर्श ज़िन्दगी अचानक ही धराशाई वो एक बहुत ही संपन्न और धनी परिवार की बेटी थी. उसकी शिक्षा भी मुझसे कहीं उच्चतर थी. ये बात और थी की मार्किट में मेरी डिग्री की कीमत ज़्यादा थी. उसी अपने थीसिस सुपरवाइजर से झड़प हो गई थी जिसके कारण उसने प्रोग्राम बीच में ही छोड़ दिया था. इसी बीच मैं एक युवा पडोसी से मिला था और मैंने उसके साथ रहने के हवाई किले बनाने शुरू कर दिए थे. अरे! मैंने आपको बताया क्या की वो मुझसे एक साल बड़ी थी. साफ़ जाहिर था था की मैं मानसिक तौर पर उस से अलग हो रहा था और मैं उसके भविष्य को ख़राब नहीं करना चाहता था.
ये भी पढ़े: जब हमने शादी के लिए आठ साल परिवार की हामी का इंतज़ार किया
और हम फिर मिलें
मेरे सामने वो आज कैफ़े में अपनी सोलह साल की बेटी के साथ बैठी थी. एक बहुत ही प्यारी और उज्जवल लड़की, वो अपनी माँ का ही युवा रूप थी. अपनी माँ की ही तरह वो अपनी आँखें सिकुड़ कर बहस करती थी, जिन बातों पर हंसी आती थी, उन पर वो ज़ोर से खिलखिला कर हंसती थी, भारतीय सांस्कृतिक नृत्य में तुरंत आ गई जैसे ही मैंने उस नृत्य की आज के आधुनिक दुनिया में महत्ता का जिक्र किया. वो बिलकुल अपनी माँ जैसी ही तो थी. मैं उसके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हो गया.
मैं उसकी और उसकी माँ के बीच की नोकझोंख सुन कर बहुत मज़े ले रहा था.
यूँ तो दोनों में ३६ साल का अंतर था मगर कितनी सहजता से दोनों माँ बेटी बहनों सी लग रही थी.
उनके रिश्ते के कई रंग साफ़ दिख रहे थेऔर मैंने ऐसा रिश्ता कभी नहीं देखा था.
काश की…
“मैंने व्यावसायिक और निजी ज़िन्दगी में बहुत कुछ खोया था. अब जब भी मैं अपने अतीत से जुड़े लोगों से मिलता था, तो मन में एक अजीब सी कसक होती थी. जैसे आज उससे मिलकर मुझे हम दोनों के बीच के उस सम्बन्ध की याद आ गई. उसी सम्बन्ध के कारण ही हो आज भी वो इतनी सहजता से मुझे अपनी ज़िन्दगी की छोटी बड़ी बातें बता रही थी. शायद आम अवस्था में बहुत सारी कड़वाहट के साथ मैं उसकी बातें सुनता मगर आज जब वो प्यारी सी बच्ची मेरे सामने बैठी खिलखिला रही थी, मैंने ज़ोर से आह भरी और शायद कुछ ज़ोर से ही बोल दिया, “ये ज़िन्दगी मेरी भी हो सकती थी.”